ये सारा कहाँ से शुरू हुआ है, पता है? भंसाली का पैटर्न समझ लें आप!
रामलीला
पहले उसने फिल्म का नाम रखा था ‘रामलीला’! बाद में बवाल मचने पर बदल कर ‘गोलियों की रासलीला रामलीला’ रख दिया. मूल नाम और बदल कर रखे नाम दोनों में ही मक्कारी साफ झलकती है.
फिल्म का नाम कुछ और भी तो रखा जा सकता था. यह जिस कदर ठेठ मसाला (या गोबर) फिल्म थी, अस्सी या नब्बे के दशक की किसी भी फिल्म का नाम इसके लिए चल जाता, जैसे कि आज का गुंडाराज, खून भरी मांग, खून और प्यार… कुछ भी चल जाता! लेकिन नामकरण हुआ ‘राम लीला’.
भारत के सामूहिक आराध्य देव कौन हैं? राजाधिराज रामचंद्र महाराज. तो उस पर ही हमला किया जाए, जिस पर आपको गर्व हो! आप जिसे पूजते हो, आप जिनका आदर्श के तौर पर अनुसरण करने की कोशिश कर रहे हो, उसी श्रद्धा स्थान पर हमला किया जाए!
राम भक्ति करते हो? राम मंदिर बनाना चाहते हो? रुको! एक दो कौड़ी का भांड़ और उससे भी टुच्ची एक नचनिया लेकर मैं एक निहायत बकवास फिल्म बनाऊँगा, और नाम रखूँगा ‘रामलीला’!
आप कौन होते हो आक्षेप लेनेवाले? अपमान? इसमें कहाँ किसी का अपमान है? यह फिल्म के नायक का नाम है. लीला नामक नायिका के साथ रचाई गई उसकी लीलाएँ दिखाई जाएगी, तो ‘रामलीला’ नाम गलत कैसे हुआ भाई?
वैसे नाम बदलते हुए भी क्या शातिर खेल खेला गया है, जानते हैं? ‘गोलियों की रासलीला रामलीला’ यह बदला हुआ नाम है. रासलीला यह शब्द किससे संबंधित है? भगवान श्रीकृष्ण से.
देखा? रामलीला नाम रख एक गाल पर तमाचा जड़ा गया. और उसका नपुंसक, क्षीण विरोध देख भन्साली ने भाँप लिया कि यहाँ और भी गुंजाइश है, और बदले हुए नाम से उसने आप के दूसरे गाल पर और पाँच उंगलियों के निशान जड़ दिए!
एक बेकार सी फिल्म के नाम के साथ खिलवाड़ कर उसने आप को यह बताया है कि आप कितने डरपोक हैं. आप के विरोध का संज्ञान लेते हुए फिल्म का नाम बदलते हुए भी वह आप का अपमान करने से नहीं चूका. और आप ने उसी फिल्म को हिट बनाया! निरे बुद्धू हो आप!
बाजीराव-मस्तानी
हिन्दुओं पर हमले को एक फिल्म में अंजाम देने के बाद अगला पड़ाव था मराठी माणूस. मराठी समाज को तोड़ने की कोशिशें एक लंबे समय से जारी है. अस्सी के दशक से ही यह काम चल रहा है.
और जो तरकीबें हिंदुओं का अपमान करने के लिए प्रयुक्त होती हैं, उनमें एक महत्त्वपूर्ण बदलाव ला कर मराठी समाज में भेदभाव के बीज बोने के काम में लाया जाता है. मराठा, दलित और ब्राह्मण इनको यदि आपस में भिड़ाए रखो, तो मराठी इन्सान की क्या बिसात कि वह उभर कर सामने आए!
सनद रहे, इन तीन वर्गों में बड़ा भारी अंतर है. दलितों का, उनके नेताओं का या फिर उनके प्रतीकों का अपमान होने का शक ही काफी है किसी को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए!
महाराष्ट्र में दलित उत्पीड़न प्रतिबंधन कानून के तहत पुलिस कंप्लेंट हो तो पुलिस तत्काल धर लेती है. बेल नहीं होती, बंदा लंबे समय तक जेल की हवा खाता है. प्रदर्शन और हिंसा की संभावना अलग से होती है.
मराठा समाज स्थानीय दबंग क्षत्रिय जाति है. उसके प्रतीकों को ठेस पहुंचाओ तो संभाजी ब्रिगेड जैसे उत्पाती संगठनों के आतंक का सामना करना पड़ता है.
तो फिर जिनके प्रतीकों और आदरणीय व्यक्तित्वों पर आसानी से हमला किया जा सकता है, घटिया से घटिया फिल्म उनके श्रद्धास्थान के बारे में बनाने पर भी जो पलटवार तो क्या, निषेध का एक अक्षर तक नहीं कहेंगे, ऐसा कौन है? सबसे बढ़िया सॉफ्ट टार्गेट कौन? ब्राह्मण.
आपके सबसे पराक्रमी पुरुष कौन? इस पर दो राय हो सकती है. उन पर्यायों में आप को जिसके बारे में जानकारी कम है, लेकिन जिसका साहस और पराक्रम अतुलनीय आहे ऐसे किरदार का चुनाव मैं करूँगा.
