युद्धनीति बनाते समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है यह समझना कि युद्ध दो के बीच होता है, ऐसे में अपने आदर्श की पोटली घर में रख कर मैदान में उतरना होता है.
यह जानते हुए भी जो अपनी भावना की चाशनी में डुबा कर आदर्श परोसते हैं, वो या तो मूर्ख होते हैं या कायर या फिर पक्के सेक्युलर.
अब इन महानुभावों से कोई पूछे कि अगर आप ने अपने परम्परा का पालन करते हुए यह तय किया हुआ है कि आप ना तो सूर्यास्त के बाद शस्त्र उठाएंगे, ना ही दुश्मन की पीठ पर वार करेंगे, तो ऐसे में कोई दुश्मन आपके घर रात में घुसता है और वो सब कर रहा है जिसे देख आप बर्दाश्त नहीं कर सकते तो क्या फिर भी आप सुबह होने का इन्तजार करेंगे?
मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी बाली-सुग्रीव के युद्ध में क्या किया था?
श्रीकृष्ण में महाभारत में धर्म की जीत के लिए क्या क्या किया, यहां बताने की जरूरत नहीं.
हाँ यह पक्का है कि अगर वे भी युद्धिष्ठिर की तरह अव्यवहारिक बातें करते रहते तो यकीनन पांडव पूरी जिंदगी जंगल में ही गुजार देते और उनका नाम लेने वाला कोई नहीं बचता.
चाणक्य की युद्धनीति ऐसी कई व्यवहारिकताओं से भरी पड़ी है जिसके बिना चन्द्रगुप्त का सम्राट बन पाना असंभव था.
युद्ध को जीत कर ही धर्म की स्थापना, श्रीराम और श्रीकृष्ण से लेकर चाणक्य, कर पाए. अगर अपने आदर्श को लेकर बैठे रहते तो युद्ध हार जाते, और अधर्मी जीत जाते. ऐसा ना हो इसके लिए पहले युद्ध जीतना जरूरी होता है.
और जो आदर्शवादी लोग पिछले कुछ दिनों से, राजस्थान के संदर्भ में, महाराणा प्रताप और राणा सांगा का उदाहरण दे रहे हैं, वे हमे भ्रमित कर रहे हैं.
महाराणा प्रताप और राणा सांगा महावीर थे मगर अंत में हुआ क्या? काश पृथ्वीराज ने भी आदर्शवादी बातें युद्ध में ना की होती.
इस खेल में छत्रपति शिवाजी का उदाहरण अधिक सटीक है. उन्होंने परिस्थिति और दुश्मन को देख कर अपनी रणनीति बनाई और हमेशा सफल रहे है.
इन सेक्युलरों से पूछो कि गांधी हिन्दुस्तान को क्या दे गए? पाकिस्तान.
इस बंटवारे में लाखों मरे, क्या वे रोक पाए? उलटे अधिक नुकसान कर गए.
यह नेहरू की नीति ही है जिसने देश में सेक्युलर के रोग को कैंसर बना दिया, जिसका भुगतान हम आज भी कर रहे हैं.
असल में ये सेक्युलर चाहते हैं कि आज की राजनीति में भी सभी वाजपेयी की तरह बने रहे, उन्हें मोदी पसंद नहीं. क्यों???
समझ नहीं आता तो सत्तर साल से राज कर रही कांग्रेस के रणनीतिकारों से पूछो कि उन्हें ये मोदी-अमित शाह की जोड़ी की रणनीति क्यों पसंद नहीं आ रही?
सीधी सी बात है ये कांग्रेस को उसी की भाषा में जवाब देना जानते हैं.
Everything is fair in love and war.
ध्यान रहे, हारे हुए को इतिहास याद नहीं करता.