फरवरी 2002 में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर भारत और इंग्लैंड के बीच 6 एक दिवसीय मैचों की सीरीज का फाइनल था क्योंकि भारत 3-2 से आगे था.
इंग्लैंड ने 255 रन बनाए थे और भारत की टीम बाद में बल्लेबाजी करते हुए 250 पर आल ऑउट हो गई और सीरीज़ 3-3 से बराबर हो गई.
आखरी विकेट गिरते ही इंग्लैंड के गेंदबाज एंड्रयू फ्लिंटॉफ ने अपनी शर्ट उतारी और हवा में लहराई और खुशी के मारे झूमने लगे. भारत के कप्तान सौरव गांगुली नाखून चबाते हुए ये सब देख रहे थे.
खैर… उसी यानि साल जुलाई 2002 में भारत और इंग्लैंड फिर से एक फाइनल मुकाबले में आमने सामने थे और मैच खेला जा रहा था क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स के मैदान पर.
325 रन बनाकर इंग्लैंड की टीम बेहद मज़बूत स्थिति में थी, बाद में बल्लेबाजी करने आई भारतीय टीम के 5 महत्वपूर्ण विकेट मात्र 146 रनों पर गिर चुके थे और सभी को भारत की हार अवश्यम्भावी लग रही थी लेकिन युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ़ ने जमकर किला लड़ाया और एक संभावित हार को जीत में बदलकर रख दिया.
विजयी रन बनाते ही सौरव गांगुली ने लॉर्ड्स की ऐतिहासिक बालकनी में अपनी शर्ट उतारकर फ्लिंटॉफ से भी ज़्यादा उत्साही अंदाज़ में लहरा दी और दौड़कर मैदान पर आकर मोहम्मद कैफ़ से लिपटकर उनको नीचे गिराकर अपनी बेइंतहा खुशी का इज़हार कर रहे थे.
पूरी दुनिया गांगुली के इस अंदाज़ पर हैरान भी थी और प्रसन्न भी थी. फ्लिंटॉफ के शर्ट लहराने को गांगुली भूले नहीं थे और फ्लिंटॉफ को उन्हीं के अंदाज़ में शर्ट लहराकर गांगुली ने अपने उस तेवर की झलक दुनिया को दिखाई जिसके लिए वो जाने जाते रहे हैं.
कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी केंद्र में सत्ता के रहते बेहद परेशान किया, घंटों जाँच एजेंसियों से पूछताछ करवाई, अमित शाह को गृहमंत्री होने के बावजूद जेल में डाला. हर मौके पर बदनाम किया, गालियाँ दीं, कभी चायवाला कहकर तो कभी उनकी पत्नी को लेकर उनपर छींटाकशी की, मोदी सब सहते रहे बोले कुछ नहीं. कांग्रेस शर्ट उतारकर लहराते हुए अट्टहास लगाती रही.
फिर आया 2014 में लोकसभा का चुनाव और कांग्रेस को इतिहास की पहली करारी हार मिली. इसके बाद तो जैसे हार और कांग्रेस का चोली दामन का साथ हो गया. कांग्रेस लगातार चुनाव हारती रही मोदी मुस्कुराते रहे.
कांग्रेस को उसी के तौर तरीकों से मोदी एड़ी चोटी के ज़ोर कराते रहे. अपने साथ हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए अमित शाह ने राज्यसभा सीट के लिए अहमद पटेल जैसे कद्दावर नेता को नाकों चने चबवा दिए. घबराए पटेल और कांग्रेस को अपने विधायकों को बेंगलुरु भेजना पड़ा और ये भी तय था कि अगर कांग्रेस अपने विधायकों को बेंगलुरू नहीं भेजती तो आज अहमद पटेल राज्यसभा में नहीं होते.
लगातार हार से बौखलाई कांग्रेस ने मोदी और शाह को उन्हीं के गृह राज्य में घेरने और हराने की जुगत लगाई और अपनी घाघ चालों, नकली हिंदुत्व के मुखौटा पहनकर, विकास का मज़ाक उड़ाकर, व्यापारियों को भड़काकर, मुसलमानों से पूरी तरह से दूरी बनाकर, अपना वर्षों पुराना फॉर्मूला जातिवाद का ज़हर फैलाकर, हर तरह के हथकंडे अपनाकर गुजरात को जीतने की भरसक कोशिश की, न जीत पाने पर गुजरात में आग लगाने तक की धमकी कांग्रेस नेताओं ने दे दी.
कल जब परिणाम आने शुरू हुए तो भाजपा की स्थिति एक बार को वही हो गई थी जो नेटवेस्ट ट्राफी के फाइनल में भारत की हुई थी. लेकिन बाद में बाज़ी पलटी और भाजपा तमाम विषमताओं के बावजूद अंततः सरकार बनाने में कामयाब रही.
गुजरात का वोटर भाजपा से हिंदुत्व की आस लगाए नहीं बैठा था क्योंकि उसे भाजपा, मोदी पर भरोसा है, कम्बल दारू में बिकने वाला वोटर गुजरात में नहीं है. उसकी नाराज़गी थी मोदी के जाने के बाद हुई अनदेखी से, थोड़ा बहुत लालच तीन लड़कों के आरक्षण कार्ड से.
इसके बावजूद हर गुजराती यही कहता था 2019 का वोट मोदी को ही जायेगा क्योंकि उसने मोदी को करीब से देखा है, उसने देखा है कि कैसे मोदी ने उनको एक भयमुक्त, दंगामुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त गुजरात दिया है.
गुजरात ने नोटा दबाया, वोट नहीं दिया लेकिन कांग्रेस का भी साथ नहीं दिया. ये जो सीटें कांग्रेस की बढ़ी हैं उसे कांग्रेस अपनी जीत नहीं माने बल्कि ये सिर्फ गुजरातियों के नोटा दबाने और वोट ही नहीं डालने का परिणाम है.
मोदी ने कांग्रेस की शर्ट ही नहीं बल्कि पतलून भी उतार दी है और स्वयं भाजपा की विजय पताका को लहरा रहे हैं… धन्यवाद गुजरात आपने अपने मोदी को हारने नहीं दिया.