CPI की स्थापना के 92 वर्ष पूरे हुए हैं इस 26 दिसम्बर 2017 को. अक़्सर इन मौक़ों पर लोग बातें करते हैं… क्या खोया क्या पाया.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया का लेखा-जोखा रखने वाले तो बहुत से लोग हैं जो पत्रकारिता से लेकर साहित्य जगत के महामंडलेश्वर बने बैठे हैं, सो उस मामले में क्यों सोचा जाए.
मैं तो बस ये देख रहा हूँ कि किस तरह इस विषबेल का फैलाव कला, सिनेमा और साहित्य जगत में अब तक हो चुका है.
सिने और साहित्य जगत में अभिव्यक्ति के आज़ादी के नारों से लेकर JNU की राजनैतिक फुलवारी में कश्मीर की आज़ादी तक के नारों तक कई प्रमाण मिलेंगे इस वामपंथी पार्टी के असर के.
जिन्हें लाल सलाम करते हुए चीन की तरफ़दारी के लिये भारत माता को गाली देने और वन्देमातरम तक का विरोध करने में बौद्धिक विलास का चरमसुख मिलता महसूस होता है, उन शीर्षस्थ राजनीतिज्ञों की प्लानिंग देखी जाए तो आश्चर्य होता है कि कैसे उन्होंने देश की राष्ट्रवाद और धार्मिक चेतना का आधार पहचान लिया और उनके सारे वार उन्हीं जगहों पर हुआ करते हैं जो धार्मिकता, सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रवाद से जुड़ी होती हैं.
बीफ़ बैन का मुद्दा, दुर्गा पूजन का विरोध, शनि शिगणापुर में महिलाओं का प्रवेश, किस ऑफ़ लव मूवमेंट, LGBT राइट्स, भगवा आतंकवाद का प्रोपेगण्डा, फिल्मों के माध्यम से इतिहास को विकृत कर परोसना… ऐसे कितने ही मामले हैं जहाँ उन कम्यूनिस्ट मानसिकता से पोषित लोगों के तर्कों और षड्यंत्रों की पोल खुलती नज़र आती है.
इन 92 सालों के हिसाब देने बैठेंगे तो किताब ही बन जाएगी इसलिए बिल्कुल ताज़ा उदाहरण लेते हैं.
हाल ही में राजस्थान के राजसमंद में लव जिहाद के नाम पर की गई एक मुस्लिम मजदूर की हत्या के विरोध में देश की जनता के बाद अब मशहूर हस्तियों ने भी बोलना शुरु कर दिया है.
मैं स्वयं किसी भी हिंसा के खिलाफ़ हूँ, मगर देश के कानून के जानकार भी कहते हैं आत्मरक्षा में उठाए क़दम में अगर किसी की हत्या हो जाये उसे ग़ैरइरादतन हत्या ही माना जाता है.
मग़र साहब, शम्भूनाथ के एंगल को तो वामपंथी मीडिया ने दबा ही दिया ना, जो नैरेटिव परोसा गया उसके हिसाब से तो वो एक fanatic भगवा आतंकी युवक था… अब उसका ये गुस्सा जायज़ था या नाजायज़, ये तो तब पता चलेगा जब उसकी बात भी सुनी जाएगी.
आप देखें तवज्जो उन्हें नहीं मिल रही जो शम्भूनाथ के पक्ष को सुनने की वक़ालत कर रहे हैं, मीडिया में तवज्जो उन्हें मिलती है जो उसके खिलाफ़ विघटनकारी विचारधारा से प्रभावित हो बातें करते हैं.
जैसे, इस मुद्दे को लेकर फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने हिंदुत्व के खिलाफ गुस्सा जाहिर किया है. राजसमंद वाली खबर का एक लिंक अपने ट्वीट में जोड़ते हुए अनुराग कश्यप ने लिखा “तो ऐसा ही होता है…. लव जिहाद, गौरक्षा, सभी वजहों की आड़ में हिंदुत्व अपनी गंदगी का छिपाता है.”
So this is what happens.. love Jihad, Gau Raksha, every excuse hindutva offers is used to hide one'S own monstrosity https://t.co/5YeLQ5JVv0
— Anurag Kashyap (@anuragkashyap72) December 25, 2017
अनुराग ने अपने ट्वीट में जिस खबर का लिंक लगाया है उसमें कहा गया है कि आरोपी ने अपने अवैध संबंध को छिपाने के लिए पश्चिम बंगाल के मजदूर अफराजोल की लव जिहाद का टैग देकर निर्मम हत्या कर दी.
अनुराग के इस ट्वीट पर एक्टर एजाज़ खान ने भी उत्तर दिया है कि “बिलकुल सही कहा सर, ये हिंदू, हिंदुस्तान और हिंदुत्व के असली दुश्मन हैं. अब आप अपनी रक्षा करें क्योंकि ये आपको ट्रोल करेंगे. राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी दिखाने के लिए आपका सम्मान.”
क्या आप सब भी देख पा रहे हैं कैसे ये ग्रुप में एक दूसरे का साथ देते हैं, किस तरह मिल कर षड्यंत्र को अंजाम देते हैं.
हालाँकि, विवादित बयानबाज़ी और विवादित संवादों वाली फिल्म निर्माण के लिए ख्यातिलब्ध अनुराग कश्यप ने अपने ट्वीट पर यही कहा कि ये कोई हथकंडा नहीं है लेकिन इस पर कई ट्विटर यूज़र्स ने अपनी प्रतिक्रिया दी हैं.
एक यूज़र ने लिखा “अब मुक्काबाज की कोई बात नहीं कर रहा है तो ये मोदी जी की गलती नहीं है. भाई जी ये विषय काफी पुराना हो चुका है और आपको मीडिया का अटेंशन नहीं मिलेगा. जल्दी से पीएम को गाली देने वाला ट्वीट करो, मीडिया भी हाथों-हाथ लेगा और फोकट में फिल्म को पब्लिसिटी मिल जाएगी.”
ये ट्वीट्स, ये ट्रोल… अभिव्यक्ति का ये सारा जंजाल देखकर एक बात अच्छे से समझ आती है कि साहब 1925 से लेकर 2017 तक में कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी विचारधारा भले अपने उत्तुंग से धरातल पे लोटती नज़र आ रही है, मगर इस सत्य को कोई नहीं झुठला सकता कि साहित्य और सिनेमा जगत के लोगों ने आसानी से ये ज़हर स्लो पॉइज़न की तर्ज़ पर देश भर में हमेशा फैलाया और आज भी उनके कॉमरेड इसी कार्य मे संलिप्त हैं.
जैसा भी है, जिन्हें जिस्म के लहू के लाल रंग को क्रांति से जोड़कर देखने की आदत है उनसे कहना चाहूँगा, कॉमरेड क्यों ना एक अभिनव क्रांति देश की समृद्धि के नाम की जाए.
92 वर्षों में जो मार्क्स के सपने पूरे ना कर सके तुम… तो अब कृष्ण, कबीर, गोरख, विवेकानंद, गाँधी, टैगोर, तिलक के इस देश के सनातन सपने को पूरा करने की क्रांति की जाए.
“सर्वे भवन्तु सुखिनः ” अगर संस्कृत में पसंद ना हो तो इसे हिंदी, इंग्लिश, बांग्ला, मलयालम, मराठी, कन्नड़, तेलगु, तमिल और अन्यान्य भाषाओं में पढ़ लेते हैं और उसके अर्थ को व्यवहारिक रूप से सफल बनाते हैं… शुभमभवतु.