मोदी सरकार ने जनता पार्टी सरकार से कोई सीख ली? नहीं

1977 में कांग्रेस के सफाये के बाद दो तिहाई बहुमत से बनी जनता पार्टी सरकार के गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने अपने शपथ ग्रहण के तत्काल बाद ही कहा था कि… Arrest Her Today Or Never.

चौधरी चरण सिंह इसके लिए कोई पहल करते उससे पहले ही हेमवती नन्दन बहुगुणा और जगजीवन राम ने इसका विरोध कर दिया था.

उस समय उन दोनों को जनता पार्टी में कांग्रेस का स्लीपर सेल कहा जाता था. बाद में दोनों की कांग्रेस में वापसी भी हो गयी थी.

प्रधानमंत्री की कुर्सी पाकर धन्य और गदगद हो चुके मोरारजी देसाई भी निर्बाध सत्ता सुख में कोई खलल नहीं डालना चाहते थे, अतः चरण सिंह की सलाह को बड़बोला उतावलापन मानकर उनकी सलाह को खारिज़ कर दिया था.

फिर शुरू की गयी थी जांच आयोगों की नौटंकी.

नतीजा यह निकला था कि जनता पार्टी में पहले साल ही सत्ता की दाल जूते में बंटने लगी थी.

उस सरकार के कर्णधार इसके लिए आज भी कोसे जाते हैं. लेकिन सिर्फ वही जिम्मेदार नहीं थे.

अपने खिलाफ कार्रवाई के प्रति जनता पार्टी सरकार की अरूचि भांप कर केवल साल भर में ही इंदिरा गांधी सक्रिय हो गईं थीं.

ढाई साल बाद दो तिहाई बहुमत की वह सरकार इंदिरा-संजय की जोड़ी ने ताश के पत्तों के महल की तरह गिरवा दी थी.

मां-बेटे की जोड़ी के उस सरकार गिराओ षडयंत्र का सबसे बड़ा हथियार वही चौधरी चरण सिंह बने थे जो ढाई साल पहले इंदिरा गांधी को तत्काल गिरफ्तार करने की ज़िद पर अड़े हुए थे.

यदि शपथ ग्रहण के तत्काल बाद दी गयी चौधरी चरण सिंह की उस सलाह पर अमल हो गया होता तो भारतीय राजनीति की धारा 1977 में ही बदल चुकी होती.

क्योंकि आपातकाल के दौरान अनेकानेक ऐसे कुकर्म हुए थे जिनकी सज़ा से बच पाना इंदिरा और संजय, दोनों के लिए असम्भव होता. देश भी आज राजीव सोनिया राहुल सरीखे बोझ नहीं ढो रहा होता.

आज उपरोक्त प्रसंग का उल्लेख इसलिए कि मोदी सरकार ने भी उपरोक्त उदाहरण से कोई सीख ली? फिलहाल ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा.

साढ़े तीन वर्ष बीत चुके हैं. वो सब बाहर हैं, खुलेआम पूरी नंगई से तांडव कर रहे हैं. गुजरात हम देख चुके, महाराष्ट्र हम देख रहे हैं.

आगे ना जाने क्या-क्या देखना अभी बाकी है.? देर तो हो चुकी, लेकिन अभी भी काफी समय है.

ध्यान रखिये, ज़हरीली कंटीली घास उखाड़ कर उसकी जड़ों में मट्ठा डालनेवाला चाणक्य ही दिग्विजयी और कालजयी हुआ. मुहम्मद गौरी को माफ करनेवाला पृथ्वीराज चौहान उसी मुहम्मद गौरी के हाथों मौत के घाट उतर गया.

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