उसने हलके नीले रंग की टांगों से चिपकी हुई जींस और छोटा सा कुर्ता पहना हुआ था. गर्दन तक के छोटे छोटे बालों में वह और भी छोटी लग रही थी. उसका चेहरा देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वो दो बच्चों की मां है.
लेकिन मैं कह सकती थी कि वो सच में एक मां है क्योंकि मैंने उसके उस आधुनिक पहनावे के अंदर की झलक पाई थी. जब वो अपने बच्चों के साथ खेल रही थी उसका कुर्ता थोड़ा ऊपर को खिसक गया था और उसकी पतली सी कमर और पेट के आसपास मैंने उन गहरी लकीरों को देखा था, जो दो बच्चों को जन्म देने के बाद उभर आई थी.
पिछले कुछ दिनों से वो मेरे साथ रह रही थी. पूरे दो साल बाद मैं उससे मिल रही थी. हालांकि उसके पहले हमारी सिर्फ़ चंद मुलाकातें ही हुई थी, लेकिन उन मुलाकातों से पहले से मैं उसे जानती थी. जितना उसके बारे में सुना था, उन चंद मुलाकातों में वो मुझे बिलकुल वैसी ही नजर आई थी, दबंग, महात्वाकांक्षी, आत्मविश्वास से लबरेज, ज़मीन से जुड़कर रहते हुए चांद को छूने का जज़्बा और जुनून, बातों में कसावट और कपड़ों में नफासत.
लेकिन इन दो सालों में उसकी तसवीर बिलकुल बदल चुकी थी. यहां तक कि उसके अंदर चल रही ऊहा-पोह उसके चेहरे और बातों पर असर डाल रही थी. हक़ीक़त की ज़मीन, पैरों तले से खिसकती जा रही थी और सपने पकड़ में नहीं आ रहे थे. वह ख़ुद नहीं समझ पा रही थी कि वो क्या करें. जितना वो सपनों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी, वो उतने उसके हाथों से फिसलते जा रहे थे.
शायद सबके जीवन में यह दौर आता है, जिससे वह गुजर रही थी. जो प्यार और परियों की कहानियों सी परिकल्पनाएं हम अपने अंदर सहेजें होते हैं, वो अचानक बाहर प्रकट होने लगती हैं और वो कल्पनाओं का राजकुमार साकार रुप लेने लगता है.
हम अपने सपनों को उसके आकर में ढालने लगते हैं लेकिन जब हम उसको छूने की कोशिश करते हैं तो उसे छू नहीं पाते. हाथ जैसे हवा में लहरा जाते हैं. वो सामने दिखाई तो देता हैं लेकिन उसे छूना जैसे वर्जित हो जाता है क्योंकि उसकी सुंदरता तभी तक है जब तक वह सपनों में है उसे हक़ीक़त का रुप देना अपने आप को धोखा देने जैसा होता है. और ऐसा ही धोखा उसने भी खाया.
उसके अंदर जो प्यार और नाज़ुक संवेदनाएं भरी हुई थी वो उसे किसी और में खोजने निकली थी. उसे वो मिला भी लेकिन उसके सपनों से छोटा निकला वो. उसके सपनें उसमें नहीं समा पाए, जितना वह अपने अंदर भर सकता था उसने भर लिया लेकिन उसके बाद वही कशिश वही प्यार और सपने वर्जनाओं का रुप लेकर उसके व्यवहार में झलकने लगे. जब तक वह कुछ समझ पाती तब तक अपना सबकुछ छोड़ चुकी थी वह, बच्चे भी.
लेकिन बच्चों को मिलने का मोह, मोह नहीं ममता वो नहीं छोड़ पाई थी. इसलिए मेरे घर अपने बच्चों से मुलाकात के लिए आई थी. उसे किसी परिणाम तक पहुंचाना था कि उसे क्या छोड़ना है लेकिन वो नहीं जानती थी कि उसके हाथ में सिर्फ़ वही वस्तुएं हैं जिसे वो छोड़ सकती है. तो जाने से पहले उसने अपनी जींस और वो छोटा सा कुर्ता छोड़ दिया और अपने साथ ले गई पेट और कमर पर उभरी हुई वो रेखाएं जिसे वो चाहकर भी नहीं छुड़ा सकती, वो जीवन भर उसके शरीर पर रहेंगी और आत्मा पर भी.