आजकल सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत वायरल हो रहा है… आप जब उसे देखना शुरू करते हैं तो आपकी भावुकता चरम पर होती है. कोई भी संवेदनशील व्यक्ति की आँखें नहीं, तो कम से कम दिल तो भर ही आएगा.
हम भारतीय तो वैसे भी बहुत भावुक लोग होते हैं, हमारी भावनाएं जितनी जल्दी आहत होती हैं, उतनी ही जल्दी पिघलती भी है… हम किसी गाने की दो पंक्तियों के साथ ही अपनी अलग दुनिया में चले जाते हैं… मैं भी कोई अपवाद नहीं हूँ…
वीडियो देखते देखते आँखों से झर-झर आंसू बह निकले… आह! कितना मार्मिक चित्रण… लेकिन जैसे ही वीडियो के अंत में विज्ञापन कंपनी का नाम आया मैं जोर से ठहाका मार कर हंस पड़ी… अपनी मूर्खता पर? शायद हाँ…
लोग कितनी आसानी से आपकी भावनाओं का दोहन करते हैं और आप उन विज्ञापन कंपनियों के झांसे में आ जाते हैं. खैर उनकी अपनी व्यापार नीतियां होती हैं. उनके ग्राहकों के हिसाब से ही तो वो अपनी चीज़ें बेचेंगे.
हम इंसान भी तो अपनी भावनाओं के साथ उसी तरह पेश आते हैं जैसे मैं इस विज्ञापन को देखते हुए पेश आई. यानी जब घटना गुज़र रही होती है तो हम उसमें पूरी तरह डूब जाते हैं… दुःख के सागर में ऐसे खो जाते हैं कि और कुछ नज़र ही नहीं आता… और घटना गुज़र चुकने के बाद अंत पर आते हैं तो अपनी ही मूर्खता पर हँसते हैं…
ये तो फिर भी साथ आठ मिनट का वीडियो था तो आंसू से हंसी पर छलांग लगाने में ज्यादा समय नहीं लगा. लेकिन जब कोई घटना दिनों, महीनों या सालों हम पर से गुज़रती है तो अंत में उस पर ठहाका लगाने तक हम बहुत सारा समय गँवा चुके होते हैं.
बब्बा(ओशो) कहते हैं, किसी भी भाव दशा से गुज़रते हुए बिलकुल भी गंभीर मत होइए… जितना आप गंभीर होंगे उतनी घटना आप पर प्रभाव डालेगी… चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक. घटना को इतना हल्का कर लीजिये कि वो आपके दिल और दिमाग पर बोझ न बने. आप जितना उसे हल्का रखेंगे उससे गुज़रना उतना अधिक सरल होगा…
तो ज़िंदगी हंसने गाने के लिए है पल… दो पल…
बाकी विज्ञापन में उपयोग किया गया गीत भी बहुत गूढ़ अर्थ लिए हुए हैं … बिना बात के बतंगड़ बनाने के बजाय… जो करना है इसी जन्म में कर लीजिये… फिर इस जन्म में मुलाक़ात हो न हो…