गुजरात चुनाव हमेशा से एक अलग महत्व रखता है, इस बार महत्व इस बात का है कि यदि कांग्रेस की सीटें छोड़िये, वोट प्रतिशत भी बढ़ गया तो भारतीय मीडिया उसके लिए 2019 तक फ्री में प्रचार करेगी.
2019 तक देश मे माहौल बना रहेगा कि राहुल गांधी गद्दी सम्हाल सकते हैं… फुंकी हुई पार्टी में जान डालने का इस चुनाव से बढ़िया मौका कोई नहीं.
गुजरात में भाजपा ने 4 साल में घटिया प्रदर्शन किया है, इसमें कोई दो राय नहीं है. लोगों को मोदी जी के मुख्यमंत्री काल और उसके बाद के भाजपा शासन में सीधा फर्क दिखता है.
ऑनलाइन पोर्टल भी बराबर काम नहीं कर रहे, और साफ-सफाई, ट्रैफिक, सड़कें आदि जैसी सामान्य व्यवस्थाएं भी धक्कामार काम कर रही हैं.
इन सबसे ऊपर आनंदी बेन का शाह बाबू के इशारे पर दमनकारी रवैया जिसकी वजह से आज तक हार्दिक पटेल मुफ्त की फुटेज खा रहा है…
इसीलिए या जानबूझकर चुनाव हो रहा है पटेल, मेवानी, ठाकोर और जनेऊधारी ब्राह्मण Vs रूपानी, शाह और मोदी के बीच… गुजरात के लिए ये सब हवाई बातें हैं…
जाति का कार्ड जिन मूर्ख जातियों में चलता है, या जिनके यहां जाति कार्ड चलता है वो मूर्ख जातियां होती हैं… वैसी कोई भी जाति गुजरात मे नहीं पाई जाती है. जाति वाली मूर्खता केवल अंतरजातीय विवाह में, वह भी बहुत ही कम प्रतिशत के साथ यहां पाई जाती है.
गुजरात मे चुनाव के दो ही पैरामीटर रहे हैं, विकास एवं धर्म… उसमें भी विकास ही बड़ा पैरामीटर है.
अमित शाह की दिक्कत ये है कि पिछले चार सालों में विकास ने मार खाई है… demonetisation से यूपी में वोट मिले लेकिन गुजरात में इस बात से स्ट्रेस रहा. GST ने तो कई व्यापारियों को कस ही रखा है.
अब खेल मार्जिन का है. चुनाव तो भाजपा ही जीतेगी… क्योंकि पटेल मूर्ख नहीं है, उसको पता है कि जनेऊधारी ब्राह्मण अपना पेट काट कर आरक्षण निकाल के नहीं दे पाएगा…
उसको पता है कि मेवानी और ठाकोर अपनी आरक्षित सीटों से सरक कर पटेल के लिए जगह नहीं बना पाएंगे…
इन सबसे अलग पटेल समाज के सिरमौर entrepreneur (उद्यमी) रहे हैं, जिन्होंने अपने दम पर सिस्टम बदले हैं… नौकरियां पैदा की हैं…
हंसी मजाक के लिए रैली में आना अलग बात है, 5000 की रैली को पांच लाख का बताना अलग बात है… लेकिन पटेल जानता है कि जिस मैदान में हार्दिक की पिटाई हुई वो मैदान जिस यूनिवर्सिटी का था उसका VC पटेल और उसका रजिस्ट्रार भी पटेल ही था… मुख्यमंत्री भी पटेल था, और गृहमंत्री भी पटेल था… जिनके सर पर ताज हो वो ताज के लिए भीख मांगे, ये बात समझ नहीं आती… और पटेल बहुत समझदार है…..
यहां कुछ नया नहीं चल रहा, गुजरात मे सैकड़ों आंदोलन होते रहे… जब मीडिया गोधरा में व्यस्त थी तब वो भूल गयी थी कि कई बार किसानों ने अहमदाबाद को घेर लिया था… केशुभाई जैसे ज़मीनी नेता ने अलग पार्टी बनाई थी… लेकिन सबको सम्हाल कर गुजरात मे भाजपा आती रही…..
अब खेल मार्जिन का है… यही बताएगा 18 दिसम्बर को मार्किट का क्या होगा.