कांग्रेस के घिनौने दाँवपेंचों से निपटने के लिए मोदी-शाह को चलाना ही होगा ब्रह्मास्त्र

क्यों कांग्रेस गाँधी परिवार को ही अपना सर्वेसर्वा मानती है?

क्यों लगातार असफलताओं और तमाम आलोचनाओं के बावजूद राहुल गाँधी को अध्यक्ष बना दिया गया?

क्यों कांग्रेसी इस परिवार की इतनी चाटुकारिता करते हैं?

क्यों मीडिया कांग्रेस के ही पक्ष में माहौल बनाता है?

ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हर किसी के मन में आते हैं लेकिन समझ नहीं पाते कि आखिर ऐसा क्यों होता है? इसके लिए कुछ बातों को बारीकी से समझना होगा.

जब नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने इसकी नींव उसी दिन डाल दी गई थी कि भारत एक भ्रष्टाचार युक्त, पिछड़ा, जातिवाद, धर्म की राजनीति करने वाला देश होगा. सत्ता पाने के लिए हर पैंतरा अपनाया जाएगा, देश का विकास हो न हो कांग्रेस सत्ता में बनी रहना चाहिए.

इस सबकी जड़ में है पैसा, सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता बस यही मूलमंत्र है कांग्रेस का. कांग्रेस भ्रष्टाचार की वो महानदी है जिसमें कांग्रेस और उसके चहेतों ने जमकर डुबकियाँ लगाई हैं, खूब अठखेलियाँ खेली हैं.

चाहे वो व्यापारी हों, उद्योगपति हों, नौकरशाह हों, सरकारी कर्मचारी हों, मीडिया के लोग हों, हर किसी ने इस महानदी में भरपूर स्नान किया है.

भरपूर पैसा और सत्ता की ताक़त सिर्फ इसी कारण से काँग्रेसियों में इस परिवार की चाटुकारिता की होड़ मची रहती है.

अक्सर कई लोगों को कहते सुना है कांग्रेस जब भी आती है खूब कमाई होती है. ‘मलाईदार मंत्रालय’ ‘मलाईदार विभाग’ ये शब्द कांग्रेस की ही देन है और गाँधी परिवार इस भ्रष्टाचारी परिवार का वो धागा है जिसने इन सभी ‘मोतियों’ को एक सूत्र में पिरोकर रखा है.

गुटबाजी में भी कांग्रेसी पीछे नहीं हैं. यहाँ एक पार्टी के भीतर अनेक ‘पार्टियाँ’ हैं. सबके खेमे हैं और कौन सा खेमा ज़्यादा असरदार है, गाँधी परिवार के नज़दीक है उसकी पूछ परख ज़्यादा होती है.

अगर कांग्रेस में गाँधी परिवार के अलावा किसी और को पार्टी की कमान सौंपी गई तो ये सारे मोती बिखर जाएँगे क्योंकि यहाँ भीतर ही भीतर बहुत बड़ी जंग चलती है और ये किसी दूसरे के नाम पर कभी एकमत नहीं हो सकते.

अब गाँधी परिवार की कुछ ख़ासियतें हैं जिसके कारण पूरी कांग्रेस एकजुट हो जाती है. घोटालों की शुरुआत तो नेहरू के ज़माने से ही हो गई थी. फिर इंदिरा के राज में भ्रष्टाचार जमकर फूला फला, इंदिरा गाँधी को तो विरोध बर्दाश्त ही नहीं था. जिसने इंदिरा के खिलाफ आवाज़ उठाई उसे आवाज़ को या तो दबा दिया गया आवाज़ करने वाले को ही हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया.

फिर इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजनीति से कोसों दूर राजीव गाँधी को कांग्रेसियों ने अपना नेता बना लिया, इंदिरा के हत्या के बाद उनकी ‘अस्थि कलश यात्रा’ देश भर में निकाली गई, जिस शहर, गाँव, बस्ती में ये अस्थि कलश यात्रा जाती वहाँ लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता.

‘अस्थि कलश यात्रा’ के जरिये कांग्रेसियों ने इंदिरा गाँधी की मौत को भी एक ‘मार्केटिंग टूल’ के तौर पर इस्तेमाल किया और इसके बाद हुए आम चुनावों में ‘सहानुभूति की लहर’ पर सवार राजीव गाँधी जैसे नौसिखिए ने पहली बार 400 से ज़्यादा लोकसभा सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. भाजपा के पास सिर्फ दो सीट थी.

प्रचंड बहुमत के बाद मैदान साफ था और नौसिखिए राजीव गाँधी के पास ‘सलाहकारों’ की एक टीम हुआ करती थी और यही राजीव से वो सब करवाती थी जिससे पैसों की बारिश हो सके. वीपी सिंह ने जब सत्ता में रहते हुए बोफोर्स घोटाले का मुद्दा उठाया तो कांग्रेस ने वीपी सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया.

‘ईमानदारी के धंधे’ की शुरुआत वीपी सिंह ने ही की थी. वीपी सिंह चुनाव लड़े, प्रधानमंत्री बने और देश को आरक्षण की आग में झोंक दिया. सत्ता का नशा ही कुछ ऐसा होता है कि कोई इसकी खुमारी से बाहर ही नहीं आना चाहता.

