जब कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा देश मे उठा तो अखिलेश यादव ने इसे हिन्दू मुस्लिम मुद्दा न कह, कानून व्यवस्था का मुद्दा कह के खारिज कर दिया था.
बताया गया कि कैराना के लोग व्यापार व्यवसाय के लिए बेहतर मौकों की तालाश में पलायन कर गए.
जिन दिनों ये मुद्दा गर्म था, मैं स्वयं कैराना गया था. वहां के कई मित्र तब से लगातार मेरे संपर्क में हैं.
उन दिनों कैराना का ये हाल था कि 2 लाख की आबादी वाले कस्बे में एक भी पेट्रोल पम्प नहीं था, कोई होटल, धर्मशाला, लॉज, गेस्ट हाउस नहीं था.
मेरे स्थानीय मित्रों ने मुझे सलाह दी कि आप शाम होने से पहले कैराना छोड़ दीजिए.
जून के महीने में भी शाम 6 बजे के बाद 25 किलोमीटर दूर पानीपत जाने के लिए कोई साधन नहीं मिलता था.
दहशत का ये आलम था कि मुझसे मिलने जो लड़के आये वो फुसफुसा कर बात करते थे.
आज अलसुबह समाचार सुना कि बीती रात, कैराना के काला मुकीम गैंग के एक और शार्प शूटर, 1 लाख के इनामी बदमाश साबिर का योगी सरकार की पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया.
ये वही यूपी पुलिस है जो अखिलेश यादव के राज में काला मुकीम गैंग को पोस रही थी. उसी यूपी पुलिस ने पिछले 9 महीने में कैराना – शामली से इस गैंग का सफाया कर दिया है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाई जान लोग का ही एनकाउंटर हो रिया है. पश्चिमी यूपी में चुन चुन के अन्य अपराधी भी मारे जा रहे हैं जिनमें गूजर बदमाश प्रमुख हैं.
जब भी किसी गूजर अपराधी का एनकाउंटर होता है, उसके गांव रिश्तेदारी में थोड़ी बहुत हलचल होती है, फ़र्ज़ी मुठभेड़ का शोर मचता है, अंचायत पंचायत भी होती है, सोशल मीडिया पर भी बवाल काटा जाता है.
पर इसके विपरीत जब शामली में मुकीम काला गैंग का कोई बदमाश मारा जाता है तो न कोई शोर शराबा होता है, न किसी मस्जिद से चीखो चिल्लाहट की आवाज़ें आती हैं और न किसी जनाजे में हज़ारों की भीड़ उमड़ती है. चुपचाप दफन कर दिया जाता है.
योगी सरकार और अखिलेश यादव सरकार का ये बुनियादी फर्क है.