सज्जन ने अन्दर पहुँच कर एक लम्बे चौड़े भयानक इंसान को अजीब तरीके से आभूषण और वस्त्र पहने गाव तकिये पर अधलेटा हुआ देखा. अगल बगल राक्षस जैसे हब्शी नंगी तलवारें लिए पत्थर की तरह अचल खड़े थे. उस बीच वाले इंसान के दोनों ओर सामने कुछ और यवन योद्धा बैठे हुए थे.
सज्जन को विश्वास हो गया कि लाल लाल आँखों में सुरमा लगाये, मध्य में अधलेटा हुआ ही वो मलेच्छ है, जिसने भारत के अन्य मंदिरों को लूट कर उनको मटियामेट कर दिया है, और अब इसकी निगाह विश्वप्रसिद्ध मंदिर बाबा सोमनाथ के धाम पर है.
सज्जन की भुजाएं फड़क उठीं, उसके शिराओं का रक्त तेजी से उबलने लगा. लेकिन उसने अपने पर काबू किया. उसने निहत्थे, दर्जन भर विश्वप्रसिद्ध योद्धाओं से भिड़ जाने की मूर्खता नहीं की.
इतने में महमूद के पास बैठा एक राजपूत सरदार उठ कर उसकी ओर बढ़ा. महमूद के जोर से बोलने से उसको समझ आया कि इस देशद्रोही का नाम ‘संवेदराय’ है.
एक राजपूत को यहाँ देखकर पुनः उसका रोम रोम जल पड़ा. वो बिना हथियार के ही उछल कर इस देशद्रोही राजपूत का गला दबा देता, यदि दैवाज्ञा का पालन करने का सरल मार्ग उसको नहीं दिख रहा होता तो. उसने अपने भावों पर पूर्ण नियंत्रण रखते हुए चेहरे को निर्विकार बनाये रखा.
उसने अच्छी तरह सबको समझा दिया कि, “रेगिस्तान के बीच का रास्ता ही छोटा और सुरक्षित है. दूसरे मुख्य रास्तों पर लाखों राजपूत योद्धा मिलेंगे, जिनसे लड़ते लड़ते स्थिति बहुत ख़राब हो सकती है सेना की, तथा वो रास्ता दो महीने जितना लम्बा भी है. दो महीने में जगह जगह से हार कर भागे हुए राजपूत योद्धा और भी ज्यादा संगठित होकर आक्रमण कर सकते हैं. वो सारे उन्हीं रास्तों पर इस सेना का इंतजार भी कर रहे होंगे. कोई ये सोच भी नहीं सकता कि रेगिस्तान से जाने का रास्ता महमूद को ज्ञात होगा. इसलिए रेगिस्तान का रास्ता ही बेहतर है. और बीच बीच में सेना के लिए पानी और पेड़ भी मिल ही जाते हैं.”
संवेदराय ने भी उससे उसकी पहचान जानने की कोशिश की, तरह तरह के सवाल पूछ कर. लेकिन सज्जन तो पूर्णरूप से तैयार होकर ही आया था. सब लोग उसके जवाब से संतुष्ट होते गए.
केवल महमूद की आँखें थोडी सिकुड़ी रहीं, लेकिन उसके पास भी शक का कोई आधार नहीं था. क्योंकि ऐसे ही मूलनिवासी पथ प्रदर्शकों और देशद्रोहियों की सहायता से ही तो उसका विजय अभियान अब तक सफल रहा है, जो कुछ कौड़ी और अपनी जान के लालच में बिकते रहे हैं.
उसने फिर भी सज्जन को एक पूरा दिन एक तम्बू में नज़रबन्द रख कर अपना संशय मिटाने की कोशिश कर ली, फिर सेना को कूच का आदेश दे दिया.
महमूद की सेना सज्जन के पीछे पीछे चलने लगी. उसने सोचा कि अच्छा किया जो प्रधान मार्ग पर एकत्रित राजपूत सेनाओं से नहीं उलझना पड़ेगा. उधर सज्जन ‘पदमड़ी बहू’ (अपनी ऊँटनी) को मीठे मीठे लोकगीतों से प्रोत्साहित करते, प्रचंड आँधियों से मिलने की उत्कंठा मन में लिए हुए आगे आगे चलता गया. एक एक करके चार दिन बीत गए रेगिस्तान में चलते रुकते.
अब पांचवें दिन सेना के घोड़े, हाथी लगभग मृतप्राय होने लगे लगातार गरम हवाओं और गरम उड़ती रेत से. लोग बेकल होकर त्राहि त्राहि करने लगे. सेना के पथ प्रदर्शकों में असंतोष हो गया.
