भरतपुर : A Perfect Date with Nature

पिछले महीने ही नयी बाइक ली. बुलेट 350 cc. शौकीन लोग जानते हैं की ये क्या चीज है और लेने की खुशी कितनी होती है. अमूमन हर बाइकर का सपना होता है बुलेट लेने का. ऐसा ही एक सपना मेरा भी था. सपना तो पूरा हो गया पर अब बड़ा सवाल ये था कि इसको लेकर घूमने कहाँ जाएँ.

ये भी समस्या है. आप पहले एक सपना देखो फिर उसको पूरा करने के लिए दूसरा सपना देखो. फिर दूसरे सपने से पहला सपना पूरा करो. मतलब बुलेट लेना सपनों की जलेबी बनाना. ऐसे ही कुछ महीने पहले एक अच्छा सा कैमरा भी ले लिया था. बाइक होगी तो घूमने जायेंगे और घूमने जायेंगे तो फोटो भी खीचेंगे.

बाइक से मथुरा हो आया था मैं कुछ दिन पहले ही. लेह जाना है पर वो तो जून में जाना है अभी तो जनवरी है. ऐसी जगह ढूंढी जाये जहाँ बाइक और कैमरा दोनों का फुल उपयोग हो. नेट खंगाला गया तो कई जगह निकली पर आखिर में जाना फाइनल हुआ भरतपुर बर्ड सेंचुरी जिसका नाम है “केवलादेव पक्षी उद्यान.”

सारी जानकारी निकाली गयी – दूरी, खर्चा, छुट्टी आदि आदि. सब चीजों का तालमेल बिठाया और 25 जनवरी 2017 की सुबह 4.30 बजे फरीदाबाद से किक लगा दी.

मंजिल यहाँ से 140 km दूर है. भरतपुर के बारे में जब सर्च किया तो पता लगा कि दिसम्बर-जनवरी सबसे उत्तम समय होता है घूमने का. इस दौरान यहाँ देश विदेश से हजारों की तादाद में अलग अलग प्रजाति के पक्षी आते हैं. कड़ाके की ठण्ड और जबरदस्त धुंध थी. सर्दी ज्यादा थी पर मैं उसी हिसाब से इंतजाम कर के चला था. हम उत्तर भारतीयों को इतनी सर्दी सहने की तो आदत भी है. बाइक अपनी गति से बढ़ती रही. मुझे पहुंचने की कोई जल्दी नहीं थी. रास्ते में 2 जगह रुक कर चाय पी और भट्टी पर हाथ सेंके.

सुबह 8 बजे मथुरा के नजदीक पहुँचा. भूख लगने लगी. वहीँ पुल के नीचे एक रेहड़ी पर कचोरी और आलू झोल की सब्जी खायी. बेहतरीन नाश्ता था. सब्जी इतनी स्वादिष्ट थी कि कई बार कटोरी में डलवाई. खिलाने वाले ने उलहना दिया भाई साहब 20 रु में सब इतनी सब्जी खाने लगे तो हम जल्दी ही कंगाल हो जायेंगे, बस अब आपको और सब्जी नहीं मिलेगी.

कुछ देर बाद ही मैंने खाली कटोरी आगे बढ़ाते हुए कहा अरे ग्राहक को ऐसे मना करते हैं क्या. आप जी भर के खिलाओ, आपको पूरी प्लेट के पैसे दूँगा आपको घाटा थोड़े ही ना करवाएंगे. अतिरिक्त पैसे की बात सुनकर रेहड़ी वाले ने चौड़ी सी स्माइल देकर तुरंत कटोरी भर दी. खा पी कर आगे बढ़ा. रास्ता पूछते पूछते 10.30 बजे तक वहाँ पहुँच गया जहाँ रुकना था. सेंचुरी टूरिस्ट लॉज. ठहरने के ठिकाने का पहले ही बंदोबस्त कर लिया था. इस लॉज की खासियत का अंत में उल्लेख करूँगा अन्यथा मुख्य मुद्दे से भटकने का डर है. पहले ही बाइक और आलू झोल को काफी स्पेस दे दिया गया है.

रूम में कुछ देर आगे की योजना बनी तब तक चाय पकौड़े आ गए. स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ लिया और 11.30 बजे तक रूम छोड़ दिया. केवलादेव प्राणी उद्यान यहाँ से पैदल दूरी पर ही है. यही कोई 300 मीटर.

