समस्या की जड़ ढूंढ प्रहार कीजिए, तू-तू मैं-मैं से तो कुछ भी नहीं बदलेगा

एक थे नानाजी देशमुख, प्रखर विचारक… देशभक्ति और हिंदुत्व को बचाने की शिक्षा देने के लिए एक स्कूल खोले और नाम रखा सरस्वती शिशु मंदिर.

उसका सिलेबस ऐसा रखा जिससे अपने देश की संस्कृति और इतिहास की वास्तविक जानकारी बच्चों को मिले.

मेरा भी पहला स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर ही था. वहाँ जाने के बाद पता चला कि भाई-बहनों की तो कोई कमी ही नहीं है. दोस्ती भी भैया-बहन से हुई थी, झगड़े भी और शिकायतें भी भैया-बहन की ही होती थी.

आज जब उन दिनों की याद आती है तो बड़ा प्यारा सा दृश्य उत्पन्न होता है मन में.

कैसे हम आचार्य जी के पास शिकायत ले कर जाते थे, अमित भैया ने मेरी पेन्सिल तोड़ दी है और अमित भैया अपना बचाव करते हुए कहते थे- अजिता बहन ने पहले मेरा बैग गिरा दिया था आचार्य जी.

मतलब हम झगड़े में भी सामने वाले के लिए सम्मान दिखाते हुए बोलते थे.

एक दूसरे को भैया-बहन बोलने का एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता था कि अनजाने में ही बच्चों में अपनापन का भाव आ जाता था.

ये सब परिकल्पना नानाजी देशमुख की थी. उनके समय में फेसबुक था ही नहीं इसलिए उनको हिंदुत्व और देशभक्ति को बचाने का सटीक और मुँहतोड़ जवाब देने का तरीका पता ही नहीं था.

अज्ञानता के कारण उन्होंने हम बच्चों का बहुत नुकसान करवा दिया. भला हो जुकरबर्ग का जिसने फेसबुक को शुरू किया जिसके कारण अज्ञानता का अँधेरा छँटा.

अब तो फेसबुक पर हिंदुत्व के बड़े-बड़े देशभक्त पुरोधा पाए जाते हैं. शूरवीर हैं, अपने सिद्धांतों के पक्के हैं.

नमन है इनको… ये लोग नहीं होते तो अब तक तो फेसबुक पर ईसाईयों और कसाइयों का कब्ज़ा हो चुका होता.

इनके ब्रह्मास्त्रों के प्रहार से वो लोग दूर रहते हैं और हिंदुत्व सुरक्षित बचा हुआ है फेसबुक पर.

और हाँ, सिद्धान्त के इतने पक्के लोग हैं कि देश और हिंदुत्व को बचाने के लिए हिन्दू को भी गन्दी से गन्दी गाली देने में कोई समझौता नहीं करते हैं.

किसी के हिन्दू होने से क्या फर्क पड़ता है यदि वो गैर मज़हब का हिमायती है तो उसकी माँ-बहन की इज्जत उतार देने से हिंदुत्व बच जाता है, साथ ही साथ गैर मज़हबी भी डर जाते हैं.

देखा इतना आसान तरीका है देश और धर्म को बचाने का… पर नानाजी को पता ही नहीं था इसलिए जाने क्या क्या सिखाने का प्रयास कर रहे थे.

अब तो ज्ञान मिल गया है, सोच रही हूँ विद्या भारती को एक पत्र लिख कर बता देती हूँ कि अच्छे-अच्छे शिक्षक फेसबुक पर उपलब्ध हैं.

कृपया इनसे संपर्क करें और भावी पीढ़ी को शूरवीर बना कर देश एवं धर्म के रक्षक बनाएँ.

अच्छा एक विशेषता तो बताना बाकी ही रह गई इन धर्म रक्षकों की… ईसाइयों के तरीके से केक काट कर मोमबत्ती बुझा कर बच्चों का जन्मदिन और दारू पार्टी करके अपना जन्मदिन मनाने की…

अड़ोस-पड़ोस की, कॉलेज-ऑफिस की लड़कियों के बारे में अश्लील भद्दी बातें आपस में करने से इनको कोई परहेज नहीं होता है क्योंकि इससे ना तो धर्म खतरे में पड़ता है, ना ही देश.

सभ्यता, संस्कार और संस्कृति वही है जो ये लोग अपनी सुविधानुसार मान लें या बता दें.

आप सहमत हुए तो ठीक, नहीं तो हर हर महादेव, जय बजरंग बली के साथ गालियों की पीएचडी वाली थीसिस तैयार ही है.

ये सब इनके कार्यों की एक झलक ही है बस… परंतु उपलब्धि क्या है इसके बारे में नहीं पता… क्योंकि न लव जिहाद रुका है, न धर्मान्तरण रुका है, न कॉन्वेंट स्कूल बंद हुए हैं.

सच में कुछ बदलना है तो सार्थक प्रयास करिए न… गालियाँ और झगड़ा किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता है उलटे द्वेष ही बढ़ता है.

समस्या की जड़ को ढूँढिये और उस पर प्रहार करिये… आपस की तू-तू मैं-मैं में ऊर्जा व्यर्थ करते रह जाएँगे बदलेगा कुछ भी नहीं.

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