हनीप्रीत को कोई टीवी दर्शक भूल सकता है क्या?
राम रहीम और हनीप्रीत पर न्यूज़ चैनलों ने एक-डेढ़ लाख खुलासे कर डाले थे.
दर्शकों ने भयभीत होकर न्यूज़ देखना ही छोड़ दिया था.
ये बात जग-ज़ाहिर है कि हिन्दू धर्म के बाबाओं पर इन चैनलों के पास कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं होती. खोज के नाम पर ये आश्रमों की खुदाई तक करवा डालते हैं.
लेकिन कल जब लखनऊ में एक मदरसा संचालक यौन शोषण में पकड़ा गया तो न्यूज़ चैनल कंबल में जा दुबके.
देश के न्यूज़ चैनल और कुछ सेकुलर अखबारों का चरित्र किसी से छुपा नहीं है.
पकड़ा गया धार्मिक व्यक्ति हिन्दू है तो उसकी सात पुश्तों को बदनाम करने में कोई कसर नहीं बाकी रखते और गिरफ्तार व्यक्ति मुस्लिम या ईसाई हो तो पत्रकारिता पत्ते की तरह थर-थर कांपने लगती है.
सोशल मीडिया कितना भी चीख ले, पत्रकारिता अपना गंदा रवैया कभी नहीं बदलेगी. मदरसा संचालक की खबर को दफनाने की पूरी तैयारी है.
तैयारी ऐसी है कि कैसे भी ये खबर मुद्दा न बनने पाए. भोली जनता को वहीं दिखाया जाएगा जो सेकुलर नीति-निर्धारक चाहेंगे. आइये देखे कितने चैनलों ने इसे प्रमुखता से पेश किया.
आज सुबह
इंडिया टीवी – दिखाई गई
न्यूज़ 24 – गायब
न्यूज़ नेशन – गायब
ज़ी न्यूज़ – दिखाई
न्यूज़ इंडिया 18 – गायब
आज तक – फ्लशिंग में भी गायब
एबीपी – गायब
इंडिया न्यूज – मदरसा संचालक पर ‘छेड़छाड़’ का आरोप
एनडीटीवी – गायब
रणनीति समझिए. मदरसा संचालक पर लगे यौन शोषण के आरोप ‘मामूली छेड़छाड़’ में बदलने की पूरी तैयारी है.
तेज़ी से नई खबरें पैदा की जाएगी ताकि मदरसे की खबर दब जाए. मुंबई की आग वाली घटना को ज्यादा तरज़ीह दी जा रही है.
अतीत में कुछ ऐसी घटनाएं हुई जो न्यूज़ चैनलों और अखबारों की बेईमानी के चलते ‘बड़ा रूप’ धारण नहीं कर सकी.
2015 में जमानियां के मदरसे के प्रबंधक ने नाबालिग छात्रा से दुष्कर्म की कोशिश की. गुस्साए ग्रामीणों ने मदरसे में आग लगा दी और प्रबंधक आबिद राईनी को जमकर पीटा.
ग्रामीणों का गुस्सा यहीं पर शांत नहीं हुआ, उन्होंने आरोपी का आधा सिर, मूंछ और भौंहें तक मुड़वा दीं.
जुलाई 2017 में रामपुर जिले की मदरसा शिक्षिका के साथ बलात्कार हुआ. पीड़िता का आरोप है कि मदरसे का संचालक उसे 6 महीने तक अपनी हवस का शिकार बनाता रहा. जब महिला ने विरोध किया तो उसके परिवार को जान से मारने की धमकी दी.
अब इस मदरसे में ये घटना हुई है, लेकिन मीडिया ने इसे ‘हनीप्रीत’ क्यों नहीं बनाया?
पत्रकारिता के मूल में ही ‘तुष्टिकरण’ है. एक महिला दलित हो तो ये लिखते हैं ‘दलित महिला के साथ दुष्कर्म’. ‘हिन्दू धर्माचार्य ने अपनी शिष्या का बलात्कार किया’. ‘धर्म विशेष के लोगों ने मंदिर फूंका’.
अपराधी मुस्लिम हो तो पत्रकारों की पेंट गीली हो जाती है. आप इसे नहीं सुधार सकते. मीडिया कांग्रेस के शासनकाल से ही ‘हिन्दू अनादर’ पर पोषित होता रहा है और आज भी हो रहा है.