उत्तरप्रदेश चुनाव का आकलन करते हुए समीक्षक जो गलती कर रहे थे वो ये कि भाजपा का वोट शेयर 2012 वाला गिन रहे थे… 2012 में भाजपा यूपी में तीसरे-चौथे नंबर के लिए संघर्ष कर रही थी.
उस से पहले 2009 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 21 सीट जीत के सातवें आसमान पे थी और 2012 में यूपी में सरकार बनाने के मंसूबे बनाने लगी थी.
आपको याद होगा कि 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी नेताओं में इस बात पे खींचतान और अंतर्कलह शुरू हो गयी थी कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा.
उधर 2009 की जीत से उत्साहित युवराज राहुल गांधी को मीडिया कुछ ऐसे प्रोजेक्ट कर रहा था कि अंततः चांद बदली के पीछे से बाहर आ ही गया. पोल तो तब खुली जब मतपेटी खुली…
बहरहाल… 2012 की भाजपा यूपी में सिर्फ 15% वोट वाली एक मरियल कमजोर सी पार्टी थी. और यूपी में भाजपा की इस दुर्दशा को आधार बना के ही सभी राजनैतिक विश्लेषक मोदी जी को खारिज किये दे रहे थे.
उनका बस एक ही सवाल होता था…
PM बनोगे?
कहाँ से लाओगे 272 सीट??
यूपी से कितनी जीतोगे???
बड़े बड़े चुनावी पंडित भी भाजपा को 20 सीट देते थे… उस जमाने में हम लोग भाजपा को 55 सीट देते थे.
मेरे एक पत्रकार मित्र ने पूछा कि आपकी इस खुशफहमी का आधार क्या है? आपको ऐसा क्यों लगता है कि भाजपा राम लहर वाली परफॉर्मेंस दोहराएगी…
ये बात है 2013 की जबकि अभी मोदी जी पीएम कैंडीडेट तक घोषित नही हुए थे. फिर जैसे जैसे मोदी लहर बनने लगी, हम लोग यूपी में 55 सीट पे आश्वस्त थे.
वो तो जब उस लहर ने प्रचंड रूप ले लिया और चुनाव में सिर्फ 10 दिन रह गए तो हमने 65+ की आवाज़ दी… अंततः आंकड़ा 72 पे आ के रुका…
फिर बात चली यूपी विधानसभा की… हमारे एक मित्र बोले, यूपी में तो बसपा आएगी…
वो क्यों भला?
वो इसलिए कि यूपी में जब सपा हारती है तो बसपा ही तो जीतती है…
और भाजपा???
लोग अब भी भाजपा को 2012 वाली भाजपा समझ खारिज किये देते थे. जबकि हम ये कहते थे कि चूंकि 2014 में यूपी में 340 विधानसभा सीट पे बढ़त थी… और लोकसभा की तुलना में अधिकाधिक 4 से 6% वोट की कमी आएगी इसलिए 2017 में भी यूपी में भाजपा 2014 की परफॉर्मेंस दोहराएगी.
जबकि चुनावी पंडित अब भी भाजपा को सिर्फ 110 से 160 के बीच ही सीट दे के खारिज किये देते थे.
उधर हमारा मानना था कि आखिर 2014 से 2017 के बीच ऐसा क्या हुआ कि यूपी की जनता भाजपा से इतनी नाराज हो जाये और मत प्रतिशत 10 से 20% तक गिर जाए?
बेशक़ जाटों में कुछ नाराजगी थी जिसे ले के सब आशंकित भी थे… पर उसके अलावा कोई वर्ग कोई विशेष नाराज हो, ये नहीं था.
बाद में जब नतीजा आया तो पाया गया कि जात पट्टी में भी कोई नाराजगी नहीं थी और जाटों ने चौधरी अजीत सिंह को छोड़ भाजपा का ही समर्थन किया…
अब आइये गुजरात पे… विश्लेषक और चुनावी पंडित फिर वही उत्तरप्रदेश वाली गलती दोहरा रहे हैं…
गुजरात में भाजपा का वोट शेयर 2012 से नहीं बल्कि 2014 से गिना जाना चाहिए और ये याद रखना चाहिए कि 2014 में गुजरात ने भाजपा को 59.3% भोट दिया और 165 विधानसभा सीटों पे बढ़त दी…
अब सवाल ये है कि पिछले 3 साल में ऐसा क्या हुआ कि गुज्जू भाजपा से नाराज हो गए?
हुए तो क्यों हुए?
कौन लोग नाराज हुए?
नाराजगी कितनी व्यापक है?
नाराजगी क्या मतदान तक, और मतदान केंद्र में ईवीएम का बटन दबाने तक कायम रहेगी?
अगर भाजपा का वोट शेयर कम हुआ तो कितना कम होगा?
आज तक इतिहास में कभी भी वोट शेयर 10% से ज़्यादा कम नहीं हुआ है. ये अधिकतम है. वरना आमतौर पर 4 से 6% ही गिरता-घटता (attrition होता) है…
तो सवाल है कि गुजरात में कितना कम हो जाएगा? अधिकतम 10%??
और अगर 10% भी हो जाये तो भी भाजपा 49% भोट ले जाएगी और कांग्रेस को सिर्फ 39% से संतोष करना पड़ेगा.
माना कि गुजरात में भाजपा सत्ता विरोधी लहर (Anti Incumbency) से जूझ रही है, माना कि कुछ पटेल-पाटीदार नाराज है (ठीक वैसे ही जैसे यूपी में जाट नाराज थे?).
होगा ये कि भाजपा अपनी 20 के आसपास वो सीटें हार जाएगी, जहां वो हमेशा जीतती थी… पर वही भाजपा, कांग्रेस की भी 20 के आसपास ऐसी सीटें जीतने जा रही है जो कांग्रेस की गढ़ रही हैं.
कुछ बड़े नेता (रुपाणी जी जैसे) भी हार सकते हैं… पर भाजपा कुछ नए इलाके जीतेगी…
अंतिम परिणाम : भाजपा 140+
कांग्रेस : 25 से 40
अधिकाधिक कांग्रेस जो कर सकती है वो ये कि अपना 2012 का आंकड़ा बचा ले… अगर कांग्रेस ने 2012 का आंकड़ा भी बचा लिया तो मैं इसे राहुल गांधी की बहुत बड़ी सफलता मानूंगा…
ये भाजपा के दृष्टिकोण से बुरी-से बुरी संभावना है… वरना आम तौर पे 10% attrition होता नहीं है… वही अगर ये सिर्फ 4 से 6 या 8% रहा …. यदि भाजपा ने 52% वोट ले लिया तो आंकड़ा 150 छुएगा.
निश्चिन्त रहिए… चुनाव 8 दिसंबर की रात 8 बजे पलटेगा…