स्यूडो-सेकुलर एजेंडे का बीज

लगातार हार से कांग्रेस वाकई बौखला गई है. उसके अधिकतर नेता मानसिक नियंत्रण भी खो बैठे हैं. कभी कोई राहल को जनेऊधारी हिन्दू कहता है तो कभी कोई मोदी को ही नकली हिन्दू कहने लगता है.

वही लोग जो कुछ दिन पहले मोदी को हिन्दू कट्टरपंथी साम्प्रदायिक, खूनी मौत का सौदागर बोलते थे, हत्यारा, दंगाई और संघी बोलते थे, आज खुद को असली हिन्दू साबित करने की होड़ लगा रहे हैं.

उनके अनुसार राहुल गाँधी असली और पक्के हिन्दू हैं, पक्के पंडित हैं, चारों वेदों के ज्ञाता हैं और नरेंद्र मोदी नकली हिन्दू हैं. नरेंद्र मोदी धर्मांतरित हैं, और हिन्दू हैं ही नहीं.

जी हां, ये बात कही है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल ने. कांग्रेसी कितना हिंदू-विरोधी होता है कि गैर-धर्मी राहुल को हिन्दू साबित करने के लिए ‘जनेऊधारी’ कह रहा है. मतलब हिन्दुओं में ऊंचा-नीचा स्टैब्लिश करने के स्वभाव से मुक्त नहीं हो पा रहा. सोच देखिये, यहां भी जातीयता को ही बढ़ावा देने में लगा है. सत्तर सालों में पेट नहीं भरा तो अब यह नया पैंतरा है.

कपिल सिब्बल ने भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ निशाना साधा और नरेंद्र मोदी को ही नकली हिन्दू करार दे दिया. सिब्बल ने कहा कि नरेंद्र मोदी हिन्दू नहीं हैं, मोदी नकली हिन्दू हैं, मोदी का हिन्दू धर्म से कुछ भी लेना देना नहीं है.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राहुल गाँधी और मोदी में क्या फर्क है. राहुल गाँधी की माता का असली नाम है एंटोनियो माईनो जो इटली की रोमन कैथोलिक ईसाई है. राहुल गाँधी के पिता का नाम था राजीव गाँधी, जिनके अब्बू का नाम फिरोज़ खान.

वहीँ नरेंद्र मोदी के पिता का नाम – दामोदर मोदी और माता का नाम – हीराबेन, मोदी के दादा का नाम था मूलचंद मोदी. पर कांग्रेस के अनुसार नरेंद्र मोदी नकली हिन्दू हैं और राहुल गाँधी असली महान हिन्दू, चारों वेदों के ज्ञाता हैं, साक्षात् पंडित हैं.

खैर! अब आपको हम इस कपिल सिब्बल के बारे में बताते हैं, जो लोगों को हिन्दू होने और न होने का सर्टिफिकेट बाँट रहा है. कपिल सिब्बल वही वकील है जो सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की तरफ से केस लड़ रहा है, और राम मंदिर का विरोध कर अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनवाने की वकालत कर रहा है.

जी हां, कपिल सिब्बल ही मुस्लिम पक्ष का वकील है. ये वही शख्स है जो कोर्ट में कहता है कि अयोध्या में राम मंदिर नहीं बल्कि बाबरी मस्जिद बननी चाहिए. साथ ही ये शख्स साथ ही तीन तलाक मामले का भी वकील था.

अब ऐसा शख्स जो राम मंदिर के विरोध में खड़ा है वो दूसरों को, हिन्दू है या नहीं, उसका सर्टिफिकेट देता है, तो ये अपने आप में बेहद शर्मनाक है.

आज राज बब्बर ने अमित शाह को कहा, वह तो हिन्दू नही है जैन हैं. हिंदू समाज को बांटते-बांटते छोटा करते, विभिन्न टुकड़ों में विभाजित करते, अपमानित करते काँग्रेसियों को लगातार अभ्यास हो गया है.

कांग्रेसी यह भूल गए कि जैन, बौद्ध, सिख आदि भारत से निकली हुये समस्त संप्रदाय हिंदू कहलाते हैं. हिंदू एक विशिष्ट जीवन पद्धति का नाम है.

वह हिंदू है और हिंदू की तरह व्यवहार करते हैं, जीते हैं, खाते हैं, पहनते हैं, बोलते हैं, सोचते हैं, समझते हैं और सहिष्णुता लचीलेपन के साथ दूसरे के पूजा पद्धतियों का सम्मान करते हैं.

लेकिन कांग्रेसी को यह बिल्कुल नहीं पचता कि हिंदू एक हो जाएं. वे जातियो में बांटते हैं, क्षेत्र, पंथ, विचार, मत, समुदाय, समूह, संप्रदाय, भाषावाद जितने भी तरह से हो सकता है बांटकर हिंदू समाज को छोटा करते हैं.

बचपन से ही मैं कभी-कभी अन्य देशों की धर्मनिरपेक्षता और अपने देश के हिन्दू-विरोधी स्यूडो-सेकुलरिज्म को देखता तो मन में बड़ा गहरा प्रश्न उठने लगता. कोई प्रशासकीय-विचारधारा ऐसी कैसे हो सकती है जिसे वहां की बहुसंख्यक जनता से इतना घोर रिपलशन हो?