अंदर घूमने के तीन तरीके हैं:

पैदल – जो कि काफी ज्यादा हो जायेगा. नहीं ये सही नहीं.
सायकिल रिक्शा – थोडा महंगा लग रहा है. एक घंटे के 200 रु. कम से कम 4 घंटे भी जोड़ें तो 800 रु. एकदम से नहीं. इस तरह के खर्चीले विकल्प तो मैं अक्सर पूरा सोचने से पहले ही मना कर दिया करता हूँ.
साइकिल – 50 रु 4 घंटे के लिए. वाह, ये सबसे अच्छा है. तुरंत एक साईकिल ली और चल दिया.

हालाँकि रिक्शा का ‘एकमात्र फायदा’ जो होता वो ये कि यहाँ के रिक्शा चालक समय के साथ साथ काफी अनुभवी हो गए हैं और एक बेहतरीन गाइड का काम फ्री में कर सकते हैं. इनको लगभग हर प्रजाति के पक्षी के बारे में विस्तार से जानकारी है. साथ ही अच्छी फोटो खींचने के लिए कुछ अच्छे स्पॉट भी इन लोगों की नजर में है. अगर आप यहाँ आये हुए पक्षियों की प्रजाति इत्यादि के बारे में जानने और फोटोग्राफी में दिलचस्पी रखते हैं तो आप इसको ‘एकमात्र फायदा’ नहीं कह सकते.

साईकिल साथ थी पर शुरू में पैदल ही चल रहा था. उद्यान देखने का उत्साह और एनर्जी अभी दोनों बराबर थे. चलते ही एक बैरियर पर टिकट चेक हुई. बस कुछ आगे जाते ही बेहतरीन जंगली वातावरण शुरू हो गया. सर्दी के दिन थे और अभी तक काफी धुंध थी. जंगल बहुत गहरा तो नहीं है पर बड़ा है.

सबसे पहले दर्शन हुए भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के. एक सूखे हुए पेड़ के सबसे ऊँचे वाले ठूँठ पर बैठ हुआ. लंबी रंगीन पंखे फैलाई हुई. सुराही जैसी लंबी गर्दन इधर उधर घुमाता हुआ मानो आस पास के नजारे आँखों में उतार रहा हो. उसके ठीक पीछे बिल्कुल हल्का सूर्य दिखाई दे रहा था. किसी भी प्रोफेशनल फोटोग्राफर के लिए एकदम उपयुक्त नजारा था. मैंने भी कुछ फोटो ली किंतु धुंध का प्रभाव और कैमरे का कम ज्ञान होने की वजह से उतनी आकर्षक नहीं आई.

आगे एक जगह दीमक का टीला नाम का स्थान आया जहाँ विभाग की तरफ से एक सूचना बोर्ड भी लगाया हुआ था. पास में ही एक पेड़ के चारों तरफ बड़ा सा मिट्टी का ढ़ेर लगा हुआ जिसमें बड़े बड़े चुँहे के बिल जैसे होल थे. इसको ही दीमक का टीला कहा गया है. मिट्टी की ये हालत चूहों ने नहीं दीमक ने की है. आश्चर्य.

छुट्टी का दिन होने की वजह से लोगों की उपस्थिति ठीक ठाक थी. पर सैलानियों में आधे से अधिक विदेशी सैलानी थे अपने बड़े बड़े कैमरों के साथ. कुछ के पास तो एक हाथ से भी बड़े कैमरे थे. अधिकतर ने अपने कैमरा टाइप का सामान ढोने के लिए रिक्शा लिया हुआ था.

और हाँ याद आया, शुरू में ही एक बात उल्लेख करना भूल गया हूँ. प्राणी उद्यान में आने से पहले एक अच्छी क्वालिटी की दूरबीन साथ लेना ना भूलें. थोड़ा ढूंढने के बाद दूरबीन उद्यान के बाहर से किराए पर मिल जाती है. कुछ रिक्शा चालक भी अपने साथ दूरबीन रखते हैं, ये उनका मार्केटिंग का तरीका भी है. पर जरुरी नहीं की वो फ्री में आपको इसका उपयोग करने दें. 100 से 150 रु तक की फीस वसूली जा सकती है.

