सरमद और जैबुन्निसा क्यों नहीं हैं उनके आदर्श?

सूफी संत सरमद का नाम तो सुना ही होगा आपने, फिर भी सरमद का संक्षिप्त परिचय करवा देता हूँ.

औरंगजेब के समय हुए सरमद वो थे जिन्होंने सत्ता के लिए भाइयों का खून बहाने वाले कट्टरपंथी औरंगजेब को आईना दिखाया था, सरमद वो थे जिन्होंने सेमेटिक मजहबों की ‘मानने’ की तालीम के विरुद्ध जाकर ‘जानने’ और फिर मानने का रास्ता चुना था.

सरमद वो थे जो किसी जड़ अकीदे से बंधे हुए नहीं थे, सरमद वो थे जिसने गर्दन पर तलवार लटकी देखकर भी कभी हक़ (सत्य) बयान करने से परहेज नहीं किया. सरमद वो भी थे जो लीक और तय मान्यताओं के विरुद्ध खड़े होने का साहस रखते थे.

सरमद से जुड़ा एक रोचक प्रसंग है. कहते हैं कि औरंगजेब हर ज़ुमा (शुक्रवार) को एक नगर काज़ी मुल्ला कवी के साथ ज़ामा मस्ज़िद में नमाज़ पढने जाया करता था. सरमद भी वहीं ज़ामा मस्ज़िद की सीढ़ियों पर हिन्दू संतों की तरह अर्ध नग्न अवस्था में इबादत में मशगूल रहते थे.

मुल्ला कवी को सरमद की ये हिमाकत बड़ी खलती थी क्योंकि इस्लाम में शरीर के अंग नंगे रखना वर्जित है इसलिये उसने औरंगजेब को सरमद के खिलाफ उकसाया कि ये तो हिन्दुओं के प्रभाव में आ चुका है, हिन्दू संतों की तरह अर्धनग्न रहता है और आधा कलमा यानि ‘ला इलाहा इल्ललाह’ यानि हिन्दुओं का ब्रह्मसूत्र ‘एकम ब्रह्म द्वितीयो नास्ति’ ही पढ़ता है, ये काफ़िर अपने कलमे में मुहम्मद (स.) के रिसालत का जिक्र भी नहीं करता.

सरमद के ऊपर ये आरोप मढ़कर मुल्ला कवी ने उसके क़त्ल का फतवा निकाल दिया. उस कत्लादेश पर अगले दिन औरंगजेब के दस्तखत होने थे, उस रात औरंगजेब ने सपने में देखा कि जन्नत में एक बड़ा सुंदर महल बना हुआ है जिसके ऊपर लिखा है “शहजादी जैबुन्निसा का खरीदा हुआ महल”.

अपनी बेटी का महल देखकर औरंगजेब जब उसमें प्रवेश करने लगा तो वहां के पहरेदारों ने ये कहते हुए उसे रोक दिया कि ये आपके लिए नहीं है.

औरंगजेब की आँख खुल गई और वो सीधा भागता हुआ वो अपनी बेटी के कमरे में चला गया तो वहां का दृश्य देखकर वो हतप्रभ रह गया क्योंकि उसकी बेटी के हाथ में वही सपने में दिखा जन्नती महल खिलौने के रूप में था.

औरंगजेब ने उससे पूछा, बेटी, ये महल वाला खिलौना तुम्हें किसने दिया? जैबुन्निसा ने उत्तर दिया, ये तो मुझे मुझे सरमद ने दिया है.

हैरान-परेशान औरंगजेब जामा मस्ज़िद की ओर दौड़ा तो वहां उसकी सीढ़ियों पर नंग-धड़ंग सरमद मिल गये. औरंगजेब ने छूटते ही उससे पूछा, जो जन्नती महल तुमने मेरी बेटी को दिया वो मुझे भी दो. सरमद ने मुंह घुमाकर जबाब दिया, जन्नत हर किसी के नसीब में नहीं होती.

औरंगजेब आखिर बादशाह था, इस इंकार ने उसे आगबबूला कर दिया, उसे मुल्ला कवी द्वारा सरमद पर लगाये आरोप याद आने लगे.

