मैंने सोचा पहले सभी का स्यापा खत्म हो जाए, गुजरात पर छाई भरम की धूल छंट जाए, फिर अपनी बात कहूंगा. मतगणना के दिन नतीजों ने एक पल मुझे भी बहका दिया था इसलिए स्यापा करने वालों से मुझे अलग न माना जाए.
स्यापा इस बात का है कि कांग्रेस इतनी सीटें कैसे ले आई. मोदी का मैजिक नहीं चला. ये भाजपा की नैतिक हार है. मोदी की हड्डियां गल गई हैं. नोटा का प्रयोग हिंदुओं ने किया. तमाम बातें चल रही लेकिन इन सबके बीच आप एक सकारात्मक बात भूल ही गए.
युवा पीढ़ी के अवचेतन में ये बात नहीं है लेकिन 70 के दशक में पैदा हुए लोग भी भूल गए. तीस वर्ष पूर्व देश मे क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व न के बराबर था. 80 के दशक में भाजपा दूसरी बड़ी पार्टी बनने लगी थी.
इसके बाद के वर्षों में क्षेत्रीय दलों ने अपनी शक्ति इस कदर बढ़ाई कि वे सरकार बनाने में प्रमुख घटक समझे जाने लगे. इसका असर ये हुआ कि कांग्रेस-भाजपा को उत्तरप्रदेश, बिहार में अपना जनाधार गवांना पड़ा.
स्थिति ये बन गई थी कि सपा, बसपा, अकाली दल जैसी पार्टियां केंद्र सरकार में भागीदार बन रही थी. इन दलों का देश के बाकी हिस्सों में कोई प्रभाव नहीं था लेकिन सीटों की गर्मी उन्हें सरकार में पहुंचा ही देती थी.
इन्ही छोटे दलों के कारण भारत ने लंबे वक्त तक अराजकता का माहौल देखा है. ग्यारहवीं लोकसभा केवल डेढ़ वर्ष ही चल सकी. बारहवीं लोकसभा केवल 413 दिन ही चल सकी. ये वो समय था जब क्षेत्रीय दल केंद्र की राजनीति पर हावी थे.
कांग्रेस को भी छोटे दलों की मदद से सरकार चलानी पड़ी थी. अटल जी भी इस ‘पच्चीस कुनबे वाली सरकार’ को मनमाफ़िक नहीं चला सके थे. कुल मिलाकर छोटे दलों ने भारतीय राजनीति में एक ‘अस्थायित्व’ पैदा कर दिया था. ये अस्थायित्व इन दलों के लालच से जन्मा था.
बाद के वर्षों में देश के लोगों को समझ आ गया कि कोई भी सरकार पांच साल चलना आवश्यक है. इसके लिए एक ही दल को बहुमत देना आवश्यक है. लोगों ने ये भी समझा कि सपा, शिवसेना, बसपा अपना जनाधार कभी पूरे देश मे नहीं बढ़ा सकते.
गुजरात में भाजपा को बहुमत मिला है. ऐसा नहीं कि वो किनारे पर आकर जीती हो. राजीव गांधी की ऐतिहासिक जीत कभी दोहराई जाएगी, विश्वास नहीं था क्योंकि बड़े दलों का आधार सिमट गया था.
फिर हमने 2014 में भाजपा की ऐतिहासिक जीत देखी. कहां थे क्षेत्रीय दल. क्या वे भाजपा को ब्लैकमेल कर पाए. आज भी मोदी अपने अंदाज़ में सरकार चला रहे हैं. मोदी पर कोई सवालिया निशान नहीं लगे हैं.
टीवी चैनल राहुल की सम्मानजनक हार का फायदा कैसे भी कांग्रेस को पहुंचाना चाहते हैं. एक शानदार जीत को छोटा दिखाया जा रहा है. आने वाले हर चुनाव में भाजपा ऐसे ही जीतेगी. फाइट कर के. क्योंकि क्षेत्रीय दल अब भारतीय राजनीति के कोने में सिमट रहे हैं.
हमें मजबूत विपक्ष चाहिए, बिखरा हुआ नहीं. लोकतंत्र के हिसाब से गुजरात के परिणाम आदर्श माने जाने चाहिए.