मुझे ये बात समझ नहीं आ रही, जिधर देखो उधर बुद्धिजीवी लोग, तीस मार खां टाइप रणनीतिकार लोग दलितों के दर्द का विवरण देने में लगे हैं.
लोगों को समझा रहे हैं कि उनके साथ कितना धोखा हुआ है, कितना ज़ुल्म हुआ है!
हमें उन्हें किस तरह गोद में बिठाकर आइसक्रीम खिलानी होगी ताकि वे हमारे दुश्मन के साथ ना जा मिलें!
हमें उन्हे कैसे मान मनौवल के साथ रखना होगा ताकि वे इस देश में भगवा राज के सपने में अड़चन ना बनें!
Wait भाई wait, क्या हमें ये सब नहीं पता है जो हमें ये पूरी शोले फिर से दिखाई जा रही है?
क्या हमें नहीं पता कि इसीलिये इस देश में 50 प्रतिशत आरक्षण है, गैर ज़मानती कानून की धाराएं हैं?
क्या हमें नहीं पता कि इनके ही तुष्टिकरण के लिए हमने देश को दलित राष्ट्रपति दिया, दलित राष्ट्रीय अध्यक्ष दिया, मुद्रा लोन दिया, भीम एप दिया?
फिर ये छाती कूटने वाला पकाऊ रिपीट शो क्यों? इनकी आगे की डिमांड क्या है?
ब्राह्मण बच्चे तो बेरोज़गार कर दिए, अब क्या उनसे मैला साफ़ करवाने की इच्छा है?
सुन लो बिरादर… अगर इतना सब के बाद भी आप खुश नहीं हो तो फिर आप वोट बैंक हो, हमें ब्लैकमेल करना चाहते हो, और इस देश में हम ब्लैकमेल की राजनीति तो होने नहीं देंगे… कान खोल कर सुन लो!
दरअसल सुदूर गाँव के उस आखिरी दलित को बताना चाहिए कि उसके नाम पर… दलित चिंतक बन तुमने उन्हें कैसे छला है…
उनके हिस्से का आरक्षण एक ही परिवार के 10 – 10 लोग खा गए, अब प्रमोशन में आरक्षण चाहिए, प्राइवेट में आरक्षण चाहिए, असली मांग ये है…
और इसलिए अब कांग्रेस की गोद में जा बैठे हो! ये नहीं चलने देंगे बाबू! कल रूठते हो तो आज रूठ जाओ!
On a different note, भाजपा आपने अपनी वफ़ादारी सिद्ध करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया कि दलित खुश रहें…
पर अब मिमियाईये मत, स्टैंड लीजिये, ये तुष्टिकरण की राजनीति बंद कीजिये…
देश के हर वर्ग की ‘देशभक्त’ जनता ऐसे दंगाईयों को कुचलने की अपेक्षा आपसे रखती है ना कि उनके सामने नतमस्तक होने की!