मसीही धर्म शिक्षा भाग – 7 : ‘बाईबल’ को जानिये

अब आप जब कभी किसी एवेंजलिस्ट से बाकी के गॉस्पेल की बात करेंगे तो वो एक लाइन में इस चर्चा को ये कहते हुये खारिज़ कर देगा कि हम नहीं मानते हैं ये सारे गॉस्पेल प्रामाणिक हैं.

इसलिये चूँकि चर्च केवल उन्हीं चार गॉस्पेल की बात करेगा जो ‘नीसिया धर्मसभा’ में स्वीकृत हुई थी, तो आवश्यक है कि फिलहाल उन गॉस्पेलों की बात न की जाये जिन्हें चर्च apocryphal गॉस्पेल कहती है.

[मसीही धर्म शिक्षा भाग – 1 : ‘बाईबल’ को जानिये]

यानि हमारी चर्चा अब केवल चार canonical Gospels यानि गोस्पेल अकॉर्डिंग टू मैथ्यू, मार्क, ल्यूक और जॉन पर ही होगी.

‘न्यू-टेस्टामेंट’ आपने अगर कभी देखी हो तो पाया होगा कि उसके आरंभिक चार अध्याय इन्हीं चारों के सुसमाचारों पर हैं. गॉस्पेल का शाब्दिक अर्थ होता है ‘सुसमाचार’ और ‘एवेंजलिस्ट’ कहतें हैं इन सुसमाचारों के प्रचारकों को.

[मसीही धर्म शिक्षा भाग – 2 : ‘बाईबल’ को जानिये]

ईसा ने अपने जीवन-काल में जो भी उपदेश दिये उसे न तो उन्होंने लिपिबद्ध किया, न ही उन्होंने किसी और को इसे लिखने के लिये निर्देशित किया यानि ये सब गॉस्पेल बाद के कालखंड में ईसा के जाने के बाद रचे गये.

इन चार गॉस्पेल में सबसे प्राचीन ‘गॉस्पेल अकॉर्डिंग टू मार्क’ को माना जाता है और कहा जाता है कि इसकी रचना संभवतः 70 ईसवी यानि ईसा के कथित सूलीकरण के करीब चालीस साल बाद लिखा गया था.

[मसीही धर्म शिक्षा भाग-3: ‘बाईबल’ को जानिये]

ईसा और उनके शिष्यों की भाषा अरामी थी पर नया-नियम यूनानी भाषा में लिखा गया यानि ‘पहली किताब ही अनुवादित भाषा में थी’.

इसमें से पहले तीन यानि गोस्पेल अकॉर्डिंग टू मैथ्यू, मार्क और ल्यूक को Synoptic gospels कहा जाता है क्योंकि इन तीनों में जो विषय-वस्तु है उससे ये परिलक्षित होता है कि ये सब एक ही सामग्री से लिखे गये और चौथे गॉस्पेल को लेकर पुनः ईसाई विद्वानों में ही विवाद है.

[मसीही धर्म शिक्षा भाग – 4 : ‘बाईबल’ को जानिये]

विवाद इसलिये है क्योंकि तीन Synoptic gospels की विषय-वस्तु चौथी गॉस्पेल से बिलकुल भी नहीं मिलती.

ईसाई विद्वान ये मानते हैं कि ईसा के देवत्व का सिद्धांत इसी गॉस्पेल में गढ़ा गया. आज भी चर्च, ईसाई शिक्षण संस्थाओं और अस्पतालों की दीवारों पर नया-नियम की जो पंक्तियाँ उद्धृत रहतीं हैं उनमें से अधिकांश इसी चौथे गॉस्पेल से होती है. जॉन की गॉस्पेल करीब 110 ईसवी में लिखी गई और वो भी ग्रीक भाषा में.

[मसीही धर्म शिक्षा भाग – 5 : ‘बाईबल’ को जानिये]

इन गॉस्पेल के नाम भले मैथ्यू, मार्क और ल्यूक या जॉन के नाम पर हो पर मज़े की बात है कि इनमें से किसी भी सुसमाचार के लेखक का नाम ज्ञात नहीं है.

उदाहरण के लिये ‘गॉस्पेल अकॉर्डिंग टू जॉन’ के लेखक जॉन नाम के शख्स नहीं थे बल्कि ये तो किसी और की रचना थी जो वहां कम मशहूर थे इसलिये उनकी रचना को ईसा के एक शिष्य ज़ब्दी के बेटे जॉन की रचना बता कर प्रस्तुत कर दिया गया. (अगले लेख में इसपर विस्तार से)

[मसीही धर्म शिक्षा भाग – 6 : ‘बाईबल’ को जानिये]

इस घालमेल को समझना है तो एक ईसाई विद्वान् C.J Cadoux की किताब ‘लाइफ ऑफ़ जीसस पढ़नी चाहिये जिसमें वो लिखते हैं –

The speeches in the Fourth Gospel (even apart from the early messianic claim) are so different from those in the synoptics and so like the comments if the Fourth Evangelist himself, that both cannot be equally reliable as records of what Jesus said. Literary veracity in ancient times did not forbid, as it does now, the assignment of fictitious speeches to historical characters.”

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