कल मंहगाई सूचकांक में हल्की सी बढ़ोत्तरी सामने आई कि टीवी अखबारों पर शोर मचने लगा.
हमारे यहाँ सबसे बड़ी समस्या है कि महंगाई सूचकांक बढ़ते ही हाय हाय मच जाती है, लेकिन भाई ये मंहगाई ही तो है जो अर्थव्यवस्था और जीवन स्तर के सुधार को ही इंडिकेट नहीं, बल्कि हमारे प्रोडक्शन की बढ़ी हुई कीमत की ओर भी इशारा करती है.
और जब तक प्रोडक्शन की कीमतें, वो चाहे औद्योगिक हों, कृषि से हों या सेवा क्षेत्र से… नहीं बढ़ेंगी तब तक आय कैसे बढ़ेगी?
और आय नहीं बढ़ी तो क्रय शक्ति कैसे बढ़ेगी… और क्रय शक्ति नहीं बढ़ी तो GDP(सकल घरेलू उत्पाद) कैसे बढ़ेगी …….
ध्यान रखिए काँग्रेसी सरकारों में व्यापारिक और कृषि क्षेत्रों में इसी एक कारण अर्थात मंहगाई के कारण ही हाय हाय नहीं मच पाती, सो ये कॉमर्स और एग्रीकल्चर क्षेत्र वाला तबका तब प्रायः खुश रहता है.
लेकिन BJP सरकारें मंहगाई से डर कर रहती हैं सो राष्ट्र का विकास सहम जाता है…
वैसे आप लोग एक छोटे से उदाहरण से समझ सकते हैं… यदि आलू दस रूपये किलो की बजाय तीस रूपये किलो हो जाता है तो आपकी रसोई पर एक महीने में बमुश्किल 150 से 300 रूपए का असर पड़ेगा…
लेकिन 500 कुंतल आलू पैदा करने वाले किसान और उससे जुड़े व्यापारी को इससे दस लाख रूपये मिलेंगे… और भारत में कुल उत्पादन का 500 लाख टन आलू एक लाख करोड़ की कमाई किसान, व्यापारी और आढ़तियों को देगा.
तब ये एक लाख करोड़ रूपये बाजार में ही खर्च होंगे… और ये एक लाख करोड़ रूपये बीस बार विभिन्न दुकानों जैसे परचून, कपड़ा, कॉस्मेटिक्स, ज्वेलरी, होटल या टूरिज्म आदि के गल्ले में से आएंगे-जाएँगे.
बिक्री होगी तो सरकारी खज़ाने में रेवेन्यू भी ज्यादा आयेगा…
इन दुकानदारों की आय बढ़ेगी…
दुकान कारखानों में भर्तियाँ होंगी…
बाज़ारों में भीड़ भी इन्हीं एक लाख करोड़ रूपयों के कारण होगी…
ज़मीन मकानों की खरीद फरोख्त होगी…
और बाज़ारों की ये ही भीड़ राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की प्रगति को इंगित करती है…
हाँ ये अवश्य है कि मंहगाई से स्थिर आय वर्ग अर्थात बिना अतिरिक्त इनकम वाला नौकरीपेशा और पेंशनर जरूर परेशान होता है.
और संयोग से हमारे सारे प्रचार तंत्र टीवी अखबार, यहाँ तक कि सोशल मीडिया भी इसी स्थिर आय वर्ग के हाथ में है, सो वस्तुस्थिति हमारे सामने आती ही नहीं…
ये स्थिर आय वर्ग ही नोटबंदी पर खुश होता रहता है…
और ये ही वर्ग GST जैसी व्यापारियों की हितकर स्कीम में भी मोदी जी की रॉबिनहुड की छवि तलाश कर व्यापारी वर्ग से व्यर्थ में चिढ़ कर उनकी बरबादी की कल्पना से उछल उछल कर खुशी मनाता है.
वैसे ये जान लेना चाहिए कि उद्योग, वाणिज्य और व्यवसायिक क्षेत्र की प्रगति के बिना नौकरी पेशा वर्ग की रोजी रोटी कभी सुरक्षित नहीं.