Parenting and Leadership : बच्चा आपकी नहीं सुनता तो ये आपकी नाकामी है

पिछले कुछ दिनों में, शहर के सबसे महंगे स्कूल की 10th और 11th क्लास में पढ़ने वाले दो लड़कों द्वारा नृशंस-जघन्य हत्या करने के मामले सामने आए हैं.

पहले मामले में गुड़गांव में 11th क्लास के लड़के ने अपने ही स्कूल के एक छात्र की स्कूल के अंदर ही गला रेत के हत्या कर दी…

सिर्फ Unit Test और PTM (पेरेंट्स-टीचर मीटिंग) को आगे टालने के लिए. यानी Unit Test और PTM का इतना खौफ था कि लड़के को हत्या करना ज़्यादा आसान लगा.

दूसरे केस में नॉएडा में 10th क्लास के एक 15 वर्षीय लड़के ने अपनी माँ और छोटी बहन की हत्या कर दी.

दोनो लड़के बेहद सम्पन्न परिवारों से हैं. दोनो के पिता अपने-अपने फील्ड में सफल हैं… सफलता की कीमत चुकानी पड़ती है. दोनो लोग सफल उद्यमी तो बन गए पर सफल पिता नहीं बन पाए.

कहा जाता है कि दुनिया मे सबसे बड़ा दुख औलाद का दुख होता है. आदमी सारे कष्ट सह लेता है पर औलाद को कष्ट में देख सहा नहीं जाता.

व्यस्त और सफल लोग अक्सर अपने परिवार से कहते हैं कि मैं तुम्ही लोगों के लिए इतना परिश्रम करता हूँ… दिन रात…

मेरा ये निजी अनुभव है… first hand Experience… स्वयं कर के अनुभव किया है इसलिए आज लिख पा रहा हूँ…

आपके बच्चे को आपसे कुछ नहीं चाहिए… सिर्फ आपका साहचर्य चाहिए… आपका संग साथ चाहिए.

आप अपने बच्चे को कुछ मत दीजिये… बेशक़ आधा पेट खाना दीजिये… पर समय उसे पूरा दीजिये…

जब हम कहते हैं कि अपने बच्चे के साथ quality time spend कीजिये तो इसका मतलब ये कदापि नहीं होता कि आप उसे किसी महंगी दुकान, मॉल में शॉपिंग कराइये या घुमाने ले जाइए…

बल्कि उसके साथ बातें कीजिये… ढेर सारी बातें… दिल खोल के बातें कीजिये… घंटों बतियाईये… विभिन्न विषयों पर बातें कीजिये… किस्से कहानियां सुनाइये…

अपने और अपने पिता जी के ज़माने के पुराने किस्से सुनाइये… धर्म-अध्यात्म, कला, साहित्य फ़िल्म… देश-काल, राजनीति, हर विषय पर विचार साझा कीजिये… धीरे-धीरे बच्चा अपने दिल की बात आपसे कहना सीख जाएगा…

समाज की भेड़ चाल से बाहर निकलिये… इस तथ्य को स्वीकार कीजिये कि इस दुनिया की कुल जनसंख्या के .0001% लोग ही डॉक्टर-इंजीनियर और टॉपर बनते हैं. बाकी सारी दुनिया mediocre, औसत ही है…

और Mediocre होना इतना भी बुरा नहीं… इस तथ्य को भी स्वीकार कीजिये कि हमारी आज की इस शिक्षा व्यवस्था में 90% पाठ्यक्रम में अनावश्यक चीज़ें बच्चों पर लादी जा रही हैं… सबको वही डॉक्टर-इंजीनियर बनने का ही पाठ्यक्रम घोल के पिलाया जा रहा है.

पढ़ाई लिखाई या कोई भी काम तभी बेहतर होगा जब आप उसे enjoy करें… अगर आपका बच्चा स्कूली पढ़ाई को enjoy नहीं कर रहा है तो जबरदस्ती उसे 99% score करने के लिए बोल बोल के उसका जीना हराम न करें…

उसकी रूचि के विषयों/ क्षेत्रों की पहचान कीजिये… डॉक्टर-इंजीनियर बनने के अलावा और भी विकल्प है जीवन में… उसे अपनी hobbies persue करने दीजिए…

दुनिया के कुछ बेहद अमीर और बहुत सफल आदमी 40% अंकों वाले या स्कूल drop outs भी हुए हैं… और जितने भी टॉपर हुए उनमें से 90% किसी के नौकर ही बने हैं… फिर वो चाहे IAS हो या CEO…

ऊपर वर्णित दोनो घटनाओं में बच्चे अपने parents के व्यवहार और गलत parenting के कारण बेहद तनाव में थे… गुड़गांव वाले लड़के के माँ बाप दिन रात आपस में लड़ते थे… कुत्तों की तरह…

उनको दिन रात लड़ता देख बच्चे में जीवन का कोई आकर्षण ही न रहा… टूटे परिवारों के बच्चे किस सदमे से गुजरते हैं इसका आपको अंदाज शायद न हो…

नॉएडा वाले केस में बाप दिन रात व्यापार में व्यस्त था और माँ दिन रात लड़के को पढ़ाई के लिए कोसती रहती थी, दिन रात कलह करती, बच्चे को हमेशा नीचा दिखाती, कमतर आंकती…

लड़के की छोटी बहन, जो ज़्यादा मार्क्स लाती, मां उसकी दिन रात तारीफ करती और बेटे को कोसती रहती… घटना वाले दिन उसने उसे झापड़ भी मारा था…

Child Psychology (बाल मनोविज्ञान) बेहद जटिल विषय है…

मुझे याद नहीं आता कि पिछले 25 साल में जब से मेरे बच्चे हुए, मुझे अपने बच्चों को मारना तो दूर, कभी डांटने की भी नौबत नही आई…

तीन बच्चे हैं… कभी ऊंची आवाज़ में बात करने की भी ज़रूरत महसूस न हुई… तीनों पहलवान / बॉक्सर हैं… एक नंबर के उत्पाती…

पर Leadership का मतलब ही ये है कि आपको कभी ऊंची आवाज में बात करने की भी ज़रुरत न पड़े…. अपनी annoyance दिखाने के लिए आंखों का एक इशारा ही बहुत होता है.

अपने बच्चे को समझिए. अगर वो आपकी बात नहीं सुनता तो ये आपकी नाकामी है, उसकी नही. एक parent के रूप में स्वयं एक Leader बनिये… परिवार के leader… रोल मॉडल…

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