उस रिश्ते को क्या नाम दोगे
जो मोहब्बत की सरहदों में शामिल नहीं
तुझे दोस्त कहूं तो कैसे
मेरी दोस्ती के दरिया में साहिल नहीं
तूझे भाई कहूं तो लगता है
भावनाओं को टटोलने से कुछ हासिल नहीं
काश कोई रिश्ता ऐसा हो
जो लहू के रिश्ते से हो पाक़
दोस्ती की सीमाओं से हो आज़ाद
आग़ के दरिया से परे ख़ुद पर रखता हो विश्वास
जो ख़ुद अपरिभाषित रहकर
हमें सिखा जाएं कुछ नई परिभाषाएं,
निराश हो रही ज़िंदग़ी को दे जाएं आशाएं,
जब मैं कहूं ‘तुम’ तो तुम्हारा सर्वस्व छा जाए………
मैं अपने ‘मैं’ में
संकुचित ना रह जाऊं
कुछ अनकही भावनाओं को छू पाऊं
मेरे दोस्तों से तुम्हें शिकायत ना हो
तुम्हारे यारों से ना मुझको हो ग़िला
हर उस एक से कुछ बांटा ही है
जो भटके हुए समय में मिला….
मगर इस बार वक़्त भटका हुआ नहीं है
अपनी ही भावनाओं में उलझा हुआ नहीं है
बस तलाश है तो इक नाम की
फिक्र नहीं है मुझको अंजाम की
हाथ बढ़ाने से रिश्ते नहीं बढ़ते
बात बढ़ाने से क़ाफिये नहीं मिलते
आओ हम मिलकर समय को बढ़ाएं
रिश्तों को मानवीय सरहदों से आज़ाद कर जाएं
रिश्तों को मानवीय सरहदों से आज़ाद कर जाएं
– माँ जीवन शैफाली