कल से एक फ़ालतू की पंचायत चल रही है- “आधुनिक विज्ञान ने भी माना रामसेतु का अस्तित्व.” जरा कोई मुझे बताये कि ये ‘आधुनिक विज्ञान’ क्या बला है और श्रीराम के अस्तित्व को यह कैसे प्रमाणित कर सकती है. किसी वस्तु का अस्तित्व है तो है, नहीं है तो नहीं है. विज्ञान कौन होता है बताने वाला कि फलाने चीज का अस्तित्व है कि नहीं है?
यदि विज्ञान को आप अमेरिका की बपौती मानते हैं तो ये जान लीजिये कि आप सबसे बड़े मूर्ख हैं. दरअसल हम भारतीय ब्रिटिश ज़माने की उस मानसिकता से अभी तक बाहर नहीं निकल पाए हैं जब लोग अपने घर के द्वार पर नाम के आगे बी.ए., एम.ए. लिखते थे.
उस समय यही मानसिकता हुआ करती थी कि ‘प्रामाणिक’ ज्ञान वही है जो ब्रिटिश पद्धति की डिग्रियों द्वारा प्राप्त किया गया है. अर्थात हम अपनी मेधा का सर्टिफिकेट अंग्रेजों से लिया करते थे.
एक अन्य उदाहरण मैक्स मूलर का है. हम भारतीय बड़े गर्व से मैक्स मूलर को उद्धृत करते रहे हैं जबकि उसको यूरोप में बहुत अधिक सम्मान नहीं मिलता था. मैक्स मूलर कोई इतना बड़ा विद्वान नहीं था कि भारतीय मनीषा को समझ पाता.
रामसेतु को लेकर जिस साइंस चैनल के वीडियो पर लोग बल्लियों उछल रहे हैं उसके बारे में कुछ बातें जान लीजिये. डिस्कवरी पर एक प्रोग्राम आता है ‘What on Earth’. शाब्दिक अर्थ यह होगा कि यदि धरती पर आप किसी विचित्र वस्तु को देखें तो मुँह से निकले- ‘यह क्या चीज है?’
इस कार्यक्रम में दुनिया भर की ऐसी ही विचित्र वस्तुओं का रोचक चित्रण किया जाता है. एक प्रोग्राम में धरती पर दिखने वाली कई वस्तुओं को दिखाया जाता है. एक वस्तु पर अधिकतम 3-5 मिनट का सेगमेंट दिखाया जाता है. इसमें कुछ विशेषज्ञ अपना मत देते हैं जिनकी बाइट कटी-छंटी होती है.
यह कोई वास्तविक वैज्ञानिक शोध आधारित श्रृंखला नहीं है. एक सामान्य अमरीकी की मानसिकता से देखें तो यह हिस्ट्री चैनल पर आने वाले ‘ancient aliens’ सीरीज जैसा ही है, बल्कि उसका थोड़ा सुधरा हुआ रूप है क्योंकि ancient aliens अत्यधिक बकवास है.
ये वैसा ही है जैसे पुस्तक महल प्रकाशन द्वारा एक पुस्तक प्रकाशित होती थी जिसका नाम था: ‘विश्व प्रसिद्ध अनसुलझे रहस्य’. इसमें एल डो राडो की स्वर्ण नगरी की कहानियाँ होती थीं.
दरअसल इस प्रकार का साहित्य अमरीकियों को रास आता है. उन्हें यह देखकर मजा आता है कि हजारों साल पहले भारत में एक राजा हुआ करता था जिसने समुद्र पर पुल बनवाया था. ‘What on Earth’ जैसे कार्यक्रम अमरीकियों के लिए मज़ा लेने के लिए बनाये गये हैं.
परन्तु हमारे लिए प्रभु श्रीराम मज़ा लेने की वस्तु नहीं है. वे हमारे आराध्य हैं और ऐतिहासिक पुरुष भी हैं. प्रश्न केवल रामसेतु के अस्तित्व का नहीं है. हमारा शोध इस दिशा में होना चाहिए कि हम उस रामायण को इतिहास का एक प्रमुख दस्तावेज प्रमाणित कर सकें जिसका ‘मिथक’ कह कर उपहास किया जाता है और देवदत्त पट्टनायक जैसे धूर्त ‘Mythologist’ बन जाते हैं.
कथित ‘आधुनिक विज्ञान’ से हर चीज प्रमाणित करने के चक्कर में हमने ‘White man’s burden’ अपने सर पर ले लिया है. विज्ञान एक फ्रेमवर्क के रूप में उपलब्ध उपकरण मात्र है वह कोई न्यायाधीश नहीं है जो यह निर्णय करे कि भारत में राम हुए थे अथवा नहीं.
विज्ञान के टूल की सहायता ली जा सकती है उसे प्रमाण देने के अधिकार नहीं दिए जा सकते. उसी प्रकार जैसे हथौड़ा के काम चोट करना है, लेकिन कहाँ चोट करना है यह निर्णय करना हथौड़े का कार्य नहीं है. चोट करने के पश्चात उसका क्या प्रभाव हुआ हथौड़ा यह भी देखने का अधिकारी नहीं है.
रामसेतु की प्रामाणिकता असंदिग्ध है. साइंस चैनल के वीडियो से पहले भी कई अनुसंधानों में मानव द्वारा निर्मित रामसेतु का अस्तित्व प्रमाणित किया जा चुका है. जो कथा पूरे साउथ ईस्ट एशिया में कही, सुनी और गाई जाती है उसके नायक भगवान राम के अस्तित्व को प्रमाण देने वाला विज्ञान कौन होता है भला? क्या अब हर बच्चा जन्म लेने के बाद अपने माँ-बाप से पूछेगा कि वैज्ञानिक प्रमाण ले आओ कि तुम ही हमारे माता-पिता हो?
‘हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहु बिधि सब दंता’ इसमें कोई संशय नहीं. विज्ञान प्राचीन अथवा आधुनिक भी नहीं होता. विज्ञान एक निरंतर विकसित होता विषय है जिसमें नित नयी खोज सामने आती है. विज्ञान पर नासा या किसी की बपौती या एकछत्र राज नहीं है. हम इस काबिल हैं कि अपने इतिहास की प्रामाणिकता को सिद्ध कर सकें.
विज्ञान का सही उपयोग देखना हो तो National Institute Of Oceanography द्वारा जलमग्न द्वारिका नगरी पर किया गया शोध देखिये. प्रख्यात भूगर्भशास्त्री खड़ग सिंह वल्दिया द्वारा सरस्वती की प्रमाणिकता पर लिखी पुस्तक देखिये. डॉ शिकारीपुरा रंगनाथ राव की शोध आधारित पुस्तक The Lost City of Dwarka देखिये.
ये सब पुस्तकें अब मिलती नहीं हैं, इन महापुरुषों के कार्यों पर स्तरीय शोध नहीं होता. उलटे बेकार की टीवी सीरीज़ देखकर विज्ञान द्वारा राम जी का पुल खोज लिए जाने का दंभ भरा जाता है.