यद्यपि व्यक्तिपूजा से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं, लेकिन अटल जी के व्यक्तित्व के सम्मोहन का ही प्रभाव है कि उनका कोई फोटो सामने आते ही विशुद्ध ब्राह्म्णत्व से ओतप्रोत दीप्त आभा….. ओजपूर्ण वाणी….. गंभीर बातों को भी हंसा हंसा कर लोटपोट करने के अंदाज में कहने वाले भाषण….. आदि ये सारे तथ्य एक साथ याद आते हैं तो मन में सहसा ही अपनत्व, श्रद्धा, सम्मान और प्रेम का सागर सा उमड़ आता है.
सबसे पहली बार 14 वर्ष की अवस्था में 1974 के विधान सभा चुनाव में मथुरा में उनका भाषण सुना….. राशन की दुकान पर बिकने वाले गेंहू की क्वालिटी के बारे में बताते हुये कहा “हम झोला लेके राशन लेने पहुंचे …..
दुकानदार बोला ‘साब आपके लायक नहीं हैं’…… हमने पूछा “तो हम क्या इतने नालायक हैं ?
और श्रोताओं की ठहाकों का कोई ठिकाना नहीं था.
1979 में वे आगरा आए तब दालों की क्रायसिस थी. उन्होंने बताया – “दाल हमको भी पसंद है, घर में मेहमान आ जाता तो फिर तो, तीन बुलाये तेरह आए दे दाल में पानी.
“हम किसी भी देश में जाते तो मोरारजी भाई हमसे कहते- ‘जरा दाल की पूछ ताछ करते आना’
और हम खाने की मेज पर सबसे पहले पूछते- ‘डू यू हैव पल्स?’
मेजबान अपने रसोइये की ओर देखते उससे पहले ही बताना पड़ता- “खरीदनी है भाई….”
इधर श्रोताओं के हँसते हँसते पेट फटे जा रहे थे.
अपने विदेशमंत्री काल में पाकिस्तान के लिए बंद पासपोर्ट वीजा खोल कर वे पाक नागरिकों के अज़ीज़ बन चुके थे. इसी भाषण में उन्होंने लाहौर के अनार कली बाजार में अपने यूं ही पैदल भ्रमण के अनुभव बताए तो अखंड भारत की कल्पना की हुक सी उठा दी थी.
भारत की गुट निरपेक्ष नीति के बारे में बताते हुये “न हम इधर झुकेंगे ना उधर हम तो सीधे खड़े रहेंगे” कह कर जब अटल जी सीधे खड़े होते थे तो उनका वो अंदाज श्रोताओं को हँसाए बिना नहीं रहता था.
1980-81 में जब हरियाणा के एक घटनाक्रम में भजनलाल पूरे मंत्रिमंडल को लेकर कांग्रेस में शामिल हो गये तो अटलजी का कहना – “भजन लाल अपनी पूरी भजन मंडली को लेकर ही कीर्तन करने चले गए”. श्रोताओं के ठहाके आसमान तक पहुंचाने के लिए काफी था.
1985 में चुनावी धांधली को लेकर मतगणना के दूसरे दिन आगरा में हुयी सभा में अटलजी ने 1984 की अपनी ग्वालियर की हार को “बड़े बे आबरू होकर तेरे कूँचे से हम निकले…..”
कह कर सहज किया लेकिन उनकी स्टायल पर श्रोता हँसे बिना ना रह सके.
1989 में जन्मभूमि पर शिलान्यास हो चुका था. लेकिन 1980 के दशक में अटल जी की छवि उदार हिंदुवादी की बन चुकी थी. उसी दौरान वे आगरा में सरस्वती विद्या मंदिर के एक कार्यक्रम के सिलसिले में आए, तब उनका भाषण अपेक्षा के विपरीत हास्य के स्थान पर गंभीरता का लहजा लिए हुये था.
उन्होंने इस भाषण में चंदे के संबंध में एक जबर्दस्त बात कही – “इस समाज में दानदाताओं की कोई कमी नहीं है, बस देने वाले को विश्वास होना चाहिए कि जिस कार्य के लिए चन्दा मांगा जा रहा है ये पैसा उसी कार्य में लगेगा….”
और इसी भाषण में जोशपूर्ण स्वर में जब कहा – “शिलान्यास विद्यामन्दिर का हो या राम मंदिर का, लेकिन जब शिलान्यास हो ही गया तो निर्माण भी हो कर रहेगा”
मुझे नहीं अंदाज कि उनके इस वाक्य ने श्रोताओं में ना जाने कितना जोश भर के रख दिया था, और उधर उदार हिंदूवादी का जबरन लेबल चिपकाने वाले पत्रकारों के लिए अटलजी भी संघ के कट्टरवादियों की थैली के ही चट्टे बट्टे बन चुके थे.
1996 में सबसे पहली बार PM बनने पर विश्वास मत की बहस का अंतिम वाक्य-
“संख्या बल हमारे पास नहीं है मैं राष्ट्रपति महोदय को स्तीफ़ा देने जा रहा हूँ…….”
निश्चय ही लोकसभा के भाषणों के गिने चुने वाक्यों में सबसे ऊपर होगा.
1999 में एक मत से सरकार गिरने के अविश्वास मत वाले भाषण का वो वाक्य “चित्त भी मेरी पट्ट भी मेरी अन्टा मेरे बाप का….” तो हर किसी की जुवाँ पर चढ़ के बैठ गया था.
कुछ लोग कहते हैं अटलजी ने इंदिरा जी 1971 में को दुर्गा कहा था, लेकिन नहीं अटल जी ने 1984 में इंदिराजी के निधन पर आकाशवाणी को दिये संदेश में दुर्गा अवश्य कहा था. यद्यपि रेडियो पर सुने वे शब्द सामान्य शिष्टाचार और लोकाचार का अंग थे लेकिन वे शब्द मुझे कुछ चुभे थे सो याद रह गए.
और जब 2004 में नरसिंहाराव जी का देहांत हुया तब अटल जी द्वारा उनको ‘आज के युग का चाणक्य’ बताया तो यकायक तमाम समझदार लोगों को उनके वर्षों पूर्व बाबरी ध्वंस पर उनकी दी गयी चुनौती “जिसने भी ये किया है वो सामने आकर अपना अपराध स्वीकार करे” का पूरा पूरा रहस्य समझ में आ गया था.
विशाल हृदय के स्वामी दुश्मनों तक के हृदय में स्थान बना कर रखने वाले अटलजी यद्यपि आज अस्वस्थ हैं लेकिन उनके महान व्यक्तित्व का ही एक प्रभाव है कि मुझे उनकी ये तमाम बातें क्षण भर में मेरे आँखों के सामने फिल्म की रील की तरह गुजर गईं है.
उनके जन्मदिन पर बार-बार बधाई ! नमन ! उनके स्वास्थ्य लाभ की असीम कामनाएं !
पुनश्च (16 अगस्त 2018) : (अटलजी के जन्मदिन के लिए लिखा लेख उनकी मृत्यु पर श्रद्धांजलि स्वरूप)