बात महमूद तक पहुंची तो सज्जन को उसके सामने लाया गया, लेकिन वो अपनी बात से टस से मस नहीं हुआ. पथ प्रदर्शकों द्वारा उसकी परीक्षा ली गई, और अंततः सबको मान ही लेना पड़ा कि सज्जन से बढ़ कर रेगिस्तान का कोई ज्ञाता नहीं है.
लेकिन छठे दिन फिर हंगामा मचा, सबका धैर्य जवाब दे गया. सज्जन को फिर से महमूद के सामने लाया गया. अंतहीन होती बातों और सवालों के बीच सज्जन ने जोरदार उपालंभ से उलाहना देते हुए ताना मार दिया, “इसी दम पर रेगिस्तान में कूदे हो? पता नहीं था कि रेगिस्तान कैसा होता है? रेगिस्तान में ‘थोड़ी बहुत’ रेत की आंधियां नहीं चलेंगी तो क्या उपरवाला फूलों की बारिशें करवाएगा?”
उसने सीधा महमूद से कह दिया कि, “तुम्हारे सैनिक और सिपहसालार, लगातार मिलती जीत से आरामतलब हो गए हैं. ये लोग जरा सी रेत की आंधियां नहीं झेल सकते, तो लाखों की एकत्रित राजपूती सेना, जो जान देने लेने को तैयार खड़ी थी मुख्य रास्ते पर, उसके सामने तो ये लोग तुम्हारा नाम मिट्टी में मिला कर भाग खड़े होते. मुझे क्या अपनी और अपनी ऊंटनी की जान की परवाह नहीं है, जो तुम्हारे आगे आगे चल रहा हूँ चंद सिक्कों की खातिर?”
कह कर सज्जन ने ताव से अपनी मूंछों पर हाथ फेरा.
महमूद को बात चुभ गई. उसने फिर से सेना को कूच करने का आदेश दिया. लेकिन विश्वविजेता तो वह भी ऐसे ही नहीं था. उसने एक योजना बना कर सेना के तीन भाग कर दिए.
सबसे पहले वाला हिस्सा सज्जन के साथ एक दिन आगे चले, दूसरे हिस्से की सेना के साथ महमूद खुद था. और तीसरे हिस्से में रेगिस्तान की गर्मी से लगभग मृतप्राय हो चले हाथी, घोड़े और सैनिक रख दिए.
यह योजना सज्जन को कत्तई अच्छी नहीं लगी, लेकिन महमूद का हुक्म मानने के सिवाय कोई और चारा भी तो नहीं था.
सज्जन के साथ महमूद का तेजतर्रार सिपहसालार सालार मसूद चल रहा था. लेकिन लोग दो घड़ी भी आगे नहीं बढ़ पाए थे कि रेत के बवंडर उठने लगे. सब लोग फिर से घबराने लगे. इधर पदमड़ी बहू भी सारी स्थिति समझ रही थी. वो और जोश में सबसे आगे ठुमक ठुमक कर चलती रही.
सज्जन ने सालार मसूद से कहा, “जब मेरी ऊँटनी आराम से चल रही है, तो तुम्हारी ऊंटनियों को क्या दिक्कत है? मुझे लगता है कि ऊंटनियों नहीं, तुम्हारे सैनिकों के पेट में मारे डर के मरोड़ें उठ रही हैं. हा हा हा..”
सालार मसूद ने इस अपमान पर दांत भींच कर अपने सैनिकों को आगे बढ़ने के लिए ललकारा.
थोड़ी ही और देर में पश्चिम में अत्यधिक रेत उड़ती दिखी. मसूद ने सज्जन को देखा, वो तो आँधियों से किंचित भी भयभीत नहीं दिख रहा था. बोला, “ये तूफान तो अभी कुछ ही क्षणों में शांत हो जाएगा.”
लेकिन तब तक उबलती गरम रेत सैनिकों के ऊपर गिरने लगी थी. अब भयभीत मसूद तलवार निकाल कर सज्जन की ओर चिल्लाया, “ओ शैतान, तू है कौन?”
सज्जन अपने दोनों हाथ आसमान में उठा कर गर्व से खिलखिला उठा, “मैं कौन हूँ?” उसने अपने और पदमड़ी बहू के शरीर से लबादा उतार फेंका.
जतन से छिपाए गए उसके राजसी वस्त्र अब धूप में सोने की तरह चमक उठे, “सुन मलेच्छ, मैं तो घोघाराणा का लड़का हूँ, इस रेगिस्तान का स्वामी. और ये देख अब, अब खुला मेरे सोमनाथ का तीसरा नेत्र…”
उसने बाज की तरह झपटते तूफ़ान की ओर सगर्व हाथ उठा कर कहा, और उसकी भयंकर हँसी उस रेगिस्तान में यमराज की तरह गूंजने लगी.
