महबूबा मुफ्ती ने कल कहा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत कर आतंकवाद की समस्या का हल निकाला जाना चाहिए.
महबूबा के इस बयान पर न्यूज़ चैनलों के एंकर आगबबूला हो रहे हैं. तांडव कर रहे हैं.
भाजपा कश्मीर में PDP के साथ सरकार क्यों चला रही है? यह सवाल इस तरह उछाल रहे हैं मानों कश्मीर में PDP के साथ सरकार चला कर भाजपा देशद्रोह सरीखा कोई गुनाह कर रही है.
न्यूज़ चैनली एंकरों एडिटरों की ऐसी हर नौटंकी में कांग्रेसी प्रवक्ता IPL की चीयर लीडर्स की तरह जमकर उछलते कूदते झूमते हुए सुर में सुर मिला रहे हैं.
इस सन्दर्भ में मेरा मत स्पष्ट है. जिस दिन भाजपा ने कश्मीर में PDP के साथ सरकार बनाई थी उस दिन भी मैं उस गठबन्धन सरकार का प्रबल समर्थक था.
आज उस गठबन्धन सरकार के बनने के 2 वर्ष बाद मैं उस गठबन्धन सरकार का और भी अधिक प्रबल समर्थक बन चुका हूं.
मेरे इस मत का आधार और कारण अत्यन्त ठोस है.
वे आधार और कारण समझाने के लिए पहले मेरे 2 सवाल –
1. क्या इस गठबन्धन सरकार के अब तक के शासनकाल में एक भी ऐसा फैसला, सौदा, या समझौता हुआ जिसे देश विरोधी कहा जाए? जवाब है नहीं. यदि मैं भूल रहा होऊं तो अवश्य याद दिलाइये.
2. क्या इस सरकार के 2 वर्ष के कार्यकाल में एक भी आतंकवादी बिना शर्त या फिर शर्त के साथ छोड़ा गया? जवाब है नहीं. यदि मैं भूल रहा होऊं तो अवश्य याद दिलाइये.
अब बात मुद्दे की.
मेरे उपरोक्त दोनों सवाल इसलिए अत्यन्त महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं क्योंकि इससे पूर्व कश्मीर में कांग्रेस द्वारा कभी PDP, कभी नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबन्धन करके बनाई जाती रही हर सरकार के शासनकाल में देशहित और विशेषकर सेना और अन्य सुरक्षाबलों के मनोबल को बेशर्मी के साथ रौंदा कुचला जाता रहा है.
पहला उदाहरण :
27 अक्टूबर 2002 को जम्मू कश्मीर में कांग्रेस पीडीपी ने एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाकर गठबंधन किया था. उसी कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के आधार पर कांग्रेस पीडीपी गठबंधन ने जम्मू कश्मीर में सरकार बनाई थी. इस गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में 2 नवम्बर को मुफ़्ती मुहम्मद सईद ने शपथग्रहण कर सत्ता सम्भाली थी.
इसके ठीक 9 दिन बाद 11 नवम्बर को कुख्यात आतंकवादी यासीन मलिक, जो पोटा के तहत जेल में बन्द था, को जम्मू कश्मीर की कांग्रेस-पीडीपी की तत्कालीन गठबंधन सरकार ने बिना शर्त जेल से रिहा कर दिया था.
यासीन मलिक अकेला ऐसा आतंकवादी नहीं था जिसे सरकार ने बिना शर्त रिहा किया था. बल्कि उसके साथ उसके जैसे 24 और आतंकी सरगनाओं को भी कांग्रेस-पीडीपी की गठबंधन सरकार ने बिना शर्त रिहा कर दिया था.
इन आतंकियों में हिज़्बुल का कमांडर अब्दुल अज़ीज़ डार, हिज़्बुल मुजाहिदीन का अयूब डार, अल्ताफ अहमद फंटूश, शौकत बख्शी, मुख़्तार अहमद वाजा सरीखे दुर्दांत आतंकवादियों के नाम शामिल थे.
तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मुहम्मद सईद ने इन 24 आतंकियों की रिहाई कांग्रेस के साथ गठबंधन के अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में शामिल अपनी शर्त के तहत ही की थी.
दूसरा उदाहरण :
दिसम्बर 2008 में कांग्रेस ने बाप-बेटे फारूक और उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर में गठबन्धन सरकार बनाई थी.
ठीक डेढ़ वर्ष बाद मई 2010 में कश्मीर और भारत की अन्य जेलों में बन्द लश्कर जैश और हिजबुल के 25 पाकिस्तानी आतंकवादियों को बिना शर्त रिहा कर के वाघा बॉर्डर के रास्ते वापस पाकिस्तान भेज दिया गया था.
इनमें वो शाहिद लतीफ भी शामिल था जिसने 2015 में पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले के हैंडलर की भूमिका निभाई थी.
शर्मनाक खतरनाक तथ्य यह है कि 25 पाकिस्तानी आतंकवादियों की बिना शर्त रिहाई की यह कार्रवाई मुम्बई हमले के 18 महीनों बाद ही कर दी गयी थी तथा उस समय कश्मीर और शेष देश की जनता से छुपाकर इस कार्रवाई को अंजाम दिया गया था.
इसीलिये मुझे परम सन्तोष है कि दर्जनों की संख्या में पाकिस्तानी आतंकवादियों की बिना शर्त रिहाई सरीखा एक भी देशघाती फैसला कश्मीर की वर्तमान BJP-PDP गठबन्धन सरकार द्वारा नहीं लिया गया है.
इसके बजाय पिछले 2 वर्षों में हुर्रियत के दर्जनों नेता गुर्गे जेलों में दिन काट रहे हैं. उनके आर्थिक स्त्रोतों की गर्भनाल काट दी गयी है. दर्जनों आतंकी कमांडरों समेत लगभग 350 से अधिक आतंकवादी पिछले 2 वर्षों के दौरान मौत के घाट उतारे जा चुके हैं.
इन मुठभेड़ों में मुफ्ती सरकार की पुलिस ने बढ़ चढ़ कर सहयोग किया है. उसके भी कई जवान शहीद हुए हैं.
अतः महबूबा मुफ्ती के औपचारिकता पूर्ति वाले बयानों का मेरे लिए कोई महत्व नहीं है. इसलिए न्यूज़ चैनली जोकरों और उनके कांग्रेसी चीयर लीडर्स की हायतौबा से विचलित मत होइए.