इसमें दो राय नहीं कि हिन्दुत्व, पॉलिटिकल मुद्दा है, तो मेरा यह कहना है कि हम समझें हमारा हिन्दुत्व किस प्रकार का है.
क्योंकि जब हिन्दुत्व की बात करें तो मुझे दो मुख्य प्रकार समझ में आते हैं :
पहला है इमोशनल या भावुक हिन्दुत्व.
दूसरा है प्रैक्टिकल या व्यवहारिक हिन्दुत्व.
जहां तक बात समझ में आ रही है वहाँ हमारी सुई पहले मुद्दे पर ही अटकी हुई है, दूसरे तक हम पहुंचे ही नहीं.
और अगर नेताओं की बात करें तो उन्होने भी हमें केवल पहले मुद्दे में ही अटकाए रखा है. दूसरे मुद्दे की उन्हें भी कल्पना है या नहीं, कह नहीं सकते.
अगर है तो उनको इसमें निजी लाभ नहीं दिख रहा होगा. चलिये, फिलहाल उनको डाउट का बेनिफ़िट देते हैं और मुद्दे की तरफ बढ़ते हैं.
पहला, याने भावुक हिन्दुत्व क्या है?
वही सब मुद्दे जिन्हें लेकर बीजेपी की खिंचाई चल रही है. मंदिर नहीं बनाया, गौहत्या – गौवंश हत्या बंद नहीं कर पाये. हिंदुओं की उपेक्षा हो रही है. और भी मुद्दे आप जोड़ सकते हैं.
ये सब भावुक मुद्दे हैं और चुनावों में असरकारक भी हैं. Saul Alinsky के चौथे नियम को देखेंगे – विरोधी को उसके ही अधूरे वादों की याद दिलाते रहना चाहिए – एक पक्ष के लिए विचार का विषय भी हैं. और समय समय पर बीजेपी इनपर बचावात्मक होती दिख भी रही है.
लेकिन यह बताएं, इन मुद्दों पर कार्रवाई हो भी जाये तो आप को क्या फायदा होगा? या फिर हिंदुओं को क्या फायदा होगा?
नहीं, पंद्रह लाख वाला स्यापा नहीं कर रहा हूँ, यहाँ आप को प्रैक्टिकल या व्यवहारिक हिन्दुत्व से मिला रहा हूँ.
कुछ मुद्दे दे रहा हूँ जो कि बिलकुल tip of the iceberg हैं, इस लिस्ट में वृद्धि हो सकती है और होती रहनी भी चाहिए. बस इतना ख्याल रखा जाये कि लिस्ट को इतनी लंबी न बनाएँ कि वो अव्यवहारिक बन जाये.
व्यवसाय – नए एवं पारंपरिक, नए व्यवसायों की सीख देती हुई संस्थाएं, प्राकृतिक संसाधनों का विकास कर के या उनसे उत्पाद बनाकर वह भी पर्यावरण से संतुलन बनाए रखकर.
और भी बहुत हैं, यहाँ मैंने जान बूझकर यूं समझिए कुछ जोड़ा ही नहीं है ताकि आप लोग भी इन मुद्दों पर सोचें कि क्या ऐसे काम हो सकते हैं जो हिंदुओं की शक्ति बढ़ाएं?
आप ने देखा होगा, विधर्मियों का हर स्थान, उनको नए संसाधन, नए उत्पन्न के स्रोत उपलब्ध कराता है. यह सोच समझकर होता है, और यह सोच बनाए रखना भी अपने आप में एक rewarding काम है.
गाय पर भी बहुत है. और तो कुछ ऐसी बातें निकलेंगी जो कभी हो भी रही थी, लोगों को आय मुहैया करा भी रही थी, यह सोचना होगा कि बंद क्यों हुए.
क्या हमारे नेताओं ने कभी हमें ऐसी योजनाओं के बारे में कुछ कहा है? कभी इस तरह की योजनाएँ प्रस्तुत की हैं?
क्या व्यवहारिक हिन्दुत्व, भावुक हिन्दुत्व से अधिक काम का नहीं होगा? यह अपने आप में धनार्जन करेगा, अपने आप में शक्ति भी बढ़ेगी. धन शक्ति लाएगा, शक्ति बचाएगी.
समृद्ध समाज की बात नेता सुनता है, विपन्न समाज को मोहताज बनाकर नेता उसे विपन्न ही रखता है, टुकड़े फेंककर खुद सम्पन्न हो जाते हैं. सम्पन्न समाज की मांगें भी सुनी जाती हैं.
बाकी भावुक मुद्दों पर खून खराबा अधिक होगा और कुल मिलाकर नुकसान ही अधिक होगा. एक समर्थ और सम्पन्न समाज की मांगे अधिक सुनी जाती हैं, और वो अपनी मांगें मनवाने का सामर्थ्य भी रखता है… आप क्या बनना चाहेंगे?