कभी रात नींद खुल गयी है, बिस्तर पर पड़े हो, अनिद्रा के लिए परेशान मत होओ, इस मौके को मत खोओ, यह शुभ घड़ी है.
सारा जगत सोया है, पत्नी-बच्चे, सब सोए हैं, तो मौका मिल गया है.
बैठ जाओ अपने बिस्तर में ही, रात के सन्नाटे को सुनो.
ये बोलते हुए झींगुर, यह रात की चुप्पी, यह सारा जगत सोया हुआ, सारा कोलाहल बंद, ज़रा सुन लो इसे शांति से.
यह शांति तुम्हारे भीतर भी शांति को झनकारेगी.
यह बाहर गूंजती हुई शांति तुम्हारे भीतर हृदय में भी गूंज पैदा करेगी, प्रतिध्वनि पैदा करेगी.
जब सारा घर और सारी दुनिया सोयी हो तो आधी रात चुपचाप अपने बिस्तर में बैठ जाने से ज्यादा शुभ घड़ी ध्यान के लिए खोजनी कठिन है.
लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम आधी रात अलार्म भरकर बैठ जाओ. कभी नहीं!
नहीं तो धोखा हो जाएगा.
तुमने अगर इसको कोई नियम बना लिया कि अलार्म भरकर और दो बजे रात उठकर बैठ जाएंगे, फिर सब गड़बड़ हो जाएगी.
ध्यान तुम्हारे खींचे-खींचे नहीं आता.
ध्यान इतनी नाज़ुक बात है.
तुम बुलाते हो तो संकोच से भर जाता है, आता ही नहीं.
बड़ी नाज़ुक दुल्हन है ध्यान.
तुम ज़ोर-ज़बर्दस्ती मत करना, नहीं तो बलात्कार हो जाएगा. बहुत धीरे-धीरे फुसलाना पड़ता है.
फुसलाने शब्द को याद रखना. ध्यान को फुसलाना पड़ता है.
फिर चौबीस घंटे में कभी भी हो सकता है; लेकिन खयाल यही रखना कि फुसलाना है, आयोजन नहीं करना है.
नहीं तो लोग हैं कि रोज़ पांच बजे रात उठ आए और बैठ गए ध्यान करने.
जड़ की तरह, यंत्रवत, मशीन की तरह.
नहीं, ऐसा ध्यान नहीं होता…
ओशो