मसूद और बाकी सैनिक मारे भय के अपने होश हवास खो बैठे, और ऊंटनियों को लिए दिए आंधी की विपरीत दिशा में गिरते पड़ते भाग लिए. उछलती कूदती ऊंटनियों से सैनिक गिरने लगे और पीछे वाली ऊंटनियों के पैरों तले वो गरम रेगिस्तान के बवंडर में जिन्दा दफ़न होने लगे.
उनको वापस भागते देख फिर से सज्जन को अच्छा नहीं लगा. उसने एक पल सोचा, फिर आसमान में देखकर बाबा सोमनाथ को याद करते हुए बड़बड़ा उठा, “बाबा, मैंने प्रतिज्ञा की थी कि जबतक मेरे शरीर में रक्त की एक बूँद भी शेष रहेगी, सोमनाथ की ओर गन्दी नज़र डालने वालों को जीवित बचकर नहीं जाने दूंगा.”
उसने पदमड़ी की नकेल अपने दांतों तले दबा लिया, और रास्ते के नाम पर वापस मिल गई अपनी दोनों तलवारों को म्यान में से खींच कर, पदमड़ी को उस भागती मलेच्छ सेना के पीछे दौड़ा दिया.
सिपहसालारों और सैनिकों को उस विकराल आंधी में पीछे मुड़ कर देखने की हिम्मत ही नहीं थी. पचासों के सिर एक झटके में काट डाले सज्जन ने. नकेल दांतों से दबाये दोनों हाथों में रक्तसनी तलवार नचाते वो रेगिस्तान का साक्षात् कालभैरव लग रहा था.
हिन्दू सैनिक उसके इस रूप को देखते ही यमराज को याद करने लगे. मुसलमानों को तो यही लग रहा था कि अल्लाह का बताया खतरनाक शैतान यही है. वे भयभीत होकर ‘शैतान आया, शैतान आया’ चीखने लगे, और ‘या अल्ला मदद कर, या अल्ला रहम कर’ चिल्लाने लगे. चारों तरफ चीख पुकार मच गई.
जो सैनिक आँधियों में नहीं मरे, वे भय के मारे गिर कर ऊंटनियों के पैरों तले रौंदे गए. जो उनसे भी बच गए उनका काम तमाम सज्जन करता चला गया. पदमड़ी तो साक्षात् स्वर्ग से उतारी ऊंटनी लग रही थी. लोगों को यही दिख रहा था कि शैतान उड़ने वाली ऊंटनी पर बैठ कर आया है. पदमड़ी के उड़ते कपड़े सुनहले पंखों जैसे ही प्रतीत हो रहे थे.
दूर टीले के पीछे अपने हिस्से की सेना के साथ छिपे खड़े महमूद गजनी ने जब इस प्रलयंकारी तूफ़ान में ऐसे चमकते हाहाकारी यमदूत को दोनों हाथों से तलवार चलाते देखा तो घबरा कर पूछ बैठा, “कौन है यह? क्या यही है शैतान?”
फिर किसी ने पहचान कर उसको बताया कि, “यह तो घोघाराणा का लड़का है.” महमूद की आँखें उसकी वीरता देख कर, और उसकी योजना को याद कर के फटी की फटी रह गईं.
घड़ी भर प्रलय का यह खेल चला, और आंधियां थम गईं. टीले के पीछे से महमूद ने देखा कि उसकी सेना की प्रथम टुकड़ी का एक भी सैनिक जिन्दा नहीं बचा था.
वो टीले से नीचे उतर कर अपने अल्लाह की इबादत करने लगा कि “या अल्लाह, तू कितना नेकदिल है, जो मेरी दो तिहाई सेना को बचा लिया.” वो इस तरह उत्साह वाली बंदगी का नाटक करने में माहिर था, नहीं तो उसकी सेना कभी भी विश्वविजय पर आगे बढ़ ही नहीं सकती थी.
और आज तो जब उसकी विश्वविजयी सेना का एक तिहाई हिस्सा, एक अकेले इंसान ने पूरी तरह नेस्तनाबूद, तबाह कर दिया, तो अन्दर ही अन्दर वो खुद भयभीत हो गया था. उसने मन ही मन बारम्बार नमन किया इस महायोद्धा को.
थोड़ी देर में जब धूल और शांत हो गई, तब सबने देखा कि वो सुनहला योद्धा रेत में अपनी दोनों तलवार धंसाये, उनकी मूंठ पर हाथ रखे घुटनों पर बैठा हुआ है.
ऐसा लग रहा था कि जैसे वो सिर्फ आंधी को सम्मान देने के लिए झुका बैठा है, और आंधी के गुजरते ही वो पुनः उठ कर गरजते हुए भीषण तांडव करना शुरू कर देगा.
लेकिन सत्य तो यह था कि वो अपने बगल में शांतचित्त बैठी ऊंटनी ‘पदमड़ी बहू’ के साथ ही वीरगति को प्राप्त हो गया था.
क्रमशः