रोजा-इफ्तार खोले तो सेकुलर और नवरात्रि व्रत सांप्रदायिक? मस्जिद जाना, टोपी पहनना सेकुलर और मदिर जाना, धोती पहनना साम्प्रदायिक. वे हिन्दुओं के तरफ से की जाने वाली हर बात को सांप्रदायिक, संकीर्ण, पिछड़ा, दकियानूस, अतिवादी प्रूव करने में लग जाते, दूसरी तरफ दंगे, आतंकवाद, धर्मान्तरण जैसे मुद्दे पर सपोर्टर हो जाते हों.

ऐसे हजारो उदाहारण हैं, लिस्ट लगाउंगा तो 5 सौ पेज भर जायेंगे. जिस ढंग से हिन्दुओं को कांग्रेसी जातियों में बांटने की शासकीय कोशिश करते रहे हैं वह केवल धर्म-निरपेक्षता का मामला नहीं लगता था.

हिन्दू तो स्वत: पंथनिरपेक्ष पैदा होता है. सनातनी अवधारणाओं जिसकी प्रशंसक सम्पूर्ण दुनिया के सहज-तटस्थ लोग हैं उसके प्रति कांग्रेसी-नेताओं की घृणा छिपाए नहीं छिपती. उनकी नफरत को महसूस किया जा सकता है.

मेरे बाल मन को यह बात कचोटती कि यह राजकीय कारण तो नहीं हो सकते. निश्चित ही इसका बीज कहीं और था. मूल में ही यही था. वंश कई पीढियों से सनातनी था ही नहीं तो उसका लगाव क्यों रहेगा? वे जुट गए समापन पर.

दुश्मन कई प्रकार के होते है, एक जो सामने से हमला करता है, और एक जो पीठ पीछे हमला करता है. ये जो पीठ पीछे हमला करे, जो बहरूपिया हो, वह ज्यादा खतरनाक होता है. आप सरीखा नाम, रूप, रंग अपनाकर आपको ज्यादा घात पहुंचाया जा सकता है. क्यूंकि वो आपका विश्वास जीतता है और उसके बाद आपके ऊपर वार करता है. ये दूसरे टाइप के दुश्मन ज्यादा खतरनाक होते है.

बाकी भारत के समाजवादी, कम्युनिस्ट और अन्य राजनीतिक दल उनकी विचारधारा में पिछलग्गू जैसे हो गए. उन्होंने पंथनिरपेक्षता को स्टैब्लिश ही ऐसा किया कि संघ, भाजपा और कुछ पार्टियों को छोड़कर कांग्रेस से निकली हुई पार्टियां हिंदू विरोध को ही धर्मनिरपेक्षता का नाम देने लगी. वे उसी में रच-बस गई. यह क्रिप्टो-इस्लामिक वंश ही उसका मूल-बीज है. असल में उसके किसी भी आघात को पहचानना आसान नहीं होता.

मतलब कि यह सेकुलरिया एजेंडा था ही धूर्तता-पूर्ण. जब मुख्य घराना ही मुस्लिम था तो हिन्दुओं की हर चीज से नफरत स्वाभाविक है. पूजा-पद्धतियां, सोच, जीवन-शैली तो दूर की बात रही.

वे ऐबक से लेकर खिलजी, मुगल और अब्दालियों की तरह ही हिन्दुओ के प्रति धर्मांध थे, बस प्रेजेंटेशन का तरीका बदल गया था. उसी नफ़रत के प्रकटीकरण का नाम कांग्रेसियों ने धर्मनिरपेक्षता रखा था.

चूँकि वह खुले तौर भारत के शासक थे इसलिए धीरे-धीरे करके सनातनी परम्पराओं तथा हिन्दुओं को मिटाना था. एक तरफ तो सेकुलरिज्म के बढावे के साथ सुनिश्चित योजना के तहत हिन्दुओं को नीचा दिखाना शुरू कर दिया.

दूसरी तरफ धर्मान्तरण, जनसंख्या का बढना-हिन्दुओं का घटना, बांग्लादेशी घुसपैठ, भारत में जमीन खाली करवाना, नार्थ-ईस्ट का जबरदस्त मतान्तरण, पाठ्यक्रमों, मीडिया, सिनेमा, लेखन, एनजीओ आदि द्वारा हिन्दुओं का जबर्दस्त हतोत्साहन कर कुंठा देने का प्रयास, विभिन्न प्रकार से दिमाग पर अपने बाप-दादों की थाती के प्रति निष्क्रियता का भाव इम्पोज़ करते जा रहे थे.

यही इस घराने का मूल एजेंडा था. वे छिपे तौर पर हिन्दुओं को भारत से समाप्त करने की यह सौ-साल की रणनीति बनाकर चल रहे थे. इसलिए वे हर-सम्भव प्रयास करके सनातनी समाज के मानबिन्दुओं को नष्ट कर रहे थे, हर जगह कन्फ्यूज़न पैदा कर रहे थे, और नकली-जीवन शैली जो निहायत ही सेमेटिक थी, उसे विभिन्न माध्यमों से इम्पोज़ कर रहे थे.

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