चरित्र निर्माण के संघ के दावे पर प्रश्न खड़े करता नितिन पटेल का आचरण

गुजरात में वरिष्ठ भाजपा नेता और मंत्री नितिन पटेल के ड्रामे पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ.

भाजपा में अब ये आम बात हो गई है. मंत्री पद नहीं मिला, मन पसंद विभाग नहीं मिला, तुरंत सारी निष्ठा गई तेल लेने, कांग्रेस या सपा की गोद में बैठने को तैयार…

यानि भारतीय सेना के अधिकारी को अगर प्रमोशन ना मिले तो पाकिस्तान की सेना में चला जाए!

नितिन पटेल कोई नए नहीं है. ऐसा नियमित रूप से हो रहा है. गुजरात में शंकर सिंह वाघेला, केशु भाई पटेल और सुरेश मेहता ऐसा कर चुके हैं.

उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह, दिल्ली में मदन लाल खुराना, झारखण्ड में बाबू लाल मरांडी, ऐसे अनेक उदाहरण है.

आडवाणी, जोशी जी ने पार्टी तो नहीं छोड़ी, लेकिन आडवाणी प्रधानमंत्री ना बनाये जाने और जोशी जी मंत्री पद ना मिलने से असंतुष्ट हो कर पार्टी की निंदा करते रहते हैं.

और ये सब लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हैं, और कट्टर संघी रहे हैं. उसके बाद इतना घटिया चरित्र, पद का, सत्ता का इतना लालच, कि जिस पार्टी ने आप को इतना दिया, मंत्री/ मुख्यमंत्री/ उप प्रधानमंत्री बनाया, उस पार्टी की पीठ में छुरा घोपने को तैयार.

इस मामले में भाजपा के लोग कांग्रेस से भी नीचे गिर गए हैं, कम्युनिस्टों से तो खैर कोई तुलना ही नहीं.

सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से निकालना सीपीएम का बिलकुल गलत निर्णय था. कांग्रेस शासन में वे कोई पद ले सकते थे, लेकिन नहीं लिया. ममता बनर्जी उन्हें ससम्मान बुला रही थीं, लेकिन नहीं गए. दूसरी पार्टी जॉइन करना तो दूर, सीपीएम के खिलाफ कोई बयान तक नहीं दिया.

संघी भी कभी ऐसे ही थे. सत्ता का लालच तो दूर की बात है, 1977 में इमरजेंसी के आत्याचार भी संघ को तोड़ नहीं सके थे. लेकिन जैसे जैसे भाजपा को सत्ता मिली, चरित्र गिरता गया. आज हालत ये कि दलबदल में कांग्रेस को मात देते हैं.

संघ चरित्र निर्माण का दावा करता है, उसके लोगों का ऐसा आचरण, उसके चरित्र निर्माण के दावे पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है.

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