मेरा अपना मानना है कि जो चीज आपको करना नहीं आती है उसपर ज्यादा प्रयोग नहीं करना चाहिए. अस्सी के दशक में शाहबानो प्रकरण में जब राजीव गांधी पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगे तो उन्होंने 60 सालों से बंद रामलला के ताले खुलवा दिए.
उन्होंने सोचा कि हिन्दू खुश हो जायेंगे तो कांग्रेस को हिन्दू मुसलमान दोनों के वोट मिलेंगे, लेकिन किसे पता था कि राजीव गांधी ने मंदिर का ताला नहीं खोला बल्कि कांग्रेस के दुर्भाग्य की पोटली खोल दी थी.
मंदिर का ताला खुलने के तुरंत बाद भाजपा ने उसी जगह पर भव्य राम मंदिर बनाने की घोषणा की और नब्बे के दशक में पूरे देश में रथयात्राएं निकाली गयी…
और परिणाम ये हुआ कि पहली बार उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी… राजीव गाँधी का मंदिर के ताले खुलवाने वाला प्रयोग उनके लिए आत्मघाती सिद्ध हुआ…
पिछले दो महीनो से गांधी परिवार के आखिरी चिराग राहुल गांधी पूरे तन मन धन से ये साबित करने में जुटे हैं कि वो ना सिर्फ हिन्दू है बल्कि जनेऊधारी हिन्दू हैं… और मोदी असली हिन्दू नहीं है…
देखिये धर्म और तुष्टिकरण की राजनीति करने में अंतर होता है. राजीव गाँधी ने शाहबानो प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उलट दिया था… इसे कहते हैं तुष्टिकरण… और जब आडवानी ने रथयात्रा निकाली थी इसे कहते हैं धर्म और राजनीति का मिश्रित रूप…
कांग्रेस को मुस्लिम तुष्टिकरण करने में महारथ हासिल है… क्योंकि पिछले 60 सालों में उसने यही किया है… भाजपा ने नब्बे के दशक से लेकर अब तक उन मुद्दों पर राजनीति की है जो बहुसंख्यक हिन्दू समाज से जुड़े भावनातमक मुद्दे हैं…
भाजपा कोई हिंदूवादी पार्टी नहीं है, बस उसने बहुसंख्यक हिन्दू समाज के उन मुद्दों को छुआ है जिन्हें कांग्रेस ने अछूत बना दिया था…
कांग्रेस ने भारत में धर्मनिरपेक्षता के लिए कुछ निश्चित नियम कायदे बना दिए थे और जो उस पैमाने पर खरा नहीं उतरता था उसे वो साम्प्रदायिक करार देते थे….
कांग्रेस के मुताबिक़ आपको धर्मनिरपेक्ष होने के लिए रोज़ा इफ्तार पार्टी में बाकायदा गोल टोपी पहन कर शामिल होना जरुरी है… आपको हिन्दू शब्द से घृणा करनी होगी और मजारों पर चादर चढाना अनिवार्य होगा… इसके बिना आप सेक्युलर नहीं बन सकते…
पिछले 60 सालों से ये ही भारतीय राजनीति की नीति बन गयी थी… लेकिन 2014 में जब मोदी और शाह की जोड़ी ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा तो भारत में धर्मनिरपेक्ष होने के मायने ही बदल गए…
महज़ चार सालों में मोदी ने कांग्रेस समेत सम्पूर्ण विपक्ष को मजारों-दरगाहों से उठाकर मंदिरों की चौखट तक ला पटका…
मोदी और भाजपा ने ये साबित कर दिया कि बिना गोल टोपी लगाए… बिना मुसलमानों के तलवे चाटे भी आपको वोट मिल सकते हैं…
आज आपको कोई एक ऐसा विपक्षी नेता टीवी डिबेट में नहीं मिलेगा जो ये कहे कि भारत में हिन्दू असहिष्णु हो चुके हैं जैसा कि वो पहले कहा करते थे…
आज वो लोग भी खुद को जनेऊ धारी हिन्दू साबित कर रहे हैं जो कभी हिन्दू सनातन परम्पराओं का मजाक उड़ाते थे…
आज उन लोगों में भी मंदिर जाने की होड़ लगी है जो कहते थे कि लोग मंदिर लड़की छेड़ने जाते हैं…
मोदी ने महज़ 4 सालों में पूरी भारतीय राजनीति का हिन्दुकरण कर दिया है… जहाँ अब चुनावो में गोल जालीदार टोपियाँ नदारद हैं…
देखते जाईये, अगर यही हाल रहा तो पिता ने मंदिर का ताला खुलवाया था और बेटा हिन्दू वोट पाने के लिए ‘मंदिर वहीँ बनायेंगे’ का नारा लगाता हुआ कहीं अयोध्या की गलियों में ना पहुंच जाए.