हम विवेकवान टाइप के लोग हैं… विवेक की अधिकता के कारण छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना हमारी प्रतिष्ठा के विपरीत है, इसलिए हम हेडलाइन देखते ही प्रतिक्रिया देने लगते हैं.
आज एक समाचार मिला… 2G घोटाले के सभी आरोपी बरी.
प्रतिक्रियाएं कुछ इस तरह से आईं-
न्यायालय/ न्यायाधीश बिक गए.
भाजपा सरकार की नाकामी है ये.
भाजपा तमिलनाडु में द्रमुक के साथ चुनाव लड़ना चाहती है इसलिए इनको छुड़वा दिया.
घोटाला तो हुआ ही नहीं था इसलिए आरोपी बरी हो गए.
भाजपा वालों ने झूठा आरोप लगाया था.
याददाश्त और सामान्य ज्ञान कितना कमज़ोर है हमारा… 2G घोटाले के साक्ष्य क्या भाजपा ढूँढ कर लाई थी?
कैग के रिपोर्ट के आधार पर ही केस हुआ था… भाजपा वाले नहीं गए थे एफआईआर करने… झूठे आरोप पर सीबीआई को केस सौंपने की आवश्यकता क्यों हो गयी थी UPA सरकार को?
आज पहला प्रश्न तो मनमोहन सिंह और चिदंबरम से पूछा जाना चाहिए था पर प्रश्न मोदी जी से पूछा जा रहा है.
कैग की नियुक्ति विपक्ष नहीं करता है इतना तो सबको पता ही है, फिर भी गलत तत्कालीन विपक्ष ही था.
अब बात न्यायालय की… कुछ लोगों की प्रतिक्रिया देख कर लगता है कि उनको इतना भी नहीं पता है कि देश में सिर्फ एक ही कोर्ट मतलब सुप्रीम कोर्ट ही नहीं है.
लोअर कोर्ट, हाई कोर्ट भी हैं… सुप्रीम कोर्ट में तो मामला सबसे अंत में जाता है.
अभी तो सीबीआई कोर्ट ने निर्णय दिया है ये कहते हुए कि घोटाला तो हुआ है पर इन लोगों पर आरोप साबित नहीं हुआ है.
अब UPA के सामने प्रश्न उठाना चाहिए कि किसका दोष राजा और कनिमोझी के मत्थे मढ़ा गया था… मनमोहन सिंह और चिदंबरम जबाब दें.
कोर्ट मानता है कि घोटाला हुआ था, तब कोई न कोई तो आरोपी होगा ही… उसको क्यों नहीं ढूँढा जा रहा है?
साक्ष्य प्रस्तुत न करे सीबीआई… जाँच में ढिलाई करे सीबीआई तो उसके पीछे कौन था… उस समय का गृह मंत्रालय या 2017 का गृह मंत्रालय?
किसी भी केस में पहला काम तो जाँच का ही होता है… जाँच कार्य शुरू तो UPA सरकार के समय में ही हुआ था.
द्रमुक की स्थिति तमिलनाडु में इतनी अच्छी नहीं है कि उसको लुभाने के लिए भाजपा अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने लगेगी… थोड़ा तो सोचो आरोप लगाने से पहले.
राजनाथ सिंह और नरेंद्र मोदी अपनी भलमनसाहत की भेंट चढ़ गए क्योंकि इन्होंने इस केस पर ध्यान नहीं दिया.
भलमनसाहत भारतीयों के डीएनए में ही है इसलिए हमारा दमन होता रहा है सदियों से… धूर्तों ने इसका लाभ उठाया है…
धूर्तों पर कड़ी नज़र नहीं रखने का परिणाम ही रहा कि गुजरात में जीत के लिए इतनी मशक्कत करनी पड़ी अन्यथा गुजरात में स्थिति बहुत बिगड़ी हुई नहीं थी.
और अभी भी यही हाल रहा तो 2019 में भाजपा की हालत गुजरात जैसी ही होगी, क्योंकि समर्थक भी विपक्षियों के सेट किए हुए एजेंडे पर ही चलेंगे… अपना दिमाग लगाना प्रतिबंधित जो है समर्थकों के लिए.