पान खाता कामरेड और सफ़ेद कपड़े वाले भाईजान व भाईसाहब

यह बोधकथा समय से पहले लिखी गयी थी. आज जब पोलिटिकल करेक्टनेस का पोस्ट मॉर्टेम किया जा रहा है, इसकी प्रासंगिकता समझ में आ रही है. लीजिये, सादर प्रस्तुत है.

कई लोगों को सफ़ेद कपड़े पहनने का शौक होता है. ऐसे ही एक भाईसाहब थे जिन्हें सफ़ेद कपड़ों का शौक था. लक़दक़ बनके चलते थे, और बहुत जतन करते कि कोई दाग न लगे.

जहां कहीं भी हल्का सा भी दाग लगने की आशंका होती वहाँ वे हाथ ही नहीं लगाते, उस काम से ही पल्ला झाड़ लेते. जहां अपनों के साथ बात करने से भी दाग लगने की आशंका होती वहाँ ये उसे दूर रहने का आदेश दे देते थे.

इनकी ये बेदाग रहने की सनक का एक आदमी को पता चल गया. झोलाछाप, भुक्खड़ और दोस्तों, रिश्तेदारों या कम से कम शांति से रहने वाले लोगों में झगड़े लगाकर पेट भरने वाला काईंया आदमी था.

पान खाने की आदत थी. यहाँ वहाँ थूकता था और थूककर स्वच्छता पर लेक्चर देता था. परजीवी था और खुद को बुद्धिजीवी कहलाता था. उसे कामरेड बुलाते हैं, नाम में क्या रखा है?

तो कामरेड ने एक दिन भाईसाहब को दबोचा. मुंह में पान यहाँ से वहाँ घुमाते दुष्ट हंसी हँसते बोला – कहीं राष्ट्रीय महत्व की बैठक में जा रहे हो लगते हो…. थूक दूँ क्या, दागी कपड़ों मे जाओगे?

घिघिया कर भाईसाहब ने कामरेड की मिन्नतें की और कामरेड ने उनसे कुछ वसूल कर ही उन्हें छोड़ा.

उसके बाद कामरेड को यह लत ही लग गयी, अगर वसूलता नहीं तो कम से कम सब के सामने अपमान जरूर करता, और भाई साहब इस डर से चुप रहते कि यह उनके सफ़ेद कपड़ों पर थूक देगा तो दाग कहाँ धोएँगे.

एक दिन हुआ यूं कि भाईसाहब के बेटे ने यह तमाशा देख लिया. कुछ नहीं बोला.

फिर एक दिन कामरेड को ऐसे ही लक़दक़ सफ़ेद कपड़े पहने एक भाईजान से बात करते देखा लेकिन वहाँ कामरेड का रवैया बिलकुल विपरीत था. थूकने की धमकी तो छोड़िए, मुंह में पान भी नहीं था. बात खत्म करके कामरेड निकालने को हुआ तो भाईजान ने उसे पान थमा दिये.

खैर, दूसरे दिन भाईसाहब का बेटा निकला सफ़ेद कपड़ों में. कामरेड ने ठीक से देखा नहीं, सामने आ गया, गलती समझ में आ गयी फिर भी उसी अंदाज़ में गुर्राया.

भाईसाहब के बेटे ने ना आव देखा ना ताव, कामरेड की जमकर ठुकाई कर दी. लंगड़ाता हुआ कामरेड जैसे तैसे निकल गया.

दूसरे दिन जैसे भाईसाहब निकले, बेटा भी साथ निकला. कामरेड वहीं था. बेटे ने सोचा देखकर कलटी मारेगा, लेकिन कामरेड उसके बाप को उस से ज्यादा पहचानता था.

तुरंत चिल्लाकर भाईसाहब से मांग की कि अपने बेटे को सब के सामने जूते मारने दें. और भाईसाहब जो थे, मान गए और जूतमपैजार का पहला जूता और जब कामरेड थक गया तो आखिरी जूता भी खुद ही मारा.

बेटा अनुशासन पर बाप का बौद्धिक सुनकर अपनी आहत भावना के घावों को सहलाता रह गया और भाईसाहब कामरेड के सामने दंडवत हो गए.

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