रिटेल में 100% FDI यानी अच्छी संतान पाने रेड लाइट एरिया की सुंदरी को सरोगेट मदर बनाने घर लाना

हालांकि ये मेरी भविष्यवाणी नहीं, लेकिन आशंका है कि रिटेल क्षेत्र में 100% FDI को जहां तक मैं समझा हूँ उसके हिसाब से ये भरे पूरे परिवार के एक कमाऊ बेटे की अच्छी संतान पैदा करने के लिए किसी सरोगेट मदर के लिए रेड लाइट एरिया से किसी सुंदरी को घर में लाके रखना है।

घर का मुखिया अच्छी संतान उत्पत्ति की ज़रूरत और चाहत में घर के अंदर रेड लाइट एरिया की सुंदरी रखने के खतरों को नज़रअंदाज कर रहा है…

लाख कॉन्ट्रैक्ट किए हों उक्त सुंदरी से और बेशक वो लायी गयी हो घर के कमाऊ बेटे के लिए ही, लेकिन क्या वो ज़ालिम अपने दूसरे देवरों को आँख नहीं मारेगी… या नाबालिग भतीजे ही उसके लिए लार नहीं टपकायेंगे?

और किसी प्रकार संतान सुंदर, सलौनी, हृष्ट-पुष्ट हुई तो क्या घर के दूसरे मर्द रेड लाइट एरिया की ओर, किसी दूसरी सरोगेट मदर को हायर करने के लिए दौड़ नहीं लगायेंगे…

क्या हुआ जो ये सिंगल ब्रांड का मामला है… यदि चाइना हमारे यहाँ और विश्व के दूसरे हिस्सों में घाटा उठा कर डम्पिंग करता है तो हमारी आम ज़रूरत की तमाम वस्तुओं को एक ही ब्रांड नेम से यहाँ रिटेल चेन में नहीं उतार सकता?

क्या पाकिस्तान जिसका कि MFN का दर्जा खत्म नहीं हुआ है वो खुद भले ही कुछ नहीं बना पाता हो, लेकिन क्या वो अथवा कोई दूसरा मुस्लिम राष्ट्र चाइना से माल बनवा कर उसे अपना ब्रांड नेम देकर भारत में नहीं उतार सकता?

क्या होगा फिर… कौन रोकेगा… उन ग्रीन मॉल्स की ओर दौड़ लागती दाढ़ी और सलवार कमीजों की दौड़ को?

आज तो हर विदेशी सामान हर थोक व्यापारी की पहुँच में होने के कारण कीमतों में कंपटीशन है… कल को जब विदेशी ब्रांड रिटेल क्षेत्र में स्वयं होलसोल तरीके से उतरेंगे… और भारतीय थोक व्यापारियों को अपना माल देंगे ही नहीं, तो प्रतियोगिता रहित बाज़ार में उनकी मनमानी कौन रोकेगा?

क्या वो विदेशी ब्रांड अपनी मोनोपोली से ग्राहकों की जेब छीले बिना मान जाएगा?

आखिर अपने यहाँ देशी ब्रांड और असंगठित क्षेत्र की कीमतों में भारी अंतर नहीं है? क्या सरसों का तेल, आटा, पिसे मसाले आदि में असंगठित क्षेत्र और ब्रांडेड में सवाए ड्योढ़े दूने के अंतर नहीं हैं?

कौन रोक पाता है उपभोक्ता की बड़े अंतर से होने वाली लूट को?

अभी विदेशी माल को परचून के थोक मॉल्स खोलने की अनुमति मिली हुई है… लेकिन आइए मेरे साथ इन होल सेल वाले मॉल्स में… दिलवाता हूँ आपकी ज़रूरत वाला सामान होलसेल रेट में लेकिन टोटल रिटेल में… बिल भी मिलेगा आपको… किसी भी ट्रेडर के नाम बिल काट कर ये रिटेल कस्टमर को खूब सामान बेच रहे हैं…

आगरा के NH 2 पर कानपुर रोड के होल सेल के ‘बेस्ट प्राइज़’ मॉल ने शहर के मोती गंज, लुहार गली के थोक मार्केट की हालत खराब करके रख दी है… वहाँ की परंपरागत थोक दुकानें अब रिटेल व्यापार के लिए मजबूर हो गईं हैं…

एक बहुत बड़ा आम उपभोक्ता इन दुकानों से थोक कीमतों पर रिटेल खरीद करके लाता था… लेकिन अब ये सुविधा उस विदेशी मॉल के कारण छिन गयी… अब उन सयाने ग्राहकों ने उक्त मॉल की ओर रुख कर ही लिया.

राष्ट्रवादी खेमे में एक चिंता चलती है, मिशनरी या अङ्ग्रेज़ी स्कूलों में किए जाने वाले कल्चरल ब्रेन वॉश की… यानि यहाँ संस्कृति का ईसाईकरण किया जाता है… हमदर्द जैसी कंपनियों पर आरोप है कि ये केवल मुस्लिम एम्प्लोई रखती हैं…

तो जब शत प्रतिशत ईसाई या मुस्लिम स्वामित्व की विदेशी कंपनी अपने मॉल्स यूं खोलेगी तो क्या उसकी नीयत यहाँ ईसाई या मुसलमान को प्रायरिटी अथवा कमजोर कर्मचारियों के लिए लोभ प्रलोभन या दबाव की नहीं रहेगी?

क्या ये मॉल्स धर्मांतरण का खतरा पैदा नहीं करेंगे?

हाँ इतना अवश्य है कि इनके कंपटीशन से बाबा रामदेव जैसे स्वदेशी उत्पादकों के दिमाग जरूर ठिकाने आ सकते हैं जो कि ब्रांड के नाम पर ग्राहकों को बिना धार की छुरी से काट के रख देते हैं…

बस यही उम्मीद है कि सरोगेट मदर का खतरा घर की फूहड़ और बददिमाग बहू को शउरदार और आलस्यहीन बना दे जिससे उसके ससुराली जन इतना लगाव रखें कि वो रेड लाइट वाली के कमरे की ओर झाँकने का भी प्रयास ना करें.

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