राजपूती कंगन में भी उतनी ही शक्ति होती है जितनी राजपूती तलवार में

गाँव में मुख्य बसावट के उच्चकुलीन घरों के वर्षपर्यन्त सहायक सेवाकार्यो के लिए ढाणियों मे रहने वाले भील जाति के दो दो घर बांट दिए जाते जो उन लोगों के सभी कार्यों में सामाजिक व्यवस्था “नेक” के बदले जीवनभर पीढ़ी दर पीढ़ी सहायक का कार्य करते हैं.

ऐसे ही हमारे घर के एक सहायक है टेकाराम जी, जब हम छोटे थे तब अक्सर देखते कि किसी काम को लेकर देरी अथवा लापरवाही के बदले टेकाराम जी पिताजी की मीठी मीठी गालियां सुनते हाथ जोड़े. उनके परिवार के सभी लोग हमारे घरों के छोटे से बच्चे तक को देखकर हाथ जोड़े “बापू -बापू ” और मुखिया को “ठाकर ” कहते.

हम भी तब कुछ समय के लिए राजाओं सा अनुभव करते. ऐसे ही एक दिन जब गांव पहुंचे तो देखा एक अनदेखा विराट अनुष्ठान चल रहा है मुख्य चौराहे पर.

तभी देखा कि अजीब सी वेशभूषा में टेकाराम जी सामने से चले आ रहे हैं, पास आये तो आज उन्होंने हाथ नहीं जोड़ें बल्कि मेरे पिताजी उनके चरण स्पर्श कर के आशीष मांग रहे थे, हमने भी देखादेखी में यही किया लेकिन हमारी सारी सामंती एक क्षण में धराशायी हो गई.

बैचैन से हम मौका पाते ही पिताजी से पूछ लिए कि भगवन यह सब क्या था?

वे समझाने लगे, ” बेटा! सनातन में कोई ऊंचा नीचा नहीं है मात्र व्यवस्थाएं है और उनके अनुरूप “डोलर (रोलर कोस्टर)” की तरह कभी कोई ऊपर तो कभी कोई, अभी गांव में “गवरी” नामक लोक अनुष्ठान चल रहा है जिसे यह भील समुदाय संपादित करता है.

ये लोग 40 दिन के इस दैविक अनुष्ठान के दौरान शक्ति उपासना के क्रम में पूर्ण ब्रह्मचर्य के साथ शैया, हरीशाक (लिलौति -हरी सब्जियां), सामिष आहार, पगरखे(जूते -चप्पल ) सहित प्रिय मदिरा का भी पूर्णतया त्याग कर देते हैं.

इनका यह तप इन्हें हम ब्राह्मणों से भी उच्च स्थिति पर स्थापित कर देता है इन चालीस दिनों तक इस तपस्या तक.

इस दौरान ये लोग गोरजा माता (अपभ्रंश गिरिजा (पार्वती जी) ) की सेवा में इस लोकानुष्ठान के माध्यम से जनसमुदाय के समक्ष स्वस्थ्य मनोरंजन के साथ कई ऐतिहासिक घटनाओं को नाट्य स्वरुप मे पारंपरिक रुप से प्रस्तुत करते हैं.

इसी क्रम में हमारे वेठिया (सहायक) टेकाराम जी इस अनुष्ठान मे महादेव शिव के पात्र में है जिन्हें राईबुड़िया (राई महादेव ) कहा जाता है, अतः 40 दिनों के लिए ये भगवान शिव के प्रतीक है अतः प्रणम्य है और उनका आशीष अभीष्ट.

उस दिन से सनातन को देखने का दृष्टिकोण ही बदल गया और इस तथ्य की अनुभूति हुई कि कितना उच्च एवं विशाल है सनातन का छत्र.

दीपिका पादुकोण मुझे बहुत वाहियात लगती रही है, तबियत से गरियाया है उन्हें मैंने. अपनी गुड़िया को कपड़े खरीदवाने जब भी ले जाता तो यह स्पष्ट ही होता कि यदि अभीष्ट ड्रेस को समझाने, पसंद करने में दीपिका का जिक्र भी आया तो तत्काल उस दुकान से रवानगी. सच पूछिए तो मुझे ना उनका मुखमंडल रुचिकर है और ना शारीरिक सौष्ठव और ना ही पहनावा, कुल जमा नफरत की सीमा रेखा के ठीक पास ही थी मेरी अवधारणा दीपिका को लेकर.

