भारतीय इतिहास की प्रामाणिकता पर संदेह करने वालों की लंबी तादाद है. यह हमारा दुर्भाग्य है कि बुद्धिजीवी और शिक्षित वर्ग में यह बीमारी ज्यादा पाई जाती है कि वे सदा से ही हमारे इतिहास को किस्सा कहानी गल्प कल्पना बताने का जघन्य पाप करते रहे हैं.
आक्रांताओं ने जो लिखा, वही तथ्यात्मक इतिहास माना गया और हमारे राम और कृष्ण, कल्पना के नायक! हमने सब बर्दाश्त किया लेकिन हम भारतीय अपने विश्वास पर अटल रहे. अपने इतिहास पर हो रहे अत्याचार को असहाय देखते रहे लेकिन हमारे इतिहास पर हमारे अधिकार को हमसे कोई न छीन सका.
नासा द्वारा रिलीज़ इस वीडियो को देखिए,
रामेश्वरम् से श्री लंका के मन्नार द्वीप तक समुद्र पर सेतु की पूरी रिपोर्ट को अमरीकन वैज्ञानिकों ने अचरज से स्वीकारा है और श्रीराम द्वारा इस सेतु निर्माण को स्वीकारा है.
वाल्मीकि रामायण में नल और नील द्वारा इस अद्भुत सेतु निर्माण की पूरी कथा है यह वृतांत हर भारतीय को ज्ञात है. पाँच दिनों में तैयार किये गए इस सेतु के शिल्पी नल विश्वकर्मा के सुपुत्र थे. आश्चर्य यह है कि इस वीडियो में पत्थरों के आकार और प्रकार को लेकर वही अचरज प्रकट किया गया है जो मूल रामायण में है.
वर्षों के शोध के बाद ज्ञात हुआ है कि रामसेतु बनाने के लिए जिन पत्थरों का प्रयोग किया गया उन्हें “प्यूमाइस स्टोन” कहा जाता है. प्यूमाइस पत्थर ज्वालामुखी के लावा से पैदा होता है. जब ज्वालामुखी का गर्म लावा वातावरण की ठंडी हवा से मिलता है तो हवा का संतुलन बिगड़ जाता है, इस प्रक्रिया से यह पत्थर का स्वरूप जन्म लेता है जिसमे बहुत सारे छिद्र होते हैं. छिद्रों की वजह से यह पत्थर एक स्पॉन्ज का काम करता है इससे इनमें वज़न भी सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है, यही कारण है कि यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नही! इसे हवा ऊपर ही रखती है. रामेश्वरम के तट पर ये पत्थर कुछ समय पूर्व पाए गए जिससे इस धारणा को बल मिलता है.
भौगोलिक परिवर्तन के कारण, सेतु जलमग्न हो गया और आज सेतु सेटेलाइट से ही दिख पाता है.
मैं भारत के प्रधानमंत्री जी से अनुरोध करूंगी कि राष्ट्रीय आत्मसम्मान के लिए भारतीय वैज्ञानिकों का एक दल बनाया जाए जो रामसेतु के स्वरूप का अनुसंधान करे, उसमें भूवैज्ञानिक और इतिहासकार दोनों शामिल हों! ऐसे ही एक दल ने द्वारका से 1.5 किलोमीटर दूर जलमग्न पौराणिक द्वारका ढूंढ निकाली थी.
हमारा इतिहास वही है जो आज भी हमारे हृदय में संरक्षित है. श्रुति एवं स्मृति परम्परा से अपने इतिहास को जानने सीखने वाले भारतीय जनमानस ने अपने इतिहास और संस्कृति पर दृढ़ विश्वास कायम रखा है और अब सत्य उद्भासित हो रहा है.
– मालनी अवस्थी