आप कुछ भी कहिये, लेकिन कोई बोला कि कांग्रेस अध्यक्ष भाई राहुल गांधी बोलने में बेहतर दिखने लगे हैं.
वह अध्यक्ष के तौर पर अहमदाबाद में अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस से लेकर गुजराती चैनलों को इंटरव्यू कम, लंबी बाइट ज्यादा तक बोलने के दौरान… प्यार-मुहब्बत-सद्भावना-सकारत्मकता आदि के जरिये राजनीति करने की बातें कर रहे हैं.
ऐसे में कुछ लोग कहने लगे हैं : राहुल सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ जा रहे हैं, यानी हिंदुत्व को ‘पोक’ कर रहे हैं.
लोग इसके सबूत भी दे रहे हैं : कहते हैं, राहुल जी महीनों से हिन्दू मंदिरों में जा रहे हैं. उन्होंने और उनकी कांग्रेस ने गुजरात चुनावों में मुसलमानों की कोई बात तो दूर ज़िक्र तक नहीं किया, सिवाय अहमद पटेल जी पर पाकिस्तान से बात करने के.
ऐसा लोग ही निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि : कुछ मंदिरों में जाकर, “हिन्दू आतंकवाद-देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का” की छाया से दूर होते ही राहुल गांधी जी की राजनीति में प्यार-मुहब्बत-सद्भाव-सकारात्मकता दिख रही है, ऐसा वे बोल भी रहे हैं.
वही लोग फिर इस अंतिम नतीजे पर पहुंचते हैं कि : राहुल खुद और अपनी कांग्रेस को नरम हिंदुत्व की तरफ ले जाकर भाजपा जैसी राजनीति करने की तैयारी में हैं.
फिर लोग फैसला सुनाते हैं : यह सही है कि केवल एक राज्य में, मात्र कुछ महीनों के नरम हिंदुत्व, मंदिरों की बात और यात्राओं के बाद राहुल जी की राजनीति में प्रेम-मुहब्बत-सद्भाव आने की बात है, लेकिन ऐसे में बीजेपी अपने शुरुआत से इसी राजनीति-दर्शन को जीती आई है.
अतः जन्म से सवा सौ साल पुरानी लेकिन सकारात्मक-प्यार-मुहब्बत की राजनीति में बीजेपी से बहुत जूनियर कांग्रेस को हिंदुत्व वाली प्यार-मुहब्बत-सद्भावना-सकारात्मकता की राजनीति सीखने में अभी बहुत समय लगेगा.
एक ने यह भी कहा : जब वही चमक-वही सफेदी कम उम्र की बीजेपी में आये, तो कोई कांग्रेस क्यों ले! बीजेपी क्यों न ले!!
और अंत में सब बोल पड़े : हमें ऐसे ‘अच्छे दिनों’ में… अकबर इलाहाबादी साहेब का ये शे’र सुनना चाहिए और इस प्यार-मुहब्बत-सद्भावना-सकारात्मकता वाली राजनीति की वजहों पर गौर करना चाहिए…
आबे ज़मज़म से कहा मैंने मिला गंगा से क्यों
क्यों तेरी तीनत में इतनी नातवानी आ गई?
वह लगा कहने कि हज़रत! आप देखें तो ज़रा
बन्द था शीशी में, अब मुझमें रवानी आ गई.
तीनत-नीयत, नातवानी-अक्षमता.