लेकिन आज यदि मुझे मौका मिले किसी बॉलीवुड सेलिब्रिटी के साथ पारिवारिक डिनर का तो मैं अपने आल टाइम फेवरेट्स को छोड़कर दीपिका के साथ डिनर करना पसंद करूँगा इस विनम्र निवेदन के साथ कि वे महासती माता पद्मिनी के ड्रैसअप में हो.

आज जब मैं दीपिका को पद्मिनी के रूप में देखता हूँ तो बस नतमस्तक हो जाता हूँ, महारानी पद्मिनी का प्रतीक बनी दीपिका मुझे श्रेष्ट मातृवत सौंदर्य का प्रतिमान दिखने लगती है.

पुरुष के रूप में मात्र अपने भर्तार महारावल रतनसिंह के समक्ष अपने परिजनों, इष्टजनों एवं आश्रितों के साथ जीवन के सुमंगल का आनंद उठाती परम लावण्या जब झुकी निगाहों के साथ इन शब्दों पर राजस्थानी नृत्य की आदर्श मुद्राएं प्रस्तुत करती हैं तो स्पष्ट हो जाता है किस तरह एक वहशी, हवसी और कामांध क्रूर बादशाह ने एक अनुपम, सुन्दर, आदर्श दाम्पत्य को हजारों निर्दोषों के साथ अपनी वासना की पूर्ति की राह में अत्यंत दुर्दांतता से विनष्ट कर दिया.

“थारे एहसासों की रौनक है म्हारी दिवाली
मन महल की सारी दीवारें थारे रंग रंगवाली,

पाके थारा साया तन है जगमगाया
तारों भरी हो गयी म्हारी सारी काली रात,
भरके ढोला वाले ठाठ …………घूमर घूमर ”

आश्चर्य है कि कुछ आवेशी बंधुओ के अनावश्यक दुराग्रह के चलते आपको इस गीत में केवल दीपिका की कमर या पेट नजर आता है!

इतने उच्च दृश्य के चित्रांकन हेतु उत्तम शब्दों में सुमधुर संगीत के साथ उत्कृष्ठ राजस्थानी नृत्य भंगिमाओं सहित प्रस्तुत इस निहायत सुन्दर गीत में यदि आपको केवल कमर /पेट नजर आता हैं तो क्षमा किजियेगा बंधु दोष आपकी दृष्टि में भी है.

चारों ओर सुहागिनों से घिरी परिणीता वेश को धारण किये हुए दीपिका जब अग्निकुंड की ओर सगर्व एवं दृढ़ कदमों से चलती हुई उद्धघोष करती है “जय भवानी” तो लगता है जैसे साक्षात माता सती शिव के अपमान से क्रोधित होकर स्वयं को अग्नि में समर्पित करने जा रही हो.”

उफ्फ क्या दृश्य है? क्या संवाद है!

“राजपूती कंगन में भी उतनी ही शक्ति होती है जितनी कि राजपूती तलवार में. ”
वाह दीपिका !

“अजीब विडम्बना है कि हम एक जड़ पत्थर को अपनी आस्था से प्राण प्रतिष्ठित कर ईश्वर के विग्रह का स्थान दे सकते है किंतु एक चेतन को किसी अनुकरणीय दैविक चरित्र का क्षणिक प्रतीक तक स्वीकार नहीं कर सकते?”

निश्चित रूप से इतिहास में बॉलीवुड एवं भंसाली को लेकर हमारा अनुभव दूध से मुँह जलने के समान है किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि अब हम फ्रिज से निकली छाछ को भी दूर से ही ठुकरा दे, फिर भी शक्यता है तो प्री-स्क्रीनिंग के रूप में अंगुली डालकर ताप देखा जा सकता है.

