कल रात सारी रात होती रही बर्फ़बारी
बर्फ़बारी क्या तूफ़ान था, सीटियाँ बजाती हवा थी
तो जब दिन निकला तो सोचा आज तो बाहर सारा सफ़ेद सफ़ेद ही होगा
जानते हो जब इतनी बर्फ़ गिरती है तो आसमान और धरती एक से ही नज़र आते हैं
उतने ही सफ़ेद
बीच में से अंतरिक्ष वाली सीमा तो मिट ही जाती है , ख़त्म ही हो जाती है
आसमान का नीला न जाने कहाँ जाता है
अब इतनी ठण्ड में बाहर तो जा नहीं सकते थे तो अपने कमरे की खिड़की से हटाया पर्दा
तो क्या देखते हैं
पेड़ों की बाहों में ढेरों बर्फ़ है घरों की छते भी हैं सफ़ेद, गाड़ियां भी धँसीं खड़ी हैं बर्फ़ में
पर आकाश का एक कोना थोड़ा सुर्ख़ है
इसका मतलब सूरज जी आ रहे हैं बाहर अपनी अंधेरी सफ़ेद झोंपड़ी से
अब हमारे कमरे की खिड़की तो खुलती है नोर्थ में तो सोचा रसोई की खिड़की से देखते हैं
वो झाँकती रहती है पूर्व में
और आहा ! क्या तो नज़ारा था
सूरज था अभी बहुत ही नीचे अभी दिन पूरा निकला नहीं था न
ऐसे झाँक रहा था जैसे किसी झाड़ी के पीछे से उगता दमकता छोटा सा गोला
और यूँ लग रहा था जैसे किसी ध्यान में बैठी स्त्री के माथे पे हो सिंदूरी टिका
कहीं कहीं पे बिखरी हुई थी सिंदूर की लाली तो कहीं पे हल्के हल्के बादल तैर रहे
यूँ जैसे अप्सराएँ नहा कर निकली हों समुन्दर से
हाथों में सुनहरी कलश उठाए
ठुमक ठुमक चलती
अपनी कज़रारी आँखों से जादू बिखेरती
बालों से ओस झटकतीं हुई
चाँदी रंगी पायलें छन छन बजती
फ़रिश्ते हाथ बांधे खड़े आकाश गंगा के दोनो तरफ़
नतमस्तक
सर के ऊपर तनी हुई सुनहरी आसमान की चुनरी
यूँ जैसे दुल्हन जब आहिस्ता आहिस्ता चलती आती है मंडप की और
थामे हाथ सखियों का
ज्यों ही पगडंडी से धीरे- धीरे उस पार उतरती गई अप्सराएँ
आसमान फिर से हो गया काशनी, सुरमयी
बस एक सुगंध बची, एक महक
काफ़ी थी फिर भी सारे अस्तित्व को मोहक बनाने के लिए
क्या ही अद्भुत नज़ारा था
क़िस्मत से मिलते हैं ऐसे नज़ारे देखने को
क़िस्मत से उस पल हम उठते हैं जब ऐसे नज़ारों के दर्शन होने होते हैं
नहीं तो हम तो सोए रहते हैं चादर ताने
कौन डालता है अपने आराम में ख़लल
पर ब्रह्माण्ड बहुत ही प्यारा दोस्त है मेरा
सब जानता है
कॉस्मिक लवर जो ठहरा
नहीं, नहीं जलने की कोई ज़रूरत नहीं
तुम तो जो हो वो हो ही
तुम्हारी जगह थोड़ी न ले सकता है कोई
खेला तो तुम्हीं ने रचाया
मैं हमेशा कहती हूँ यूनिवर्स को
यू आर अमेज़ बॉलज
और वो और भी प्यारा और भी ख़ूबसूरत हो जाता है
चारों तरफ़ फ़रिश्ते तैनात कर देता है मेरी हर आह, हर ख़्वाहिश सुनने की लिए
पूरी करने के लिए
अहोभाव से परिपूर्ण हूँ मैं
संतुष्ट
आनंदित
तुम तो पहले से ही थे संतुष्ट, आनंदित
तुम्हारे शहर में भी तो हुई कल बरसात
सर्दी थोड़ा तुनक तुनक कर जा रही, जाते जाते लौट आती है
जब लगता है बहार आने को है फिर से टपक पड़ती
तुम कहोगे तुम्हारी तो हर पल बहार है
ठीक है न, यह अंदर की बहार ही तो बाहर का सब ख़ूबसूरत कर देती है
अंदर की रेफ़्लेक्शन ही तो है बाहर सब
Within reflects without
सारा खेल तो माईंड का ही है
अगर यह शांत तो सब शांत
अक्सर जब अपनी खिड़की में खड़ी हो कर देखती हूँ गिरती हुई बर्फ़
चाँदी से चमकते पेड़
सब सफ़ेद ही सफ़ेद
सब इतना ठण्डा, हिमालय की चोटी जैसा
और मैं अंदर गरम कमरे में, गरमियों वाले कपड़ों में
तो एक जन्नत सी का अहसास होता है मुझे
और किसे कहते हैं जन्नत, बोलो तो
यहीं है यहीं है इसी पल है
“गर फिरदौस बर-रूऐ जमीं अस्त…
हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्त..!!!”
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(अगर इस जमीं पर कहीं स्वर्ग का अस्तित्व है, तो वो यहीं है, यहीं है और यहीं है.!!!.)