उड़ान के लिए समतल भूमि पट्टी चाहिए होती है. जबकि यहां तो सत्तर साल नहीं, सात सौ साल के गड्ढे हैं. और कई गड्ढों में दलदल हो चुका है जिनमें काई भी जम चुकी है.
और तो और, यहां तो कइयों ने कांटे भी बिछा रखे हैं, लोहे की कटीली तारें भी, वे भी तो हटाने हैं. यह सब क्या इतना आसान है?
जो इसे बच्चों का खेल समझ रहे हैं वे फ़िलहाल खिलौनों से खेलें. वर्ना जो समझदार हैं वे समझ रहे हैं यह खेल कितना मुश्किल है.
असंभव नहीं है, हरगिज़ नहीं, मगर सतर्क हो कर एक-एक पग आगे बढ़ाना है. लेकिन जो हर पग पर तलवार भाले लेकर अपने ही सेनापति पर चढ़ पड़ते हैं वे रनवे से दूर ही रहें. और जहाज़ के उड़ने का इंतजार करें.
जहाज़ तो उड़ेगा, उड़कर रहेगा, इस धर्मयुद्ध में जीत सुनिश्चित है, क्योंकि सनातनी सेना जहाँ शकुनि की हर चाल का काट जान रही है वहीं कौरवों के पास गीता का अमृत ज्ञान नहीं.
बहरहाल, जो जल्दी हताश हो जाते हैं वे, मित्र केसरी सिंह सूर्यवंशी का शानदार लेख यहाँ पढ़ लें –
वे अस्तित्व बचाने को लड़ रहे हैं और ये जीतने के लिए.
अब भाजपा वह पुरानी भाजपा नहीं रही.
बार-बार विस्तार को प्राप्त होते विजय रथ के लिए, मोदी-अमित की जोड़ी के लिए बधाई तो बनती है मित्रों!
इनके जैसी परिश्रम शीलता… अन्य पार्टियां कभी नहीं ला पाएंगी… क्योंकि वे स्वार्थ को बचाने के लिए भाग रहे हैं और ये भारत की दुर्दशा की पीड़ा से आवेशित हो, बड़ी सावधानी से एक-एक पग धरते जा रहे हैं.
इस युद्ध में कभी दो कदम पीछे भी हटना पड़ा… मान लो हटना पड़ा तो भी उनकी श्रम बूंदें अगले ही पड़ाव पर विशाल झंझावात उत्पन्न कर विपक्षी खेमे को ध्वस्त करने में सक्षम हैं.
जो लोग आरएसएस की कार्यप्रणाली से परिचित नहीं है वे कुछ बातें अवश्य जान लें.
यह आक्रामकता कोई राहुल-वाहुल के भय से नहीं थी, यह इनका स्वभाव है. काम करने का जुनून, इनमें इस तरह भरा है कि स्वयं कई भाजपाई भी 2019 आते-आते थककर बैठ जाएंगे.
इस्पात के स्नायु और वज्र की हड्डियों वाले ही भविष्य में इस दौड़ को दौड़ पाएँगे.
अभी इनका फोकस, केवल विजय और विपक्ष से मुक्ति पर है.
आप ज़रा ध्यान से देखिए… एक-एक कर सारे महारथी धराशायी होते जा रहे हैं. सर्पसत्र की तरह स्वयं इनके बनाये यज्ञ कुंड में गिरकर झुलस रहे हैं.
कुबुद्धि से आवेशित, उनके पोषक बुद्धिजीवी… अंतर्विरोधों में ही उलझकर रह गए हैं. ज़ार-ज़ार रोते अनुयाइयों और तार-तार होते साम्राज्य के रुदन कांड के बाद केवल सिसकियां शेष हैं.
देश को दिये गए अनन्त दुःखों के वे दुर्दिन याद करो मित्रों… और उनके उस विराट-विशाल साम्राज्य की आसुरी विपदा को स्मरण करो, जब हरेक नया जन्मा हिन्दू बच्चा, इनकी कृपा के बिना हिन्दू ही नहीं रह पाता था…
सारे अधिकारों और संसाधनों से मनमाना बलात्कार किया जाता था, बड़ी बेशर्मी से अपने साम्राज्य शिखर से नित्य हिन्दू अस्मिताएं खण्ड खण्डित की जाती थीं… और दूर-दूर तक कोई उपाय नज़र नहीं आता था…
आपको क्या लगता है… भाजपा इसे भूल जाएगी?
भाजपा का कांग्रेसीकरण हो जाएगा?
यहां भी त्याग और शहीदी के पुरस्कार बांटे जाएंगे?
यहां भी वही मिथ्या योग्यतावाद ढोया जाएगा?
कभी नहीं.
कदापि नहीं.
प्रबल वृष्टि के बाद कुछ अवांछित खर पतवार उगे होंगे पर उन्हें हरगिज़ पसरने नहीं दिया जायेगा.
हाँ जी… क्या आप दौड़ सकते हैं…
तो आइए… अपनी वज्र हड्डियों और इस्पात स्नायु मंडल को साथ लाइए.
वे नहीं जलेंगे.
बाकी सब भस्म होने वाला है… निश्चित ही…
इनको खरा सोना चाहिए… आपके पास है तो बाहर निकालिये.
कचरा देख कर डरना नहीं.
2019 में खाण्डव दहन होगा.