क्या क्या छोड़ोगे? अब तक छोड़ते ही तो आ रहे हो.
और फिर अब तक उन सब की ज़िद के लिए बहुत कुछ छोड़ा, लवकुश की नगरी लाहौर छोड़ी बंगाल की आधी भूमि छोड़ी.
अब यह छोड़ना नहीं पलायन होगा, जो कश्मीर में हमने किया.
क्या इन सब के छोड़ने से उनका दानवत्व खत्म हुआ? नहीं, उलटे बढ़ता ही जा रहा है.
श्रीराम जन्म भूमि अयोध्या हमारी आस्था का केंद्र है, अगर इसे भी छोड़ने के लिए हम तैयार हो गए तो यह हमारा एक अंतिम पैमाना होगा कि हम क्या क्या छोड़ सकते हैं, किस हद तक सिकुड़ सकते हैं.
यह उस श्री राम की जन्मभूमि है जो मर्यादा में रहते हुए भी पुरुषों में उत्तम हैं, उन्होंने भी शस्त्र उठाये थे रावण संहार किया था. उसके सर्वनाश का कारण स्वयं रावण ही था श्रीराम नहीं. आज भी कारण आज के दानव ही हैं श्रीराम के मर्यादित भक्त हम नहीं.
श्री कृष्ण ने पांच गांव ना मिलने पर महाभारत लड़ी थी जबकि वो इस महायुद्ध का परिणाम जानते थे मगर फिर भी लड़े क्योंकि वह धर्म युद्ध था अस्तित्व की लड़ाई थी, और फिर दुर्योधन के अधर्म की कोई सीमा नहीं थी.
यहां भी हम एक गांव ही तो मांग रहे हैं, इस पर अपना हक़ मत छोड़ना वरना एक दिन कहेंगे कि तुम श्रीराम का नाम लेना छोड़ दो, फिर कहेंगे जीना छोड़ दो, क्या क्या छोड़ोगे?
हमें अपने भटके हुए भाइयों से कहना तो यह चाहिए कि तुमने हम से अलग होकर एक बाहरी अत्याचारी के साथ रहने का निर्णय किया हमने कुछ नहीं कहा, तुमने अपना घर उन बाहरी के साथ बसा लिया तब भी हमने कुछ नहीं कहा.
उलटे तुमने जो माँगा तुम्हें छोटा भाई समझ कर अब तक देते आ रहे हैं, अब क्या तुम लोग एक अयोध्या नहीं छोड़ सकते?
ध्यान रहे तुम भी श्रीराम के ही वंशज हो बाबर के नहीं.
क्या तुम लोग उस बाबर का नाम ज़िंदा रखना चाहते हो जो हम पर (जिसमें तुम भी शामिल हो) सांस्कृतिक और धार्मिक आक्रमण का प्रतीक है!
अगर तुम हम सब के पूर्वजों के हत्यारों को महिमामंडित करना चाहोगे तो यह हमें स्वीकार्य नहीं. हम मर्यादित हैं मगर कायर नहीं.
हम जानते हैं कि बाबर के नाम को तो मिटाया नहीं जा सकता, मगर उसके चिह्नों को मिटा कर पिछली पीढ़ी ने जो बलिदान दिया उनके पुण्य कार्य को आधे रास्ते में छोड़ना अधर्म होगा.
आज सनातन भारत के पुरुषार्थ का दिन है, आज पुरुषोत्तम के जन्मस्थल को मुक्ति के दिवस के रूप में याद किया जाना चाहिए. यह अगली पीढ़ी को याद दिलाता रहेगा कि उसे क्या क्या और कैसे कैसे करना है.