मुझे मेरे होटल से ही एक अच्छी दूरबीन फ्री में मिल गयी थी. अगर आप बाहर से आ रहे हैं तो होटल बुक करने से पहले ही दूरबीन की उपलब्धता और फीस तय कर लें. मेरे हिसाब से अगर आप कमरा बुक कर रहे हैं तो दूरबीन साथ अवश्य मिलनी चाहिए.

वापिस लौटते हैं. विदेशी लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे हैं इसके विपरीत अपने अधिकतर लोग बस टहल रहे हैं. कैसी विडम्बना है ऐसी जगहों पर एक तो हम लोग घूमने जाते ही नहीं और जाते भी हैं तो बस यहाँ वहाँ टहल कर आ जाते हैं. हजारों लाखों किलोमीटर का सफर तय कर के सुदूर यूरोप समेत पूरी दुनिया से ये अदभुत प्राणी यहाँ आते हैं और यहाँ इनको देखने भी इनके ही लोग आते हैं … सुदूर यूरोप समेत पूरी दुनिया से.

एक हरे रंग का कबूतर दिखा. बेर के पेड़ पर बैठा आराम से बेर खा रहा था. वाह, पहली बार देखा है ये तो. इस बार फोटो अच्छी आई. कुछ कदम आगे चलता तो कुछ न कुछ नया दिखता ही रहा. कोई गाइड नहीं था तो बहुत से पक्षियों के नाम मालूम नहीं हो सके. जाने से पहले कुछ पहचान नेट पर की थी उस से काफी मदद मिली.

कुछ के नाम वापिस आने के बाद सर्च किये. घूमने के लिए एक सीधी पक्की सड़क बनी हुई है. बीच बीच में दायें बायें को अलग सड़क भी निकलती है. वैसे तो किसी भी जानवर, पक्षी के लिए कोई पिंजरा नहीं बना है पर थोड़ी थोड़ी दूरी पर विभाग की तरफ से सूचना बोर्ड लगाये गए हैं. मसलन इस एरिया में फलां पक्षी दिखाई देने की सम्भावना है टाइप. लोमड़ी दिखी तो मेरी मनोभावना ऐसी थी जैसे ‘अरे ये तो अपना ही जानवर है.’ चलो कोई तो जान पहचान वाला मिला. लोमड़ी ने खोया आत्मविश्वास जगा दिया. वरना तो इतने अनजान पक्षियों के बीच में मैं उनको देशी और खुद को विदेशी समझने लगा था. आगे हिरण और एक बैल भी अपनेपन का अहसास करवाते रहे.

कुछ भारतीय परिवार भी आये हुए थे. समझ तो आप गए ही होंगे कि मैं अब क्या बताना चाह रहा हूँ. बच्चे पक्षियों को पत्थर मारने में व्यस्त थे. Are You Serious!? यहाँ भी? और माता पिता खींसे निपोर रहे थे. सड़क के अंत में एक छोटा सा पार्क मिला जहाँ अपने भारतीय परिवार चिप्स और कोल्ड ड्रिंक ठूंस रहे थे. बच्चे चिप्स पक्षियों को खिलाकर उनकी सेवा कर रहे थे. वहीँ एक बोर्ड लगा है जहाँ पर उद्यान के बारे में काफी महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है.

खूब घूमने और ढेरों फोटो खींचने के बाद शाम 4.30 बजे तक मैं फ्री हो गया. चाहता तो आज ही वापिस लौट सकता था पर ये जगह इतनी पसंद आई कि मैंने अगले दिन फिर आने का निर्णय लिया. अगले दिन नहा धो कर फिर से आया और करीब 5 घंटे उद्यान में बिताये. इस उद्यान की सुंदरता ने ऐसा मन मोह लिया की शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

सर्दियों के समय में विभिन्न तरह के पक्षियों की चहचाहट, जादुई सूर्य उदय, पक्षियों की बड़ी बड़ी कॉलोनियां, सूर्य अस्त का सम्मोहन, ये सब इस जगह का जादू आपके मन में पैदा कर देते हैं. यहाँ कोई भीड़ नहीं, गाड़ियों का शोर नहीं, प्रदूषण नहीं, चारों तरफ बस प्रकृति ही प्रकृति. एक आम इंसान को और क्या चाहिए. आप ये पढ़ रहे हैं मतलब आप घूमने के शौकीन है. तो यहाँ मैं आपसे बस इतना ही कहना चाहूँगा कि यदि आपने अभी तक भरतपुर नहीं देखा तो एक बार अवश्य जाना चाहिए. दूसरे शब्दों में: “भरतपुर – A Perfect Date with Nature”

