गुरु : अपने शिष्य पर सबसे अधिक प्रेम रखनेवाला दुनिया का सबसे क्रूर इंसान

बचपन में एक विषय गुजराती हुआ करता था तो गुजराती की किताब में एक कहानी थी… जिसमें शिष्य तलवार लेकर दरवाज़े के पीछे छुपा है कि आज तो गुरु यहाँ से निकलेगा और मैं सीधे उसकी गर्दन काट दूंगा… उनकी कही हर बात इतने अच्छे से सीखी और दोहराई उसके बाद भी वो मुझमें दोष निकालते रहते हैं… आज तो उनकी खैर नहीं…

पीड़ा की आग में जलता शिष्य दरवाज़े में छुपा रहा, तभी गुरु वहां से किसी के साथ निकले… गुरु कुछ दूरी पर ही थे और उसने उनकी बातचीत सुनी… गुरुवर, आपका सबसे प्रिय शिष्य है वो, आपका विशेष प्रेम है उस पर फिर क्यों आप उसको बार बार परेशान करते रहते हैं… उसके हर काम में दोष निकालकर आपने उसे इतना अधिक तड़पाया है कि अब वो आपसे बदला लेने की फिराक में है…

गुरु कहते हैं, मैं जानता हूँ वो नाराज़ है मुझसे, लेकिन इस समय यदि मैंने उसके सर पर प्रेम से हाथ रख दिया तो वो उन गुणों को पल्लवित करने से चूक जाएगा जिसकी अभी संभावना है उसमें…

जब तक उसकी पीड़ा इतनी गहरी न हो जाए कि वो मेरी ही जान का दुश्मन हो जाए तब तक उसके अन्दर की नकारात्मकता नहीं निकलेगी… उसके अन्दर वो पूर्ण समर्पण नहीं जागेगा, जिसकी वजह से वो आँख बंद कर उस अज्ञात में छलांग लगा सके जिसकी झलक बार बार दिखाकर मैं उसे पीछे खींच लेता हूँ….

मेरा काम सिर्फ और सिर्फ उस अज्ञात का सपना दिखाना है जो उसे अध्यात्म की उन ऊंचाइयों पर ले जाएगा जिसके लिए उसे चुना गया है. और जिसके लिए इस विशेष विधि का उपयोग किया जा रहा है.

शिष्य जैसे ही अपने गुरु का यह संवाद सुनता है, उसका पूर्ण रूपांतरण हो जाता है. उसकी सारी पीड़ा आग में जलकर भस्म हो जाती है और वो सोना, कुंदन बनकर निखर आता है. वो दरवाज़े से बाहर निकलकर गुरु के चरणों में तलवार रखकर अपने इरादे के लिए माफी मांगता है.

गुरु कहते हैं, तुम्हें माफी मांगने की आवश्यकता नहीं, तुम कुछ तांत्रिक क्रियाओं के बारे में प्रश्न कर रहे थे ना? ये उसी का जवाब है, तंत्र का अर्थ दुनिया चाहे जो लगा ले लेकिन इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी घटित हो रहा है वो सब तांत्रिक क्रियाएं ही हैं…

तुम जिस पथ के लिए चुने गए हो वहां मानवीय संवेदनाओं, प्रेम और खुशियों का कोई महत्व नहीं है. लेकिन तुम जो भी कार्य करोगे उसका फल प्रेम और आनंद ही होगा. तुम्हें भी आगे जाकर अपने शिष्यों के साथ यही करना है. एक ऐसा क्रूर गुरु बनना है जो अपने शिष्य पर सबसे अधिक प्रेम रखता हो. और उसे प्रेम और आनंद की झलक दिखाने के लिए कोई भी पीड़ा पहुंचाने में झिझको नहीं.

कई बार मुख्य दरवाज़े से शिष्य को अन्दर बुलाना गुरु को मना होता है. लेकिन वो चोर खिड़की से उस पर नज़र रखे रहते हैं. जब भी शिष्य पीड़ा में दिखे उसको घर के अन्दर के सुन्दर भविष्य का सपना दिखाकर खिड़की तुरंत बंद कर देते हैं.

शिष्य भौचक्का सा खड़ा रह जाता है… ये कैसे गुरु हैं चाहते तो सीधा मुख्य दरवाज़ा मेरे लिए खोलकर अन्दर बुला सकते थे. शिष्य को सिर्फ बार बार खुलती और बंद होती खिड़कियाँ नज़र आती हैं. लेकिन खिड़की के पल्लों में फंसी गुरु की ऊँगलियाँ नज़र नहीं आती जो हर बार खिड़की बंद करने में फंस जाती हैं और उसे लहूलुहान कर जाती है.

गुरु अपनी पीड़ा कभी शिष्य के सामने प्रकट नहीं होने देते अकेले ही सारी यातनाएं झेल जाते हैं… शिष्य तक वो बातें कभी नहीं पहुँच पाती कि उसकी आध्यात्मिक यात्रा को प्रशस्त करने के लिए उसने शिष्य से अधिक पीड़ा झेली है.

सामाजिक रूप से देखने पर आपको कुछ तांत्रिक क्रियाएं असफल होती दिखाई देती है, और कोई शिष्य अपने गुरु की गर्दन काटने में सफल हो जाता है. … “जाओ और हो सके लौट के मत आना!”

गुरु की कटी गर्दन तब भी मुस्कुराती है. मेरी मृत्यु तो तुम्हारे हाथ ही लिखी थी. मैंने तो वही पाया जो मेरे भाग्य में था. बस मेरी इच्छा थी मृत्यु के पहले तुम्हें बता सकता कि कुछ दरवाजे शिष्य के लिए हमेशा खुले होते हैं लेकिन वो अपना कद दरवाज़े से बहुत बड़ा कर लेता है, और झुककर अन्दर आना उसे स्वीकार नहीं होता.

फिर भी मेरा आशीर्वाद है कि मेरी कटी गर्दन के साथ तुम्हारी सारी पीड़ा और नकारात्मकता भी कट जाए. और तुम ज्ञान की कम से कम उन ऊंचाइयों को पा सको, जहां तक सब लोग पहुँचते हैं… और उस ऊंचाई से अज्ञात में छलांग लगाने के लिए गुरु के धक्के की प्रतीक्षा करते हैं…

वैसे भी तुम्हारे गुरुओं की सूची बहुत लम्बी है… बहुत सारे गुरु आएँगे अभी तो… अलग अलग संप्रदाय और मज़हब के, अलग अलग पंथों के, अलग अलग प्रकार के तिलक लगानेवाले… अलग अलग तरीके से वेद उपनिषद पढ़ाने वाले… मुझे तो इनमें से कुछ भी नहीं आता था… मैंने तुम्हें वो रहस्य पढ़ाने की कोशिश की जो कहीं किसी पुस्तक में दर्ज नहीं, जो ब्रह्माण्ड में बस मुट्ठीभर लोगों के पास सुरक्षित है. तुमने ठीक किया… जो मेरी गर्दन काट दी… वर्ना यह रहस्य…

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