कड़कती आवाज़ में उसने सरमद से पूछा, तुमने अपना कंबल जमीन पर रखा है और खुद नंगे हो, इसे फ़ौरन उठा कर ओढ़ लो. सरमद ने उत्तर दिया, “कंबल एक ही है, जिसमें किसी एक का ‘ऐब’ ही छिपाया जा सकता है”.

औरंगजेब ने पूछा, और किसका ऐब छिपा रखा है इसमें? सरमद ने कहा, खुद ही देख लो. जब औरंगजेब ने कंबल हटाया तो कांप गया क्योंकि वहां उसके तीन भाई दारा, शुजा और पाशा के कटे हुए सर रखे हुए थे. ये दृश्य देख औरंगजेब नंगे पांव वहां से भागा.

इस चमत्कारिक घटना ने सरमद के मुरीदों की भीड़ लगा दी, मुल्ला कवी के लिए इस्लाम खतरे में आ गया और फ़ौरन सरमद के क़त्ल का हुक्म जारी कर दिया गया और उसकी गर्दन उतार दी गई.

कहते हैं कि जब सरमद का सर काटा गया तो उसके बाद उन्होंने ज़िन्दगी में पहली बार पूरा कलमा पढ़ा और फिर अपने हाथों में अपना कटा हुआ सर थाम कर खुदा से इन्साफ मांगने जामा मस्जिद की सीढियाँ चढ़ने लगे पर उनके रूहानी आका (पीर) हरे भरे शाह सब्ज़बारी ने ये कहते हुये उन्हें रोक लिया कि सरमद रूक जा, नहीं तो आज ही क़यामत बरपा हो जायेगी.

सवाल ये है कि आज मुसलमानों के बीच सरमद की स्वीकार्यता क्यों नहीं है? सरमद की गलती क्या थी? क्या सरमद मुसलमान नहीं थे?

क्या उनका अपराध ये था कि उन्होंने ‘मानने के बजाये जानने’ की यात्रा की और जब तक उन्होंने मुहम्मद साहब को रसूल जान नहीं लिया तब तक उन्होंने कलमे का उतना ही अंश पढ़ा जो नैसर्गिक सत्य था?

क्या सरमद इसलिए अपराधी थे क्योंकि उन्होंने दारा शिकोह को ये समझाया था कि सत्य कुरान के बाहर भी है?

या सरमद इसलिए स्वीकार्य नहीं हैं कि उन्होंने कृष्ण भक्ति की ओर मुड़ चुकी जैबुन्निसा को जन्नत का महल बनाकर दिया था?

या फिर इसलिए मुस्लिम समाज उन्हें ठुकराता है कि बुतशिकन औरंगजेब को उन्होंने जन्नत का अधिकारी मानने से इन्कार कर दिया था?

या फिर वो इसलिए अस्वीकार्य हैं क्योंकि उन्होंने वेदांत और इस्लाम के बीच साम्यता स्थापित करने की कोशिश की थी?

या फिर उनका अपराध ये था कि मुग़ल हरम के घुटन भरे अंधकार में उन्होंने शाश्वत सत्य की रोशनी पहुँचाने की हिमाकत की थी?

सरमद कभी मुर्तद नहीं हुए, न ही सरमद ने कभी हिन्दू धर्म स्वीकार किया फिर भी क्यों आज भारत का मुसलमान समाज सरमद को अपने आदर्श रूप में नहीं देखता?

क्यों उनका और उनके पीर हज़रत हरे भरे शाह सब्ज़बारी का मजार जामा मस्जिद की सीढ़ियों के पास उपेक्षित पड़ा है?

क्यों भारत का मुसलमान ये नहीं मानता कि सरमद भी इस्लाम वाले ही थे, क्यों वो ये नहीं समझता कि सर्वस्वीकार्यता का सरमद वाला रास्ता भी अनुकरणीय हो सकता है?

भारत के मुसलमान और हिन्दू समाज के बीच आपसी संवाद की आज बड़ी आवश्यकता है और इसके लिए आवश्यक है कि सहमति के कुछ बिंदु बनाये जायें, कुछ ऐसे आदर्शों, प्रतीकों, रास्तों और महापुरुषों का चुनाव किया जाए जो मिल बैठकर सोचने और फिर साथ चलने का आधार बन सकें.

इस बात के लिए सरमद कम से कम पहला चुनाव तो हो ही सकते हैं, आगे जैबुन्निसा भी हो सकती है. फैसला भारत के मुस्लिम समाज को लेना है.

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