बाईस वर्षों तक निरंतर भाजपा की जनप्रतिनिधि-सरकार बनी रहने के बाद उसके लिए ‘एंटी इनकम्बेंसी’ की ‘चर्चा’, संख्या-बहुल पाटीदारों द्वारा भाजपा के विरुद्ध काँग्रेस-प्रेरित षड्यंत्र…
राहुल गांधी के द्वारा मात्र दिखावे लिए अवसरवादी मंदिर-यात्रा के राजनैतिक तमाशे से जनता को काँग्रेस की तरफ मोड़ने का प्रयत्न…
‘जी.एस.टी’ और ‘पुनर्मुद्रीकरण’ पर प्रधानमंत्री मोदी के जनहितकारी साहसिक निर्णयों को ले कर विपक्षियों द्वारा जनता को गुमराह किये जाने के प्रयत्न…
और काँग्रेस व कम्युनिस्टों समेत सभी विपक्षियों के द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर असभ्य व शाब्दिक आक्रमणों की बौछार!
भाजपा के विरुद्ध निर्मित किये गए ऐसे कठिन वातावरण में भाजपा ने यह चुनाव लड़ा.
ऐसे में भाजपा केवल साधारण बहुमत से भी अगर यह चुनाव जीत जाती है तो यह भाजपा की विस्मयकारी व विशाल विजय होगी.
इन अन-अनुकूल परिस्थितियों में अगर गुजरात की जनता भाजपा को विजय का सेहरा पहनाती है तो राष्ट्र के चुनावी इतिहास में संभवतः यह पहली बार होगा कि इतने सारे प्रतिकूल कारकों के बावजूद भी कोई दल चुनाव जीत रहा हो और वो भी परिपक्व होते इस लोकतंत्र में.
इन तमाम प्रतिकूल अवयवों के बावजूद भी अगर भाजपा की विजय होती है तो उसका सर्वाधिक प्रमुख कारण यह है कि भारतीय लोकतंत्र अब परिपक्व हो रहा है और परिपक्व लोकतंत्र में जनता जानती है कि देश-हित में कौन सा दल सर्वाधिक उपयुक्त है जो देश को विकास की गति दे सकता है.
देश को अब उन नकारात्मक दलों में कोई रूचि नहीं है जो आपके सफ़ेद कपड़े पर कालिख का एक दाग स्वयं लगा देते हैं और फिर पूरे दिन ये कहते फिरते हैं कि आपके कपड़े पर तो दाग है.
देश को अब रूचि है तो केवल और केवल विकास में, और विकास के लिए ईमानदारी से प्रतिबद्ध दल और नेतृत्व में. देश की इस रूचि पर भाजपा निःसंदेह सबसे खरी उतरी है.