लेकिन सत्ता से बाहर कांग्रेस ने वीपी सिंह की सरकार को भी टिकने नहीं दिया, सरकार गिराने और बनाने के लिए तरह तरह के दाँवपेंच कांग्रेस ने अपनाए. चंद्रशेखर, देवेगौड़ा, गुजराल इन सभी को अपनी पारी पूरी करने ही नहीं दी गई. अटलजी की खिचड़ी सरकार भी एक वोट से गिरा दी गई.

देश की जनता बेबस सत्ता के इस घिनौने खेल को देखती रही लेकिन कर कुछ नहीं सकती थी. तब विपक्ष इतना मजबूत नहीं था और मीडिया तब भी कांग्रेस का चाटुकार था और आज भी है क्योंकि मीडिया के बड़े खिलाड़ी भी कहीं न कहीं आस लगाए बैठे हैं कि आज नहीं तो कल कांग्रेस दुबारा सत्ता में होगी और ‘मलाई’ खाने का दुबारा मौक़ा मिल जाएगा.

राजीव की हत्या के बाद एक और नौसिखिया सोनिया गाँधी को कांग्रेस ने अपना नेता बनाया और पार्टी की कमान उनके हाथों में सौंप दी.

‘सलाहकारों’ की टीम सोनिया के साथ भी हो ली और बड़ी चालाकी से देश के सिस्टम में सभी दूर कांग्रेसी या कांग्रेस हितैषी बिठा दिए गए. ‘जज बनाने की विधि’ भी देश ने देखी है.

अटलजी की सरकार ने 1998 से 2004 के बीच बहुत बेहतर काम किया, स्वर्णिम चतुर्भुज, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, परमाणु परीक्षण सब अटलजी की सरकार की देन है.

देश का विदेशी मुद्रा भंडार कई गुना बढ़ चुका था. लेकिन उत्साह से भरी भाजपा से यहीं एक चूक हो गई वो थी लोकसभा चुनाव जल्दी कराना और “इंडिया शाइनिंग” का नारा देना.

कांग्रेस ने मीडिया के साथ मिलकर इंडिया शाइनिंग की हवा निकाल दी, सिर्फ नकारात्मक बातों का प्रचार किया गया और अटलजी की को बेदखल कर दिया गया. कांग्रेस का मीडिया मैनेजमेंट 2004 में सरकार बनाने में बहुत काम आया.

सोनिया के ‘त्याग’ से बने देश के बेहद ईमानदार (?) महान अर्थशास्त्री (?) मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री दुनिया के नज़रों में थे लेकिन उन्होंने 10 साल प्रधानमंत्री पद की केवल ‘नौकरी’ की थी.

उनको सिर्फ वही करना होता था जो ‘सलाहकारों’ की टीम मैडम से आदेश दिलवाती थी. देश को सबसे बड़ा नुकसान 2004 – 2014 मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही हुआ लेकिन कांग्रेस, उसके सहयोगी दल और सभी चहेते सत्ता की चाशनी में लोट लगा लिए थे.

अब राहुल गाँधी को पार्टी की सत्ता सौंप दी गई है लेकिन अब हालात ज़रा विपरीत हैं. कांग्रेस के सामने नर्म अटलजी की बजाय कड़क और कांग्रेस से खुन्नस खाये नरेंद्र मोदी हैं जो कांग्रेस को ज़मींदोज़ करने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ते.

‘सलाहकारों’ एक बहुत बड़ी फौज राहुल के साथ भी काम कर रही है लेकिन ‘नैसर्गिक कमी’ राहुल गाँधी के कारण कांग्रेस को अक्सर मुश्किल में डाल देती है और अब सोशल मीडिया भी पूरी ताक़त से कांग्रेसी मीडिया और कांग्रेस से लड़ रहा है, सीधे शब्दों में कहें तो देश का आम नागरिक ही कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहा है. मीडिया के धुरंधरों की नाक में किसी ने दम करके रखा है तो वो यही सोशल मीडिया है.

सत्ता से दूर रहकर काँग्रेस की हालत ‘जल बिन मछली’ जैसी हो जाती है इसलिए कांग्रेस 29 चुनाव हरवाने के बावजूद राहुल गाँधी को अपना नेता बना चुकी है. देशी विदेशी तमाम एजेंसियों का सहारा लिया जा रहा है.

संसद को बेवजह ठप्प किया जा रहा है, मोदी पर चौतरफ़ा हमले किये जा रहे हैं. तरह तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. “छद्म हिंदुत्व” को भी अपना लिया गया है, इंडिया शाइनिंग की ही तरह “विकास” को भी पागल, सनकी घोषित करने की तैयारियाँ हो चुकी हैं.

शह और मात का खेल जारी है, फिलहाल बाज़ीगर तो मोदी ही हैं. लेकिन 2019 का चुनाव बहुत अलग होगा, मोदी-शाह को कांग्रेस के इन दाँवपेंचों से निपटने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाना ही होगा.

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