पांच साल से ज़्यादा हो गए मुझे अपने ब्लॉग और फेसबुक पर लिखते… इतना कुछ लिखा मैंने… पर पारिवारिक जीवन और पति पत्नी के संबंधों पर कभी नहीं लिखा.
मन तो किया कई बार, पर फिर मैंने रोक लिया खुद को… कारण ये था कि मैं काल्पनिक कहानी किस्से तो लिखता नहीं. जो भी लिखता हूँ, वही लिखता हूँ जो जिया है, भोगा है… अपने First Hand experience…
ऐसे में इस विषय पर लिखूंगा तो खुद अपने परिवार के बारे में लिखना पड़ेगा जिससे मैं इस सार्वजनिक मंच पर बचना चाहता था. इस Parenting सीरीज़ पर एक मित्र का कमेन्ट पढ़ के मैंने निश्चय किया कि अब मुझे इस विषय पर भी लिखना चाहिए.
उस मित्र ने लिखा है कि उनकी माँ तब घर छोड़ के चली गईं जब कि वो 40 दिन के थे. घर में हमेशा लड़ाई झगड़ा ही लगा रहता था. मेरा मन करता कि मैं कब इस घर को छोड़ के भाग जाऊं…
किशोरावस्था में ही वे अपना घर छोड़ आस पड़ोस मोहल्ले में किसी के घर मे सोना पसंद करते थे… वो लिखते हैं कि टूटे परिवारों के बच्चे किस त्रासदी से गुजरते हैं, उनसे बेहतर कौन जान सकता है…
मैं यहां ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि मुझे उन्होंने जीवन में जो सबसे अच्छा, सबसे बेहतरीन… The Best ही दिया…
आज 28 साल के वैवाहिक जीवन में मुझे याद नहीं पड़ता कि हम दोनों की आखिरी लड़ाई कब हुई थी… जो थोड़ी बहुत कभी हुई भी तो एक या दो मिनट के लिए, बस Hot Talk… इस 28 साल में ऐसा कभी नहीं हुआ, एक बार भी नहीं, जब कि हम लड़ के सो गए हों.
लड़ाई होना स्वाभाविक है… जहां दो लोग रहेंगे, जो कि दो भिन्न व्यक्तित्व हैं… तो थोड़ा बहुत difference of opinion तो होगा… अब ये आपके हाथ में है कि आप उसे कितना बढ़ाते हैं, कहां तक खींच के ले जाते हैं…
इसलिए मैंने अपने जीवन में पारिवारिक लड़ाई की bout का समय कभी डेढ़ या दो मिनट से आगे नहीं जाने दिया. मेरा दूसरा गुण है कि गुस्सा मुझे बहुत जल्दी आता नहीं और अगर आ गया तो 10-20 सेकंड या मिनट भर में में एकदम शांत हो जाता हूँ… हंसता खेलता मुस्कुराता…
दूसरा ये कि मैंने कभी किसी को sorry बोलने में देरी नहीं की… कभी ये ईगो नहीं पाला कि मैं क्यों sorry बोलूं… sorry बोलने में ये नहीं सोचना चाहिए कि गलती किसकी थी, किसने शुरुआत की…
जीवन में ego ही आपको मारती है… false ego तो और खतरनाक होती है… इसलिए गलती किसी की भी हो, बिना देरी किये sorry बोलिये… और आई लभ जू बोलिये. गले से लगा लीजिये… चूम लीजिये… और ये सिर्फ परिवार के बारे में नही बल्कि आपके सामान्य जीवन में सबके बारे में आपका यही रवैया होना चाहिए.
Ego को ताक पर रख के जल्दी से जल्दी sorry और I love you बोलिये… ये दो शब्द सामने वाले पर वही काम करते हैं जो जलते हुए अंगारे पर ठंडा पानी करता है.
मेरे बच्चों ने अपने माँ बाप को कभी लड़ते हुए नहीं देखा… कभी नहीं… जब देखा तो हंसते खिलखिलाते, मस्ती करते और प्यार करते हुए ही देखा… यहां मुझे एक किस्सा याद आता है कुछ साल पहले का…
मेरी धर्म पत्नी ने नाटक फैला रखा था (एक नंबर की दुष्ट औरत है, नौटंकीबाज), तीनों बच्चे देख रहे थे… और न जाने कैसे वो नाटक थोड़ा लंबा खिंच गया… मने 3-4 मिनट चल गया…
इतने में मेरा बड़ा बेटा बिफर गया… Stop It… उसका रौद्र रूप देख के हम दोनों सहम गए… धर्मपत्नी जो कि सिर्फ नाटक ही कर रही थीं, उन्होंने तुरंत उसे शांत किया… अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी…
उस दिन हमको समझ आया कि 25 साल के इतने लंबे समय में हमारे बच्चे हमको एक मिनट के लिए भी लड़ते हुए नहीं देखना चाहते… तो फिर उन बच्चों की त्रासदी के बारे में सोचिए जिनके माँ बाप हमेशा ही लड़ते झगड़ते रहते हैं. बचपन में दिलो दिमाग़ पर पड़ी खरोचों के निशान ता उम्र नहीं जाते.
अपने लिए न सही, अपने बच्चों के लिए ही… घर में सुख शांति, प्यार सौहार्द्र का माहौल बना के रखिये…
और इसका बस एक ही सूत्र है… Ego का परित्याग… पारिवारिक / सामाजिक जीवन में Ego के लिए कोई स्थान नहीं है.