श्रीमंत बाजीराव पेशवा और उनका पराक्रम मैं इस तरह बचकाना दिखाऊँगा कि रजनीकांत की मारधाड़ की स्टाइल भी मात खा जाए! एक आदमी तीरों की बौछार को काटता हुआ निकल जाए, ऐसा सुपरमैन! दिखाऊँगा कि मस्तानी के प्यार में पागल बाजीराव अकेले ही शत्रु सेना से भिड़ जाता है.
बाजीराव इश्क में पागल हो सारा राजपाट छोडनेवाला, और सनकी योद्धा था, ऐसे मैं दिखाऊँगा, ताकि पालखेड़ के संघर्ष में बगैर किसी के उंगली भी उठाए, बगैर किसी युद्ध के निज़ाम शाह को शरण आने पर मजबूर करने वाली उसकी राजनीतिक सूझबूझ दिखाने की जरूरत न पडे!
लगातार 40 युद्धों में अजेय कैसे रहे, कितनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया, मस्तानी का साथ कितने वर्षों का रहा… दिखाना जरूरी नहीं होगा.
निज़ाम शेर के सिर पर हाथ फेरते हुए दिखाया जाएगा, और बाजीराव उससे बात करने के लिए किसी याचक की तरह पानी में से चलते हुए सामने खडा दिखाया जाएगा!
बाजीराव की माँ पागलपन का दौरा पडी विधवा दिखाई जाएगी. वस्तुतः लगभग अपाहिज पत्नी को हल्की औरत की तरह नचाया जाएगा.
बाजीराव खुद मानसिक रूप से असंतुलित और उनके पुत्र नाना साहब दुष्ट और दुर्व्यवहारी दिखाए जाएँगे….
आप क्या कर लोगे? बस, केवल कुछ प्रदर्शन? खूब कीजिए! मैं घर पर बैठे हुए टीवी पर उनका मजा लूँगा. एक सिनेमा हॉल में प्रदर्शन रोकने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.
हाँ, आप के दोनों गालों पर तमाचे जड़ने और पिछवाड़े में एक लात लगाने के पैसे मुझे कब के मिल चुके हैं. देखो, सोशल मीडिया पर एक जाति दूसरी से कैसे भिड़ी हुई है!
मैंने आप की कुलीन स्त्रियों को पर्दे पर नहलाया. उनको मनमर्जी नचाया. दाल-चावल खानेवाले डरपोक लोग हो आप! ब्राह्मणवाद का ठप्पा लगाकर मुझे हिंदुओं को अपमानित करना था, सो कर लिया! ठीक वैसे ही, जैसे और लोग करते हैं. हा हा हा.
पद्मिनी
अब अगला पडाव दूसरी पराक्रमी जाति, राजपूत! आपके आराध्य को चिढ़ाना हो चुका, और जातियों को आपस में लड़ाना हो चुका. अब अगला पायदान चढते हैं. आप की आदरणीय स्त्रियों पर हमला!
शत्रु की स्त्रियों का शीलभंग, उनकी इज़्ज़त लूटकर उन्हें भ्रष्ट करना किसी भी युद्ध का अविभाज्य अंग होता है. तो फिल्मों के माध्यम से एक मानसशास्त्रीय युद्ध के दौरान इसे क्यों वर्जित माना जाए?
अनगिनत औरतों की अस्मत लूटनेवाले अल्लाउद्दीन खिलजी ने जब चित्तौड़गढ़ पर हमला किया और चित्तौड़गढ़ के पराजय के आसार दिखाई देने लगे तब शत्रुस्पर्श तो दूर, अपना एक नाखून तक उनके नजर न आएँ, इस सोच के साथ हजारों… हाँ, हजारों राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर की आग में कूद कर जान देने वाली महारानी पद्मिनी से बढकर अपमान करने लायक और कौन स्त्री हो सकती है?
अरे, आपने दो थप्पड़ जड़ दिए, कैमरा तोड़ दिया, मेरे क्रू से मारपीट की. बस्स! इससे अधिक क्या कर लोगे? मुझे इसके पूरे पैसे मिले हैं, मिलेंगे. मेरी जेब पप्पू जैसी फटी नहीं है.
आप राजस्थान में लोकेशन पर मना करोगे तो जैसे बाजीराव मस्तानी में किया वैसे कम्प्यूटर से आभासी राजस्थानी महल बनाऊँगा, और हर हाल में यह फिल्म बनाऊँगा, आपकी छाती पर साँप लोटते हुए देखूँगा. और देख लेना, आप ही मेरी इस फिल्म को हिट बनाएंगे!
क्यों, पता है? आप डरपोक हो. खुदगर्ज हो. प्रत्यक्ष भगवान राम के लिए कोई उठ खड़ा नहीं हुआ. बाजीराव के समय लोग ब्राह्मण और मराठी समाज के पक्ष में खड़े नहीं हुए. अबकी देखूँगा, राजपूतों के साथ कौन, और कैसे खड़े होते हो!
क्या उखाड़ लोगे?
मूल मराठी लेखः ©मंदार दिलीप जोशी
हिंदी रूपांतर: ©कृष्ण धारासूरकर