मोहब्बत पर लागू नहीं होते काल के नियम

मुझे लगा मुझे अब जल्दी ही प्रेम हो जाना चाहिए
पचास के उस पार तो इंसान कभी भी मर सकता है
पर प्रेम करना या प्रेम होना कहाँ अपने वश में होता है

वश में तो यूँ कभी कुछ भी नहीं होता
यूँ ही भ्रम बने रहते हैं
मैंने किया
दरअसल कहना चाहिए
मुझे हुआ, मेरे साथ हुआ, मेरे साथ किया गया

Passive voice, यू सी
और प्रेम में तो दो होते हैं
दो की मर्ज़ी चलती है

तो होता यूँ है कि कभी एक की मर्ज़ी नहीं होती
तो कभी दूसरे की
और अगर कभी कभार दोनो की हो जाए
तो वक़्त की नहीं होती

और वक़्त, वक़्त तो क़तई नहीं था मेरे पास
पचास के उस पार वक़्त का क्या पता कब थम जाए
यूँ मेरी ज़िंदगी में छोटी छोटी बहुत सारी मोहब्बतें बिखरी पड़ी थी

डायरी में एक फूल
नोट्स वाली कापियों में यहाँ वहाँ छुपा छुपाया एक नाम
कोई याद, मद्दम पड़ती नज़र में मद्दम सी
धुँधला सा कोई चेहरा, उड़ती सी कोई बात

मोहब्बतें तो हमें बचपन से ही होने लग जाती हैं न
भोली भाली छुई मुई सी
पीछे छूटती उम्र के साथ सब पीछे छूट जाती हैं

कोई कोई ख़्याल फिर भी बना रहता है ध्रुव तारे की तरह
पर मैं ढूँढ रही थी वो
जिस में रब दिखता है
या बंदा फिर जब हो जाता है ख़ुदा

तुम मिले मुझे जा कर पचपन में और वो भी मुझ से नौ साल छोटे
पर मोहब्बत में तो समय का कोई स्थान ही नहीं
मोहब्बत पर काल के नियम लागू ही नहीं होते
तब से वक़्त वहीं रुका हुआ है

मुझे कोई मेरी उम्र बताता है तो याद आती है
नहीं तो एक बेवक़ूफ़ सी लड़की हो गई मैं
और तुम
तुम्हें तो सिर्फ़ ‘साजन‘ सुनता है
रास्ते मंज़िल हो गए हैं

कहीं भी जाती हूँ तुम से ही मिल जाती हूँ
कल रात पहली बार चाँद की आँखों में काजल नज़र आया
सोचने लगी, तुम तो काजल लगाते नहीं
यह कैसे हुआ
तुमने क्या कल काजल लगाया था सोते हुए?

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