मसीही धर्म शिक्षा भाग – 2 : ‘बाईबल’ को जानिये

‘बाईबल’ चूँकि किताबों का संकलन है जिसमें एक मान्यता के अनुसार 73 और दूसरी मान्यता के अनुसार 66 किताबें हैं. अतः इसके संकलन में लगभग डेढ़ हज़ार साल का लंबा समय लगा और इसके कई संस्करण भी आये.

संस्करण मतलब ये है कि सुविधानुसार कई बार किताबों के कंटेंट को बदला गया, कई बार अनुवाद हेतु सुविधाजनक शब्द चयन किये गये. आज से लगभग 30 साल पहले तक भी बाईबल में परिवर्तन किये जाते रहे हैं.

आपने The Revised Standard Version of the Bible (RSV), English Standard Version of the Bible (ESV), New Revised Standard Version of the Bible (NRSV), American Standard Version of the Bible, Good News Version of the Bible जैसे शब्द सुने होंगे.

[मसीही धर्म शिक्षा भाग – 1 : ‘बाईबल’ को जानिये]

ये सारे शब्द वजूद में आये ही इस वजह से क्योंकि ‘बाईबल’ के शब्दों में, कंटेंट में छेड़छाड़ की गई. आज भी अलग-अलग वर्ज़न के ‘बाईबल’ आपको उपलब्ध मिल जायेंगे.

‘बाईबल’ लिखित रूप में आने से पहले कई पीढ़ियों तक ‘मौखिक रूप’ में स्थानांतरित होते रहे. फिर जब लेखन कला का विकास हुआ तब ‘पपाइरस’ या ‘पिपरस’ रुपी लेखन सामग्री पर इसे लिखने का काम शुरू हुआ. इसके कुछ अंश चर्मपत्र पर भी उकेरे गये.

‘पपाइरस’ या ‘पिपरस’ रुपी लेखन सामग्री नमी के संपर्क में आकर खराब हो जाया करती थी, इसलिये इसके जो भी हिस्से पाये गये हैं वो मरुभूमि के इलाके से मिले हैं पर इसके बनिस्पत जो अंश चर्मपत्र पर उकेरे गये थे वो सुरक्षित रहे.

उदाहरण के लिये पुराने-नियम के एक पुस्तक ‘यशायाह’ के अंश इजरायल के ‘खिरबेत-कुमरान’ नाम के पहाड़ी की गुफ़ा से प्राप्त हुये. ये पूरी किताब भेड़ों के खाल पर लिखी गई थी.

जैसे की ऊपर मैंने बताया कि ‘बाईबल’ लिखित रूप में आने से पहले कई पीढ़ियों तक ‘मौखिक रूप’ में स्थानांतरित होते रहे इसलिये जब इनका लिखित रूप में संकलन आरम्भ हुआ तो एक दिक्कत सामने आई.

ये दिक्कत थी कि एक ही किताब के अलग-अलग संकलन आ गये जिसे अलग-अलग लोगों ने अपनी याददाश्त के आधार पर लिखा था इसलिये ‘बाईबल’ के एक ही किताब के अंदर कई तरह के विवरण मिलते हैं जो उलझनों और विरोधाभासों से भरे हुये हैं.

‘पुराने-नियम’ की केवल वही प्रतियाँ आज सुरक्षित हैं जो बाद में ‘री-राईट’ की गई थी.

‘पुराने-नियम’ का पहला अनुवाद कार्य ईसा-पूर्व चार सौ साल में शुरू हुआ. कहा जाता है कि सत्तर से बहत्तर विद्वानों ने मिलकर इब्रानी (हिब्रू) भाषा से यूनानी भाषा में इसका अनुवाद किया.

इस अनुवाद कार्य के बाद बहुत सारी किताबें सामने आ गई जिससे ये शंका उत्पन्न हो गई कि इनमें से वो कौन सी किताबें हैं जिसे पवित्र-धर्मशास्त्र में शामिल किया जाये?

ये समस्या मसीह ईसा के समय भी उपस्थित थी इसलिये उनके कथित (?) सूलीकरण के करीब सत्तर साल बाद इस समस्या को सुलझाने के लिये उस वक़्त के लगभग सौ के करीब ‘रब्बी’ जेरूसलम के पश्चिमी हिस्से के एक यहूदी धर्मालय “जामनिया” में इकट्ठे हुये जहाँ उनके दो दलों के बीच इस विषय पर बहुत भयंकर विवाद हो गया जो आजतक सुलझाया नहीं जा सका है.

ये विवाद क्या था इसकी चर्चा अगले भाग में…

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