सुनो योद्धा क्षात्रों,
यह समय काल की शैशव अवस्था नहीं,
यह समय है सर्वभक्षी विध्वंस-पक्षी
किसी क्रूर बधिक सा अपने ही आहत के रक्त में
सर्वांग लथपथ,वीभत्स,
प्रत्यन्चाएं चढ़ा लो कि अब लक्ष्य तुम हो.
सुनो मंत्रद्रष्टा ब्रह्मपुत्रों,
यह समय भोजपत्रों पर ऋचाओं के
अवगाहन का नहीं,
संहारक अनुष्टुप शाबर छन्दों के
आवाहन का है
आमंत्रित करो उग्र मनोजवा, विद्युतजिह्व,
सुलोहिता, स्फुलिंगिनि अग्नियों को
कि अब लक्ष्य तुम हो.
सुनो कृषिकर्मजीवी धरापुत्रों,
नवल धान्य रोपो चीर पृथ्वी के वक्ष को
नवरससृष्टि हो, हो नवल पुष्ययात्रा,
नवल दृष्टि से करो नियंत्रित
आकाश में मेघों का गर्भाधान,
संततियों को दो ज्ञान पुरातन
मेघों के प्रसव की शल्य चिकित्सा का,
कि अब लक्ष्य तुम हो.
सुनो धृतराष्ट्रों,
इस भयंकरतम औघड़ समय में,
सब भीष्म पितामह हैं
‘अपने ही अर्जुन के शरों से बिंधे,
उत्तरायण की प्रतीक्षा करते’
और सबके अपने महाभारत हैं,
तो संजय से लो उधार दृष्टि
कि अब लक्ष्य तुम हो.
सुनो कामरेड,
आओ इस कठिन काल को सरल बनाएं.
किसी देहाभिमानी मूर्खा नवयौवना को ले संग,
पीकर वारूणी विलायती,
सनातनी व्यवस्था को गरियाएं.
कि शत्रु ने उपयोग करने हैं
तुम्हारे कन्धे अपने तीखे नेजों के लिए
कि तुम रीढ़विहीन,
कि तुम तो लक्ष्य होने के भी योग्य नहीं.