मेरे पास आदेशों से भरी एक देह है
और है प्रतिज्ञाओं से तपी एक आत्मा
इच्छाओं का बोझ ढोते हुए
दुष्ट-स्वप्न मेरी नींद खराब करते हैं
मेरे लिए नींद का अर्थ है
नमकीन गुनगुने पानी में गहरे उतर जाना
एक दिन सच में,
मैं यूँ ही गुजर जाऊँगा.
गुनगुने पानी के भीतर मछलियों से बात करते हुए- कि
तुम्हारी तरह मैं भी कभी नहीं सो सका
देह के आदेशों की सीमाएं तोड़ कर
आकाश के सीने पर अवज्ञा के पैर पटकता हुआ
मैं निकल जाऊंगा एक दिन,
समय के चक्रव्यूह की तमाम लिखत-पढ़त को
बेपरवाह फाड़ता हुआ.
बुद्धकालीन किसी वृक्ष के नीचे जा कर
एक ‘डूब-नींद’ बिछाऊंगा
देह और आत्मा का एक संयुक्त बयान जारी कर सो जाऊंगा
कि तथागत आयें
तो मुझे दो बार जगा देना!