यादों के झरोखे से : जब नेहरू ने डटकर किया गद्दार जनरल का बचाव

  • मनमोहन शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

नेहरूवादी और वाम समर्थक लेखकों और इतिहासकारों ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को महिमामंडित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी.

जबकि ऐतिहासिक और कड़वा सत्य यह है कि ‘देशभक्ति’ का नकाब ओढ़ने वाले इस ‘महान’ नेता ने हर देशद्रोही और गद्दार का डटकर साथ दिया. उनका बड़ी बेशर्मी से बचाव भी किया.

घटना अक्टूबर, 1962 की है. तब मैं हिन्दुस्तान समाचार संवाद समिति में संसदीय संवाददाता के रूप में काम करता था और साउथ एवेन्यू में रहा करता था.

साउथ एवेन्यू में हरि का ढाबा हम जैसे कुंवारे लोगों का अड्डा था.

एक दिन जब मैं चाय पीने के लिए इस ढाबे में पहुंचा तो वहां पर खड़ा हुआ एक व्यक्ति एक जनरल को खुलेआम गालियां निकाल रहा था.

यह सुनकर मुझे हैरानी हुई और मैंने उससे पूछा ‘अरे भाई! क्या हुआ?’

उसने बड़े तल्ख लहजे में एक मोटी गाली निकालते हुए कहा ‘बाबूजी क्या पूछते हो! चीन ने देश पर हमला कर रखा है, बहादुर फौजी अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना खून बहा रहे हैं मगर हमारे जनरल मोर्चा से भागकर बीवी की आगोश में छुपने के लिए दिल्ली भाग आए.’

बातचीत करने से पता चला कि वो सेना के वरिष्ठ अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल बी एम कौल का बैयरा है.

उन दिनों रक्षा मंत्रालय की खबरों की कवरेज भी मैं ही किया करता था. सेना की नियमित ब्रीफिंग में जब मैंने पूछा कि जनरल कौल कहां हैं तो प्रवक्ता ने कहा ‘He is sick in quarter’.

मुझे पूरी बात समझ में नहीं आई और बाद में प्रवक्ता ने इस बात को स्वीकार किया कि जनरल कौल युद्ध का मैदान छोड़कर दिल्ली भाग आए हैं.

प्रवक्ता ने संवाददाताओं से अनुरोध किया कि राष्ट्रहित में वह इस समाचार को प्रकाशित न करें. हम सबने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया.

बाद में पता चला कि जनरल ब्रजमोहन कौल तेजपुर स्थित नवगठित चौथी कोर का प्रमुख नियुक्त किया गया था. जब उसे चीन द्वारा हमला किए जाने की खबर मिली तो वो मैदान जंग छोड़कर दिल्ली भाग आया.

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दुनिया भर में अगर कोई भी फौजी मैदान छोड़कर भाग आता है तो उसके खिलाफ तुरन्त कोर्टमार्शल होता है जिसमें उसे गोली से उड़ा देने की सजा दी जाती है.

ब्रजमोहन कौल पंडित नेहरू के नजदीकी लोगों में था इसलिए उन्होंने अपने इस कश्मीरी भाई को साफ बचा लिया.

कहा जाता है कि तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल पी एन थापर ने कौल के खिलाफ कोर्टमार्शल की सिफारिश की थी मगर पंडित नेहरू ने इस मामले को टाल दिया. इससे साफ है कि नेहरू ने इस गद्दार की खुलकर सहायता की.

चीन के मुकाबले में भारत की हुई कमरतोड़ हार की जांच के लिए बाद में भारत सरकार ने हेंडरसन जांच कमेटी गठित की थी उसने अपनी रिपोर्ट में इस हार के लिए नेहरू, तत्कालीन रक्षामंत्री कृष्णा मेनन और जनरल कौल को दोषी ठहराया था.

इस रिपोर्ट को गोपनीय करार दे दिया गया और आज तक उसे न तो संसद में पेश किया गया और न ही उस पर कोई कार्रवाई की गई.

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