धरती के वायुमण्डल की हरारत बढ़ने का सबसे बड़ा कारण ईंधन को माना जाता है. बेइन्तहा तरीके से हवा में कल कारखाने और कार ट्रक जैसे वाहनों से जो गैस निकलती है उससे वायुमण्डल में मौजूद कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा में दिनों दिन वृद्धि होती जा रही है. इस कारण सूरज से जो धूप आती है उसकी गरमी पृथ्वी तक तो आ जाती है, वह गरमी वायुमंडल में से विकीरण द्वारा आसमान से ऊपर अन्तरिक्ष में नहीं जा पाती. नतीजा धरती दिनों दिन गर्म हो रही है. अनुमान है अगले 20 सालों मे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की बर्फ जब इस गरमी से पिघलने लगेगी तो दुनिया के कई शहरों में जल प्रलय आ जाएगा.
अमेरिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया के जंगलों में हर साल लगने वाली भयंकर आग दावानल की तरह जब फैलती है या कहीं कोई ज्वालामुखी फूटता है तो करोड़ों टन कार्बन डाय ऑक्साइड गैस हवा में जहर के रूप में मिलने लगती है.
जंगलों को काट कर नष्ट करने, और घरों में ईधन के रूप में जब सूखी लकडियां जलाई जाती हैं तो दुनिया भर की कारों के धुंए से जितनी सीओटू नहीं निकलती उससे ज्यादा सूखी लकड़ियों के जलने से हवा में विष घुल जाता है.
हम शायद यह नहीं जानते कि लकड़ी में मौजूद एक किलो कार्बन को अगर पूरी तरह जला दिया जाए तो, एक किलो कार्बन के जलने से 3 किलो 700 ग्राम कार्बन डाय ऑक्साइड गैस बनती है.
एक किलो सूखी लकड़ियों में तकरीबन आधा किलो कार्बन होता है. इस तरह एक किलो सूखी लकडियों को खुलें में ‘अलाव’ के रूप में जलाया जाए तो लगभग एक किलो 800 ग्राम कार्बन डाय ऑक्साइड गैस बन जाती है. जबकि ताजा पेड़ उगाने पर अगर पौधा एक किलो वज़न का बढ़ जाता है तो उसके पनपने में एक किलो 800 ग्राम सीओटू पौधा हवा में से सोख कर नई लकड़ी बना लेता है. यही कारण है “ग्लोबल वार्मिंग” से बचने का एक मात्र तरीका है ज्यादा से ज्यादा जंगल उगाये जाएं क्योंकि पेड़ सीओटू को सोखने वाले सिंक बन जाते हैं.
एक वैज्ञानिक गणना ने सिद्ध कर दिया है कि एक टन लकड़ी के जलाने से जो प्रदूषण होता है वह किसी एक कार को साढ़े सात सालों तक लगातार चलाने से पैदा हुए प्रदूषण के बराबर होगा.
सीओटू के बढ़ने से हो रहे प्रदूषण को कम करने के अनेकों नए तरीके खोजे जा रहे हैं. पर कुछ ऐसे स्थान हैं जहाँ हम जानबूझकर हवा में सीओटू बढ़ाते जा रहे हैं. उनमें से एक स्थान है शहरों बस्तियों में सर्दियों के मौसम में खुले में हो रहे स्वागत समारोह. बड़े-बड़े लॉन में जगमगाती रोशनी के बीच डीजे संगीत ध्वनि और सुरूचिपूर्ण भोजन के साथ बडे पैमाने पर “अलाव” जलाए जाते हैं.
सर्दी से बचाव के लिए जब खुले में सहभोज रखे जाते हैं तो अपने वस्त्रों की क़ीमती और आकर्षक झलक प्रदर्शित करने के लिए लड़कियाँ, युवतियां, यहाँ तक कि बुज़ुर्ग महिलाएँ ठंड से कंपकंपाती रहेंगी पर गरम कपड़े नहीं पहनती. दाँत किटकिटाती सर्दी से बचने ऐसी महिलाओं के लिए “अलाव” प्राण रक्षक सिद्ध होते हैं.
लेकिन इस एक एक अलाव में दस दस किलो सूखी लकड़ी जला दी जाती है. 5-6 घंटों के 15-20 अलावों में कितनी ‘सीओटू’ निकलती है, आसानी से गणना की जा सकती है. ज़रा कल्पना कीजिये सर्दियों में अगर पूरे देश में एक लाख शादियाँ भी हुई तो इन अलावों से कितने लाख टन “सीओटू” गैस वातावरण में घुल जाएगी?
इस कारण सरकार को चाहिये कि सर्दी से बचने के लिए ठण्ड के मौसम में खुले में स्वागत समारोह करने पर बन्दिश लगा देना चाहिये. और कानून बना देना चाहिये कि इस तरह के ‘अलाव’ जलाना गैर कानूनी होगा. कानून का उल्लंघन करनेवालों को जुर्माना करने का इन्तजाम भी होना चाहिये.