बचपन हमारा सरकारी स्कूल में बीता है. सफेद कमीज खाकी पैंट स्कूल यूनिफार्म थी, जिसे तीन चौथाई लड़के नहीं पहनते थे.
बीच बीच में ड्रेस चेकिंग होती थी, एस एन सिंह मास्टर साहब की छड़ी भी चलती थी. स्कूल यूनिफार्म में जूता भी सोचा गया होगा, पर 90% बच्चे हवाई चप्पल पहन के स्कूल जाते थे.
हम थोड़ी पतली चमड़ी वाले थे… डाँट मार का बुरा मान जाते थे. तो हम हमेशा सफेद शर्ट खाकी पैंट ही पहन के जाते थे. हाँ, हवाई चप्पल के अलावा चारा नहीं था.
सफेद शर्ट एक ही होती थी. खाकी पैंट भी. सोमवार को शर्ट साफ सुथरी होती थी… अक्सर इस्त्री भी. तो सोमवार को स्कूल बहुत संभाल के जाते थे.
बस की धक्का मुक्की से बच के रहने की कोशिश करते थे. टिफ़िन टाइम तक खेलते भी संभल के थे. सीढ़ी की रेलिंग पर फिसलने से भी परहेज करते थे.
टिफ़िन तक धैर्य खत्म हो जाता था. तो मैदान में खेलने निकल जाते थे. शाम होते होते पसीने से शर्ट गंदी हो जाती थी… फिर कबड्डी खेलने से भी परहेज नहीं होता था.
लौटते लौटते शर्ट गंदी हो चुकी होती थी… फिर तबीयत से धकिया के बस में खिड़की की सीट लूटने का कलेजा आ जाता था…
फिर पूरे सप्ताह वही शर्ट पहनते थे. शनिवार आते आते शर्ट चीकट हो चुका होता था. एक बार शर्ट गंदी हो जाती थी तो क्या आज़ादी का बोध होता था…
माँ पकड़ कर धमकाती थी कि यह क्या लगाया है शर्ट में, तो शान से कहते थे – कल्हे का है… आज कुच्छो नहीं हुआ है…
जब तक शर्ट नई और साफ रहती थी, एक जिम्मेदारी का बोध होता था. लड़ाई झगड़े से बचते थे. स्कूल था दुर्दांत. लड़ाई का सबसे खूंखार हथियार होता था परकाल (कम्पास) की नोक… परकाल घोंप देंगे सबसे घातक धमकी थी…
पर सबसे इफेक्टिव हथियार परकाल घोंपना नहीं था. सबसे मारक था शर्ट फाड़ देना. शर्ट की कॉलर को जोर से पकड़ लो, बंदा काबू में आ जाता था… धमकी थी – शर्ट फाड़ देंगे…
यह धमकी क्यों घातक थी? क्योंकि फटी शर्ट लेकर घर आओ तो मार पड़ती थी. यह सबसे बड़ा नुकसान था. ऊपर से दूसरी बटन के काज का मुँह खुल जाता था…एक सीधा चीरा लग जाता था.
डाँट डपट और एकाध चपत के बाद दीदी या माँ इसे टाँके से सिल देती थी. फिर वह टाँके वाली शर्ट साल भर चलानी पड़ती थी…
कॉलर पकड़ाने के बाद एकाध हाथ खाकर भी लौटते थे पर शर्ट बच जाती थी तो लगता था कि फायदे में छूटे. पर एक बार शर्ट फट जाती थी तो वह डर निकल जाता था.
अब तो घर जाकर डाँट पड़ेगी ही… अगले को पहले तबीयत से कूटो… जो उसने मारा है उसको तो वसूलना ही है, जो घर जाकर पड़ेगी उसका बदला भी निकालना है.
हिन्दु आज साफ सुथरी इस्त्री की हुई नई शर्ट पहन के सोमवार को स्कूल जाने वाला बच्चा है.
मोदीजी ने उसको विकास टेलर से नई शर्ट सिलवा दी है, अब बेचारे को शर्ट की हिफाज़त ही भारी पड़ रही है.
अगला धकियाए जा रहा है, कॉलर पकड़े हुए है… शर्ट फाड़ देंगे की धमकी दिए हुए है, हम किनारे दुबके जा रहे हैं…
इससे अच्छा है इस नई और साफ सुथरी शर्ट के मोह से छूट ही लिया जाए… जैसे इतने साल गंदी और फटी हुई शर्ट पहनी है कुछ दिन और सही… पर अब हाथ खोल ही लो… जाने दो शर्ट को.
हिंदू को शर्ट उतार के किनारे रख देनी चाहिए, पहले इस बुली बच्चे से निबट लेना चाहिए. बाद में पहन लेना नई शर्ट.
नहीं तो रोज यह कॉलर पकड़ेगा, रोज धकियाएगा… पहले पकड़ के तबीयत से कूट लो… फिर कभी कोई कॉलर ना पकड़े यह तय कर लो… फिर पहनना इस्त्री की हुई शर्ट…
मोदी जी, अभी रखिये यह शर्ट साइड में… विकास टेलर को बोलिये बाद में ले जाएंगे… नहीं रखनी है पतली चमड़ी, नहीं पहनेंगे यूनिफार्म…
हम टूटी चप्पल, पीली शर्ट, नीली पैंट पहन के स्कूल आएंगे कुछ दिन… पर पहले इसका हिसाब लगा लें कि कोई कॉलर ना पकड़े, धकियाने की हिम्मत ना करे…
और बच्चे को घर लौटने पर फटी शर्ट पर फटकार लगाने के बजाए उससे पूछिये कि उसकी शर्ट के बटन का काज हमेशा फटा हुआ क्यों मिलता है?