सौदा ठीक से करें, व्यापारी हैं, देंगे कीमत

मोदी जी से जिनको शिकायत रहती है कि वे हिंदुओं के लिए कुछ नहीं करते, उनका आधार अक्सर यही होता है कि वे मुसलमानों के लिए काफी कुछ करते दिख जाते हैं, सब का साथ, सब का विकास के तहत.

यहाँ मैं कुछ मुद्दे रख रहा हूँ जिन्हें समझ लें तो हमारे लिए अच्छा होगा.

पहला मुद्दा यह है कि मुसलमान के लिए हर बात अवसर है. या और स्पष्ट कहूँ तो वो समस्या को भी अवसर में बदलने की पूरी कोशिश करता है. अपनी मांगें उठाते रहता है और ज़ोर शोर से उठाते रहता है.

हाँ, चूंकि काफिरों की सरकार है इसलिए केवल मांगता रहता है, बदले में देता कुछ नहीं है, लेकिन वही उसकी फितरत है, वही उसको मिली हिदायत-नसीहत सब कुछ है। उसकी प्रोग्रामिंग वही है. लेकिन हमें उसका यह गुण समझ लेना चाहिए कि वो अपनी बात को रखने का असरदार तरीका जानता है.

दूसरा मुद्दा यह है कि हम अपनी बात रखना नहीं जानते. क्या बात रखनी है इस पर भी सहमत नहीं होते. अगर सहमति हुई भी तो वामी उसमें टांग अड़ाने में कामयाब होते हैं और हम देखते ही रह जाते हैं और एक दूसरे को दोष देने लगते हैं कि उसको रोका क्यों नहीं जब की उसके हरकतें सब को दिखती हैं.

टांग अड़ाने वाले की टांग तोड़ देने की हिम्मत न खुद करते हैं और न हिम्मत करने वालों को समर्थन या सहारा देते हैं. इसी कारण अपमानित करने वाली विकृत फिल्में बनती हैं.

और यह बस एक ताज़ा उदाहरण है. और भी मुद्दे हैं लेकिन फिर कभी रखेंगे.

फिलहाल दूसरे मुद्दे का इलाज सोचिए. आप ने वोट दिया और सोचा आप की ज़िम्मेदारी पूरी, अब भाजपा की ज़िम्मेदारी शुरू. उन्होंने विरोध में वोट दिया और फिर भी अपने काम करा ले रहे हैं.

वे इसलिए अपने काम करवा पा रहे हैं क्योंकि उनके पास यह व्यूहरचना है, खाका है, जिस पर वे खर्च कराते हैं. जवाबदेही है. हमारे यहाँ ?

जवाब में ये सन्नाटा ही क्यों सुनाई दे रहा है सभी दिशाओं से?

जिनको वोट दिया उनसे संवाद कीजिये. उन्हें यह समझाइये कि भले ही अब मोदी जी का विकल्प नहीं है, उनका तो है.

बाकी एक बात आप समझ गए ही होंगे, मोदी जी ईमानदार भले ही हों, बाकियों के बारे में वो बात नहीं है.

बरखा दत्त आदि लोग अब पीएम की विदेश यात्राओं पर सरकारी खर्चे से ना जाते हों, बाकी मंत्री अगर उसके साथ उसका हाथ पकड़कर ठहाके लगाने में धन्यता मानते हैं तो क्या कहें? शिष्टाचार मजबूरी है, यह ज़रा आगे की बात है.

एक रणनीति है दबाव की लेकिन ऐसी बातें सार्वजनिक नहीं होती.

और हाँ, मोदी जी धार्मिक हिन्दू अवश्य हैं, लेकिन हिन्दू के लिए उन्हें कोई विशेष प्रेम है ऐसा कभी दिखाई नहीं दिया. व्यवहारी राजनेता हैं, व्यापार की भूमि से आए हैं.

हम मुफ्त में बिक गए तो दोष हमारा है, सौदा ठीक से करें, व्यापारी हैं, कीमत देंगे. हाँ, मीठी बातों से सस्ते में सौदा पटाना भी एक व्यापारी की खासियत होती है, यह हमें याद रखना चाहिए.

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