ये तो मेरा अनुभव था, अब उद्यान के बारे में कुछ काम की जानकारी –

भरतपुर बर्ड सेंचुरी का असल नाम केवलादेव प्राणी उद्यान है. यह नाम यहाँ स्थित केवलादेव (शंकर) जी के प्राचीन मंदिर के नाम पर पड़ा है. यह उद्यान कुल 29 किमी छेत्रफल एरिया में फैला हुआ है. सीजन में यहाँ लगभग 350 से ऊपर पक्षियों, 50 मछलियों तथा 10 से अधिक साँपों की प्रजाति देखने को मिलती है. इसके अलावा विभिन्न तरह की वनस्पति भी है. हज़ारों की तादाद में हर साल सर्दियों दूर दराज के देशों से पक्षी यहाँ आते हैं और प्रजनन करते हैं. यह उद्यान वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया है.

लगभग 250 साल पहले भरतपुर के शासक राजा सूरज मल द्वारा इस उद्यान की स्थापना शिकार करने के लिए की गयी थी. 1938 में 12 नवम्बर को तत्कालीन भारत के वायसराय की शूटिंग पार्टी के नाम एक दिन में सबसे अधिक संख्या में बतखों का शिकार करने रिकॉर्ड दर्ज है. यह संख्या 4237 है. मतलब इतने प्राणी सिर्फ एक दिन में शिकार के नाम पर मार दिए गए थे.

और अंत में रुकने के ठिकाने के बारे में…. वैसे तो भरतपुर में रुकने के ठिकानों की कोई कमी नहीं है. सस्ते से लेकर खूब महंगे तक यहाँ सभी तरह के होटलों की भरमार है. पर मैं जहाँ ठहरा वो जगह थी ‘सेंचुरी टूरिस्ट लॉज.’ ये एक छोटी सी लॉज अवस्थी सरनेम के दो भाइयों द्वारा चलायी जाती है. लॉज के प्रबंध और उनकी मेहमान नवाजी देख कर मैं दंग रह गया.

यहाँ आपको एकदम घर के जैसे वातावरण मिलेगा. लॉज में आपको फ्री वाई फाई की सुविधा तो है ही साथ ही उद्यान घूमने के लिए अच्छी क्वालिटी की दूरबीन भी उपलब्ध करवाई जाती है. इसके अलावा यहाँ कुछ अच्छी पुस्तकों की एक छोटी सी लाइब्रेरी भी है तथा लॉज के मालिक आपको स्थानीय जगहों के बारे में अच्छी जानकारी भी देंगे. और यहाँ के खाने के बारे में तो क्या कहूँ. यहाँ के पकौड़े इतने स्वादिष्ट हैं कि इनको तो वर्ल्ड फेमस होना चाहिए था.

सिर्फ एक रात के स्टे के दौरान भी मैंने कम से कम छः बार सिर्फ चाय पकौड़े खाये. आलम ये है कि उद्यान की खूबसूरती और अवस्थी लॉज के पकौड़े के लिए मैं एक बार फिर से भरतपुर जाने की सोच रहा हूँ. अगर आप कभी यहाँ जाते हैं तो एक बार यहाँ के पकौड़े जरूर खाएं. किराया भी कम है. थोड़ी सी मेहनत कर के लॉज का नंबर नेट पर आसानी से ढूंढा जा सकता है. यदि किसी अन्य साइट के माध्यम से ना जाकर सीधे अवस्थी जी से बात कर के एडवांस में ही कमरा बुक कर लिया जाये तो रेंट में कुछ और कमी भी हो सकती है. भरतपुर यात्रा के दौरान सेंचुरी टूरिस्ट लॉज में ठहराव आपकी यात्रा को और खुशनुमा बना देगा.

नोट – मैंने ये यात्रा जनवरी 2017 में की थी. उद्यान घूमने का सीजन आ गया है इसलिए लिख रहा हूँ. आपके पास दिसम्बर और जनवरी सिर्फ दो महीने हैं कुदरत की इस अनोखी जगह को देखने के लिए. एकदम पैसा वसूल जगह है, मौका ना चूकें.

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