दीपिका सनातन धर्म का ही हिस्सा है और यदि कोई युवा राह से भटक जाता है तो समाज अपने संदेशों से उसका मार्गदर्शन करता है दिशाप्राप्ति में, जब हम अनुचित कृत्य पर दीपिका की तीक्ष्ण आलोचना कर सकते हैं तो अच्छा कार्य करने पर प्रोत्साहन एवं शाबाशी क्यों नहीं?

आखिर कब तक हम अपनी नई पीढ़ी को उचित तर्कों के स्थान पर अनावश्यक उग्रता से संचालित करने का प्रयास करेंगे?

आज जब कोई सही राह पर है तब उसे प्रोत्साहन ही ना मिले तो वह उस राह पर आगे बढ़ेगा ही क्यों?

इस्कॉन जिन विदेशी म्लेच्छ-मलेच्छनियों को हिन्दू धर्म में दीक्षित करता है तो उनका चरित्र सर्टिफिकेट माँगता है क्या?

हम भी बड़े गर्व से कहते है अरे जूलिया रॉबर्ट्स हिन्दू धर्म से प्रभावित है आरती करती है, भजन करती है, सिल्वेस्टर स्टेलोन अपने बेटे का श्राद्ध करता है भारत आकर, कभी अंगुली उठाई उनके चरित्र पर?

और यह सब बकवास सुनकर आएगा कोई प्रज्ञधारी सनातन की ओर आकर्षित होकर?

जो धर्म कहता है ” मैं (परमेश्वर ) सभी की आत्मा मे स्वयं प्रतिष्ठित हूँ, मैं ही सभी क्षेत्रों (शरीरों) का क्षेत्रज्ञ (चेतन ) हूँ, सबकुछ जो मनुष्य करता है वह प्रकृतिजन्य त्रिगुणों के तात्कालिक मिश्रण के कारण है.” ऐसे धर्म के मताबलम्बियों की इतनी संकीर्ण सोच?

आखिर क्यों विश्व को यह जानने से रोका जाए कि जिहाद के नाम पर 13वीं सदी से ही हिंदू कितनी बर्बरता अन्याय और विध्वंस झेलते आ रहे हैं?

सोचिये कि आखिर क्यों नंगा करने पर तुले हैं मोदीजी विश्व के समक्ष हाफिज, मसूद अजहर, जकवी के बहाने पाकिस्तान को अपनी कूटनीति के द्वारा?

फिर हम क्यों हिचक रहे दुनिया को यह बताने में कि कैसे इस्लाम के दुष्परिणामों को भारत ने एक श्राप के रूप में भुगता है और कैसे एक स्वाभिमानी राज्य ने समाप्त हो जाना स्वीकार किया लेकिन अपने सांस्कृतिक मूल्यों और स्वतंत्रता से कोई समझौता स्वीकार नहीं किया.

देखें और जाने यह विश्व की अपनी आन बान शान के लिए मुट्ठीभर योद्धा केसरिये बाना ओढ़के असंख्य दुश्चरित्रों पर काल बनकर टूट पड़ते थे, कैसे गोरा और बादल के धड़ मस्तक कट जाने के बाद भी शत्रुओ को शिरविहीन करते रहे.

आखिर क्यों हिचक रहे हैं हम?

उचित एवं अपेक्षित गणमान्यों द्वारा प्री-स्क्रीनिंग की मांग अटल है, उसमें कोई किन्तु परन्तु नहीं है, लेकिन उसके बाद इस ऐतिहासिक फ़िल्म का स्वागत एवं प्रचार पूर्ण सम्मान एवं उत्साह से होना चाहिए.

दीपिका जी! मुझे गर्व है आपके इस नवरूप पर, जब तक आप माता पद्मिनी के रूप को धारण किये हैं मेरे लिए वैसे ही सादर प्रणम्य है जैसे शिव के प्रतीक टेकाराम जी, ऐसे ही सनातन एवं भारतभूमि की असल बेटियों के आदर्श को प्रतिबिंबित कीजिये तभी आप सही अर्थों में यूथ आइकॉन कहलाएंगी.

जय एकलिंगनाथ की !
जय महारानी सतिश्रेष्ट पद्मिनी की !
जय मेवाड़, जय सनातन ।।

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